मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 7 मार्च 2015

भारत-श्रीलंका सम्बन्ध

                                                     लम्बे समय बाद किसी भारतीय पीएम की श्रीलंका यात्रा के लिए जिस स्तर पर तैयारियां की जा रही हैं उससे यही लगता है कि यदि तमिलनाडु के राजनैतिक दल अनावश्यक रूप से तमिल राजनीति करना बंद कर दें तो श्रीलंका के साथ भारत के तमिलों के लिये भी इस क्षेत्र में ज़िंदगी आसान हो सकती है. श्रीलंका में तमिलों और सिंहलियों के बीच का विवाद काफी पुराना है और यह चाहे अनचाहे भारतीय राजनीति को भी प्रभावित करता ही रहता है तो इससे निपटने के लिए दोनों देशों की सरकारों को अपनी तमिल प्रांतीय सरकारों के साथ बातचीत कर के मुद्दों के स्थायी समाधान की तरफ बढ़ने के बारे में सोचना ही होगा क्योंकि उसके बिना तमिल राजनीति में अनावश्यक रूप से समस्यायें सामने आती ही रहने वाली है. श्रीलंका के पीएम रानिल विक्रमसिंघे ने जिस भारत और तमिलों के मुद्दे पर स्पष्ट रूप से अपनी राय दी है उससे यही लगता है कि भारतीय राजनयिकों को पीएम मोदी की आगामी यात्रा के लिए और भी अधिक मेहनत करने की आवश्यकता है क्योंकि आज भी भारत को श्रीलंका के सिंहलियों में संदेह की दृष्टि से देखा जाता है.
                                        भारतीय मछुवारों द्वारा जल क्षेत्र का उल्लंघन करने के सन्दर्भ में रानिल के गोली मारने के बयान पर चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि वह जल क्षेत्र एक तरह से विवाद का विषय बना हुआ है और वहां पर जाफना के मछुवारों को मछली पकड़ने की अनुमति नहीं है जिससे भी भारतीय मछुवारे वहां तक पहुँच जाया करते हैं. अंतर्राष्ट्रीय कानून के अनुसार श्रीलंका से सम्बन्ध सुधारने के लिए अब भारत को तमिलनाडु की राजनीति को भी सही तरह से साधना ही होगा क्योंकि अधिकांश मामलों में वहां की राजनीति ही कई बार विदेश नीति को प्रभावित करने लगती है. अब जब केंद्र सरकार को किसी भी तमिल पार्टी के समर्थन की आवश्यकता नहीं है तो उसे इस मामले पर कड़ा सन्देश जारी करते हुए तमिलनाडु की राजनीति को विदेश नीति से बाहर करने का काम करना ही होगा क्योंकि जब तक भारतीय तमिल पार्टियां देश के विदेशी मामलों में दखल देती  रहेंगीं तब तक स्थिति को सही नहीं किया जा सकता है. दोनों देशों के सम्बन्ध प्राचीन काल से ही रहे हैं और आज हिन्द महासागर में चीन के बढ़ते प्रभुत्व के साथ क्षेत्रीय संतुलन बनाये रखने के लिए इनको आगे बढ़ाने की भी ज़रुरत दिखाई दे रही है.
                                 रानिल ने एक बात और भी स्पष्ट कर दी है जो भारत के लिए महत्वपूर्ण होने के साथ चिंताजनक भी है कि भारत और चीन के साथ श्रीलंका के संबंधों को एक ही तरह से नहीं आँका जाना चाहिए क्योंकि दोनों ही संबंधों की परिस्थितियों में बहुत अंतर है. भारत में श्रीलंका में चीन की उपस्थिति शुरू से ही बड़ा मुद्दा रहा है और इस बात के लिए पिछली यूपीए सरकार को आलोचना का शिकार भी होना पड़ता था कि चीन किस तरह से पाक के बाद श्रीलंका और मालदीव में अपनी उपस्थिति को बढ़ाता ही चला जा रहा है. द्विपक्षीय संबंधों को आक्रामक तरीके से नहीं निपटाया जा सकता है क्योंकि हर देश को अपने हितों के बारे में सोचने और उन्हें सुरक्षित रखने का पूरा अधिकार है पर भारत में यह बिना बात के ही एक मुद्दा बनकर सामने आ जाता है. हमें इस बात को इस तरह से समझना चाहिए कि हमारे सम्बन्ध शीतकाल में अमेरिका और सोवियत संघ दोनों से ही बने रहे थे और दोनों पक्षों के साथ हमने बेहतर तालमेल करने की पूरी कोशिशें भी की थीं जिनमें अधिकांश सफल भी कही जा सकती हैं. हमें अपने संबंधों को किसी अन्य देश के साथ श्रीलंका के सम्बद्न्हों के पलड़े पर नहीं तौलना चाहिए और आज जो अच्छा माहौल सामने आया है उस पर विश्वास पूर्वक आगे बढ़ना चाहिए.  
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