मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 6 मार्च 2015

पुरुष प्रधान समाज की मानसिकता

                                                      निर्भया कांड के दोषी मुकेश के बीबीसी द्वारा बनायीं गयी डाक्यूमेंट्री में लिए गए इंटरव्यू में जिस तरह से महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ बेहद आपत्तिजनक बातें कही गयी हैं उनसे भले ही देश की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मौजूदा छवि को धक्का लग रहा है पर क्या जो कुछ भी मुकेश ने कहा वह भारतीय समाज के पुरुषों की मानसिकता से मेल नहीं खाता है ? आज भी देश में धार्मिक समूह महिलाओं के कपडे पहनने के ढंग पर लगातार बयानबाज़ी करते रहते हैं पर उनमें से किसी के पास भी इस बात का जवाब नहीं होता है कि आखिर आम भारतीय पुरुष मानसिकता महिला को भोग्या से अधिक मानने के लिए क्यों तैयार नहीं हो पाता है ? आज हम दुनिया भर में महिलाओं की आज़ादी के समर्थक बने फिरते हैं पर जब अपने घरों में समानता का व्यवहार किये जाना का समय आता है तो सारी बंदिशें घर की महिलाओं और लड़कियों पर ही लगा करती हैं और पुरुषों और लड़कों के दोषों को सदैव ही बेशर्मी के साथ ढांकने का प्रयास ही किया जाता है जो कहीं न कहीं से इस तरह से कुंठित पुरुषों के मन में महिलाओं के प्रति सम्मान को गायब ही कर देता है.
                      इस मामले में सरकार ने जिस तरह से बीबीसी के खिलाफ कार्यवाही करने का मन बनाया है उसकी कोई आवश्यकता नहीं है क्योंकि यह भारतीय समाज का बेहद क्रूर और घिनौना सच है जिससे अब बाहर निकालने और इसका सामना करने की ज़रुरत भी है पर हम एक बार फिर से शुतुरमुर्ग की तरह सच्चाई से मुंह मोड़ने में लगे हुए हैं. हमारी इस तरह की हरकतों के चलते ही आज भारत का पर्यटन उद्योग प्रभावित हो रहा है क्योंकि हमारे बीच संरक्षण पाने वाले छिछोरी मानसिकता के लोग आज भी पर्यटकों के साथ दुर्व्यवहार करने से बाज़ नहीं आते हैं जिससे हम दुनिया भर के लोगों के सामने एक खतरनाक देश के रूप में आगे बढ़ने लगते हैं. देश के सामाजिक परिवेश में पुरुष की प्रधानता का ही यह दुष्प्रभाव है कि कोई मुकेश पूरी बेशर्मी के साथ आज मौत की सजा पाने के बाद भी लड़कियों को ही दोषी ठहराता है और हम इतने सब के बाद ही जाग पाते हैं. बीबीसी के विरुद्ध एक इंटरव्यू को रोक कर सरकार के हाथ क्या लगने वाला है यह तो वही बता सकती है पर क्या आज सूचना क्रांति के युग में ऐसे किसी कंटेंट को सरकार प्रभावी तरीके से रोक पाने में सक्षम भी है ?
                      यह सही है कि बीबीसी ने कुछ मामलों में सरकार के साथ हुई सहमति का उल्लंघन किया है पर क्या सरकार और तिहाड़ जेल प्रशासन के लिए यह जागने का समय नहीं है क्योंकि कोई भी व्यक्ति जब जेल में जाकर मौत की सजा पाये व्यक्ति का इस तरह से इंटरव्यू ले रहा है तो क्या उन्हें किसी ज़िम्मेदार व्यक्ति को उस समय वहां पर तैनात नहीं करना चाहिए था ? यदि सरकार की तरफ से आदेश थे कि दिखाने से पूर्व इसे जेल प्रशासन को दिखाया जाये तो किस स्तर पर चूक हुई है यह देखने का विषय है न कि बीबीसी के खिलाफ इस तरह से कानूनी कार्यवाही करने का. इस मामले में सरकारी स्तर पर पूरी तरह से चूक हुई है यदि सरकारी कामों को थोड़ी संवेदनशीलता के साथ किया जाने लगे तो इस तरह कि गलतियां होने की संभावनाएं कम हो सकती हैं पर फाइलों पर आदेश देने के बाद सभी को यह लगता है कि सब कुछ ठीक तरह से हो जायेगा. निश्चित तौर पर बीबीसी की तरफ से कानून का उल्लंघन किया गया है पर क्या जेल प्रशासन की लापरवाही इस मामले में पूरी तरह से उजागर नहीं हो जाती है. सरकार की तरफ से अपने चेहरे को बचाने के लिए इस तरह की हरकतें करने से पूरी दुनिया में उसके रुख का पता चल ही गया है.      
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