मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 8 मार्च 2015

कश्मीर, सईद और भाजपा

                                             पूरे देश में किसी भी तरह से अपनी या एनडीए की सरकार का सपना देखने वाली भाजपा के लिए कश्मीर में उसके सहयोग से बनी मुफ़्ती सरकार की तरफ से जिस तरह से रोज़ ही नया संकट खड़ा किया जा रहा है वह दोनों दलों की राजनीति के लिए भले ही कैसा भी साबित हो पर पिछले दशक में कठिन प्रयासों से शांति को प्राप्त करने वाले कड़े क़दमों पर असर जरूर डाल सकता है. कश्मीर भारत और पाकिस्तान के बीच आज़ादी के बाद से ही विवाद का बहुत बड़ा विषय बना हुआ है और आज जिस तरह से एक बार फिर से कश्मीर में सईद सरकार द्वारा आम लोगों की भावनाएं भड़काने की कोशिशें शुरू की जा चुकी हैं उनसे देश को कोई अच्छा सबक नहीं मिलने वाला है. कश्मीर घाटी में स्थिति राजनैतिक दल और नेता कश्मीरियत की लम्बी चौड़ी बातें करने से पीछे नहीं हटते हैं पर कोई भी यह बात स्पष्ट रूप से कहने का साहस नहीं रखता है कि जिस कश्मीरियत में कश्मीर पंडित और सिख भी थे वह कश्मीरियत कहाँ गायब कर दी गयी है ? पुलिस और सुरक्षा बलों पर पत्थर फेंकने के लिए उकसाने वाले के लिए मुफ़्ती को अधिकार याद आते हैं पर उन विस्थापितों के लिए कोई अधिकार शायद नहीं बचे हैं जिन पर मुफ़्ती भी ध्यान दे सकें ?
                                    जिस सरकार के गठन में संघ/ भाजपा के राम माधव जैसे लोग शुरू से ही जुटे हुए थे तो क्या उन्होंने इस तरह की सरकार की परिकल्पना की थी और राजनीति से दूर यदि विकास एक एजेंडा था तो वह कहाँ गायब हो गया है ? इस सब से केवल एक बात ही स्पष्ट रूप से सामने आ रही है कि भाजपा ने सरकार बनाने की जल्दबाज़ी में न्यूनतम साझा कार्यक्रम बनाने की कोई कोशिश ही नहीं की जिसका असर आज दिखाई दे रहा है. भाजपा और पीडीपी को यह समझना होगा कि सेना और जम्मू कश्मीर पुलिस के दम पर जो शांति घाटी में मुश्किलों और बलिदानों के बाद आई है उसे राजनीति से पूरी तरह अलग रखे जाने की आवश्यकता भी है क्योंकि जब तक इतने संवेदनशील मुद्दों पर भी खोखली और लोकलुभावन राजनीति ही की जाती रहेगी तब तक इस प्रदेश को संकट से निकालने के किसी भी प्रयास से कुछ भी हसिल नहीं हो सकता है. एक हफ्ते पुरानी सरकार के लिए खुद मुफ़्ती जितने बड़े संकट खड़े करने में लगे हुए हैं उसे क्या उनकी छिछली राजनीति का ही नहीं पता लगता है जबकि वे लम्बे समय से राजनैतिक जीवन जीने वाले व्यक्तियों में से हैं ? आज यदि ये नेता फालतू की बातें करने की स्थिति में हैं तो उसके पीछे केवल सुरक्षा बलों के अथक प्रयास ही हैं वर्ना किसी आतंकी की कोई गोली अब तक इनके सीने को छलनी कर चुकी होती.
            आज की स्थिति को देखते हुए मुफ़्ती की नियति पर संदेह सिर्फ इसलिए भी होता है क्योंकि वे जितनी तेज़ी से एक तरफ़ा फैसले लेने में लगे हुए हैं उनका क्या औचित्य है ? यदि मसर्रत को रिहा किया जाना ही था तो क्या उनको एक नीति बनाकर नहीं छोड़ा जाना चाहिए था और उनसे इस बात का विश्वास भी नहीं लिया जाना चाहिए था कि वे आने वाले समय में फिर से इस तरह की अलगाववादी सोच से युवाओं को बरगलाने का काम नहीं करने वाले हैं ? जिन घरों के युवा पत्थरबाजी के समय में घायल हुए या मारे गए क्या उनकी तरफ से मसर्रत को इतनी आसानी से स्वीकार किया जा सकेगा उस पत्थरबाजी से किसको क्या हासिल हुआ था क्या मुफ़्ती सरकार इस बारे में विचार करने की स्थिति में भी है ? राजनैतिक बंदियों को जेल में नहीं रखा जाना चाहिए यह अच्छी सोच है पर देश के विरुद्ध युवाओं को भड़काने में लगे हुए लोगों को बिना किसी ठोस योजना के इस तरह से रिहा कर देने से सरकार का किस तरह का सन्देश पूरे देश में जाने वाला है यह मुफ़्ती की सोच से बहुत दूर है. मुफ़्ती को भी यह पता ही है कि भाजपा के साथ यह बेमेल शादी ज़्यादा दिन नहीं टिकने वाली है इसलिए वे भविष्य में होने वाले चुनावों के लिए अपनी पार्टी का हित साधने में लगे हुए हैं जिससे आने वाले समय में घाटी के अलगाववादी उनके उनके पक्ष में आ जाएँ.     
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