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बुधवार, 15 अप्रैल 2015

रामपुर - अतिक्रमण से सियासत तक ?

                                                     छोटे छोटे मामलों को सियासत किस हद तक बिगाड़ सकती है इसका ताज़ा उदाहरण यूपी के रामपुर से अच्छी तरह से समझा जा सकता है क्योंकि सामान्य प्रशासनिक कार्यों में जिस तरह से राजनीति का समावेश किस हद तक हावी हो सकती है यह इस बार एक बार फिर से दिखाई देने लगा है. इस मामले में अभी तक रामपुर नगर पालिका द्वारा जहाँ पूरी बाल्मीकि बस्ती को ही अवैध बताया जा रहा है वहीं दूसरी तरफ बाल्मीकि समुदाय के लोगों द्वारा यह भी कहा जा रहा है कि नगर पालिका के ड्राफ्ट्स मैन सिब्ते नबी ने जबसे यह कहा है कि इस्लाम अपनाने वालों के घर नहीं हटाये जायेंगे तभी से पूरे मामले ने नया मोड़ ले लिया है. इलाके के बाल्मीकि समाज द्वारा सांकेतिक तौर पर टोपी पहनकर इस्लाम अपनाने की बात भी सामने आई है क्योंकि घर बचाने का अब उनके पास कोई और रास्ता नहीं बचा है साथ ही उनका यह कहना है कि उनके क्षेत्र में अब किसी मुस्लिम धर्म गुरु को नहीं आने दिया जा रहा है और वे नहीं जानते कि इस्लाम कैसे अपनाया जाता है. हालाँकि इन लोगों के बुलावे पर पहले अमरोहा के एक मौलवी साहब यहाँ आये थे पर जब उन्हें मामले का पता चला तो उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि लालच या दबाव में इस्लाम नहीं अपनाया जा सकता है जिसके बाद धर्मपरिवर्तन भी नहीं हो पाया था.
                      अब इस मामले में पूरी तरह से निष्पक्ष जांच की आवश्यकता है क्योंकि मामला प्रशासनिक स्तर के अतिक्रमण को हटाने से लेकर अब धर्मपरिवर्तन की तरफ मुड़ चुका है जिसके बाद किसी भी तरह से यूपी के प्रशासन से अब रामपुर मामले में कुछ भी किये जाने पर उस पर आरोप लगने ही वाले हैं क्योंकि यूपी के सबसे ताकतवर मंत्री आज़म खान के गृह नगर होने से सभी को यही लग रहा है कि मामले में निष्पक्षता नहीं अपनायी जाएगी. यदि विकास से जुड़ा कोई अहम मामला वहां पर अटक रहा है तो सबसे पहले यूपी सरकार को इस बारे में अपनी नीति में संशोधन करना होगा कि आने वाले समय में विकास के रास्ते में आने वाले किसी भी इस तरह के अवरोध को एक मज़बूत पुनर्वास नीति के तहत निपटाया जायेगा और इस तरह के मामलों में केवल कानून का ही अनुपालन किया जायेगा. विकास के रास्ते में किसी भी धार्मिक, जातीय या स्थानीय मुद्दे पर किसी की भी कोई बात नहीं सुनी जाएगी जिससे इन मसलों पर राजनीति करने  वालों के हाथों में कोई और मुद्दे भले ही आ जाये पर इस पर वे कोई भी सियासत न कर सकें.
                 मामला रामपुर और आज़म खान से जुड़ा हुआ होने के कारण और भी चर्चित हुआ जा रहा है क्योंकि बाल्मीकि समाज की तरफ से जिस तरह से यह कह दिया गया है कि वे अपना धर्म बदल लेंगें पर यह जगह नहीं छोडेंगें तो उससे पूरे प्रशासन के लिए मामले से निपटना और भी मुश्किल हो गया है. अब समय है कि खुद आज़म खान को इस मामले में पहल कर इसे समाप्त करने के बारे में सोचना चाहिए जिससे इसमें आज आया हुआ धार्मिक मामला ख़त्म किया जा सके. अतिक्रमण पूरे देश में ही प्रशासन के लिए सदैव से ही समस्या रहा है क्योंकि इससे निपटने के लिए सरकारें और प्रशासन किसी एक कानून के अनुसार काम नहीं करना चाहता है और सुविधा के अनुसार किसी भी जगह पर कानून के कान भी उमेठने का काम आसानी से किया जाता रहता है. इस मामले में अब इन लोगों के धर्मपरिवर्तन की संभावनाएं तो क्षीण ही हो गयी हैं साथ ही यूपी सरकार के लिए मामले से निपटना और भी आसान हो गया है. भाजपा इस मुद्दे पर अपनी राजनीति कर रही है तथा सपा बचाव की मुद्रा में ही नज़र आ रही है अभी तक बसपा ने इस मामले पर अपने पत्ते नहीं खोले हैं जिससे राजनीति किस करवट बैठने वाली है यह अभी नहीं कहा जा सकता है पर रामपुर बिना बात के ही तनाव में जीने को अभिशप्त है.     
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