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रविवार, 19 अप्रैल 2015

पर्यटन-कश्मीर और अराजकता

                                                          त्राल एनकाउंटर के विरोध के मुद्दे पर मसरत आलम के विवादित बयानों के बाद एक बार फिर से कश्मीर घाटी में वही अराजकता भरे प्रदर्शनों का दौर शुरू हो गया है जिसको देश पिछले कई वर्षों से देखता चला आ रहा है क्योंकि आज सीमापार से आने वाले आतंकियों पर बड़े पैमाने पर लगाम लगाने में भारत को मिली मिली सफलता के बाद पाक में बैठे जिहाद समर्थक नेताओं के पास अब और कोई रास्ते शेष नहीं बचे हैं तो यह उनकी किसी बहाने से कश्मीर को मुद्दा बनाये रखने की यह हताशा भरी एक और कोशिश ही अधिक लगती है. आज़ादी के समय से ही विवादित में घसीटे जा रहे कश्मीर को लेकर आज भी कश्मीरी जनता यह तय नहीं कर पायी है कि उसके पास कितने सुरक्षित विकल्प हैं जिन पर चलकर वह वास्तव में तरक्की के रास्ते पर आगे बढ़ सकती है इस अनिर्णय की स्थिति का सबसे अधिक लाभ अलगाववादियों के साथ पाक में बैठे हुए जेहादी समूहों द्वारा उठाने का प्रयास सदैव ही किया जाता है जिससे समय समय पर घाटी में ऐसा उबाल दिखाई भी देता है. यदि गौर से से देखा जाये तो इस तरह की घटनाओं को एक योजना के तहत ही शुरू किया जाता है और अराजकता फैला कर उसमें माहौल को भड़काने का प्रयास भी किया जाता है. पाकिस्तान की नज़रों में कश्मीर आज सामाजिक और आर्थिक मुद्दे से आगे बढ़कर धार्मिक और जेहादी मुद्दा अधिक बन चुका है जिसका खामियाज़ा आम कश्मीरी ही हर स्तर पर भुगत रहा है.
                                             पिछले कई वर्षों से यदि घाटी की परिस्थितियों को ध्यान से देखा जाये तो एक बात स्पष्ट रूप से सामने आती है कि अलगाववादी केवल उस समय ही अधिक सक्रिय होते हैं जब कश्मीरियों के लिए पर्यटन से अपनी रोज़ी रोटी कमाने का सबसे उपयुक्त समय होता है. आखिर इन अलगाववादियों से कोई आम कश्मीरी यह पूछने का साहस क्यों नहीं कर पाता है कि इस्लाम में कहाँ पर भूखे को अपनी रोज़ी रोटी कमाने के समय में अनावश्यक प्रदर्शनों में झोंक देना सही बताया गया है क्योंकि यह सब कश्मीरियों को आर्थिक रूप से कमज़ोर रखने की एक साज़िश अधिक है जिसमें उनको आसानी से विद्रोही बनाया जा सके ? कितने जेहादी समूहों द्वारा आज तक कश्मीरी लोगों की रोज़ी रोटी जुटाने के प्रयासों का समर्थन किया जाता है यह कोई पूछने वाला नहीं है फिर भी लोग इस धार्मिक अफीम के चक्कर में पड़कर अपनी जान गंवाने में लगे हुए हैं. धार्मिक रूप से किसी भी समूह को बरगलाना और भड़काना आसान होता है और दुर्भाग्य से साप्ताहिक जुमे की नमाज़ के बाद आये हुए लोगों से प्रदर्शन करवाने की कश्मीरी अलगाववादियों की कोशिशें मामले को और भी बिगाड़ने का काम ही किया करती हैं. पाकिस्तान समेत अरब और मध्य पूर्व के इस्लामी देशों में जुमे का दुरूपयोग करने के कई उदाहण सामने हैं क्योंकि विभिन्न समूहों के जेहादी अब मस्जिदों में इबादत करने और वहां से निकलने वाले लोगों को आत्मघाती हमलों में मारने से नहीं चूकते हैं ? भारत इस मामले में बहुत सुरक्षित ही है क्योंकि यहाँ से धर्म के नाम पर इस तरह का नरसंहार अभी तक पूरी तरह से दूर ही है फिर भी जिस तरह से मस्जिदों का दुरूपयोग कश्मीर में अलगाववादियों द्वारा शुरू किया जा चुका है वह निश्चित तौर पर आने वाले समय में किसी गंभीर संकट को जन्म दे सकता है.
                                       आज घाटी के लोगों को यह स्पष्ट रूप से समझना ही होगा कि वे केवल पाक में हर तरह की सुख सुविधा भोग रहे नेताओं के नाम पर जिहाद के साथ जाना चाहते हैं या फिर इस पर्यटन सीज़न शुरू होने के समय में घाटी को पर्यटकों से भरा हुआ देखना चाहते हैं ? पिछले वर्ष भी जिस तरह से बाढ़ ने घाटी के साथ जम्मू और लद्दाख क्षेत्र का पर्यटन क्षेत्र से होने वाली आमदनी पर बुरा असर डाला था तो उसके बाद इस वर्ष पर्यटकों के आना शुरू होने से पहले ही इस तरह से घाटी को अशांत करना किसके हित में है ? दुर्भाग्य से घाटी के लोग या तो इस बात को समझ नहीं पाते हैं या फिर आतंकियों के डर से अपने नुकसान को देखते रहते हैं क्योंकि आज तक किसी भी क्षेत्र से किसी भी कश्मीरी ने इस तरह की कोई मांग सामने नहीं रखी है जिसमें यह कहा गया हो कि घाटी में हिंसक प्रदर्शन बंद होने चाहिए जिस किसी को भी विरोध करना है वह शांति से करे जिससे घाटी के पर्यटन व्यवसाय पर इसका दुष्प्रभाव न पड़े. अब पानी सर से ऊपर होता जा रहा है क्योंकि हर वर्ष पर्यटकों की आमद बढ़ने के साथ ही अलगाववादियों की इस तरह की गतिविधियाँ बढ़ने लगती हैं और इस तरह के माहौल में शांति के साथ समय बिताने के लिए आने वाले लोगों के पास घाटी के अलग दूसरे विकल्प खोजने के आलावा कोई चारा नहीं बचता है. इन नेताओं को घर या नज़रबंद रहने पर किसी तरह की परेशानियां तो नहीं होती हैं पर आम जनता के युवा बच्चे इस राजनीति का शिकार होते रहते हैं क्योंकि इन नेताओं को यही लगता है कि प्रदर्शन होते रहने चाहिए और सुरक्षा बलों को मजबूर किया जाता रहे कि वे कुछ गलतियां करने जिससे प्रदर्शन को और भी अधिक धार दी जा सके तथा पूरी दुनिया में यह प्रचारित किया जा सकै कि भारत कश्मीरियों पर बहुत जुल्म करने में लगा हुआ है. पूरे मामले में एक बात तो स्पष्ट ही है कि जिहाद और धर्म के नाम पर जिस तरह से पूरी दुनिया में आज मुसलमानों को विद्रोही बनाने का दुष्चक्र लगातार चलाया जा रहा है उस परिस्थिति में घाटी में कुछ बहुत अच्छे की उम्मीद भी नहीं की जा सकती है क्योंकि खुद घाटी के लोग इस अराजकता को झेलने के लिए मानसिक रूप से तैयार दिखते हैं.  
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