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गुरुवार, 14 मई 2015

भ्रष्टाचार पर बयान और यथार्थ

                                           केंद्र में सत्ता संभाले राजग सरकार को एक वर्ष पूरा होने को है पर अभी तक वह अपने सबसे महत्वपूर्ण चुनावी वायदे भ्रष्टाचारियों को सजा दिलवाने के मामले में कुछ ठोस करती हुई नहीं दिखाई देती है बल्कि सरकारी अफसरों से जुड़े बहुत सारे ऐसे मामले सामने आये हैं जिनमें मोदी सरकार ने सीबीआई को मामला चलने की अनुमति ही नहीं दी है और सीबीआई केस डाल ही नहीं पायी. सबसे चिंता की बात यह भी है कि इनमें से कई मामले संप्रग के समय फरवरी १४ में ही सीबीआई को सौंपे गए थे पर अभी तक सरकार को इतनी फुर्सत नहीं मिली है कि वह इस पर कोई निर्णय ले सके ? अब जब खुद मोदी और उनके मंत्री किसी बड़ी उपलब्धि के हाथ में न आने के बाद एक बात ज़ोर कहते हुए नज़र आ रहे हैं कि यह सरकार भ्रष्टाचार मुक्त है तो क्या इन अधिकारियों को बचाने की प्रवृत्ति को भ्रष्टाचार पर हमला ही माना जाये या इसे कुछ और नाम दिया जाये ? संप्रग के समय के अधिकांश मामले वे हैं जिन पर लोगों को गलत तरीके से लाभ पहुँचाने के आरोप कई बड़े नौकरशाहों पर लगे हुए थे पर अब जब मोदी के पास इन पर कार्यवाही करने का मौका है तो वह सीबीआई को चार्जशीट दखिल करने की आवश्यक अनुमति ही नहीं दे रही है जिससे इन बड़े अफसरों के खिलाफ जाँच आगे नहीं बढ़ पा रही है.
                               आज के समय में जो कानूनी स्थिति है उसमें जॉइंट सेक्रेटरी या उससे ऊपर के किसी भी अधिकारी के खिलाफ मामला चलाये जाने के लिए सीबीआई को सरकार से अनुमति लेनी पड़ती है और यदि सरकार से तीन महीने में ऐसी अनुमति नहीं देती है तो यह मामला नहीं चलाया जा सकता है. सीबीआई ने कई मामलों में सरकार की चुप्पी के बाद बिना उनकी अनुमति के ही चार्जशीट दाखिल कर दी जिन्हें कानूनी आधार पर कोर्ट में वकीलों द्वारा खारिज करवा दिया गया अब ऐसी स्थिति में सीबीआई किस तरह से इन कथित भ्रष्ट अधिकारियों पर अपना शिकंजा कस सकती है यह मोदी सरकार में बताने वाला कोई नहीं है और केवल भ्रष्टाचार पर भाषण देने से ही सब कुछ सामान्य नहीं होने वाला है. आज भी सीबीआई लगभग सौ मामलों में सरकार की अनुमति के इंतज़ार में है और उसने सरकार के सामने अपने निवेदन कर रखे हैं पर संभवतः सरकार में इस मामले पर चुप्पी साधे रहने की नीति पर ही काम किया जा रहा है क्योंकि इनमें से अधिकांश मामले केवल राजनैतिक कारणों से चुनाव के समय भाजपा ने उठाये थे और उनमें कोई दम नहीं था तथा जिन अधिकारियों को तब भ्रष्ट कहा जा रहा था वे इस सूची में आते ही नहीं थे और नीतिगत मामलों में भी उन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये गए थे जिन्हें सिद्ध कर पाना आज भी बहुत मुश्किल ही है.
                               इस मामले में सरकार को फिलहाल जिन अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के निवेदन मिले हैं कायदे से उन सभी को अनुमति दे देनी चाहिए जिससे एक बार यह साफ़ हो सके कि इनमें से कितने अधिकारी भ्रष्ट थे और कितने निर्दोष ? इस तरह की पीड़ा के साथ जीने से अच्छा है कि उन पर या तो कार्यवाही कर दी जाये या उन्हें निर्दोष तो कहा जाये पर आज यदि इस तरह का कोई बड़ा कदम मोदी सरकार उठाती है तो इनमें से अधिकांश निर्दोष अधिकारियों द्वारा अपने मंचों से इस तरह की किसी भी कार्यवाही का कड़ा विरोध भी किये जाने की संभावनाएं हैं और इस नीतगत जड़ता को तोड़ने के लिए अब सरकार के सामने यह मजबूरी है कि वह अधिकारियों को काम करने के लिए खुला छोड़ सके. इस सबमें आज भाजपा के वे आरोप अधिकारियों को काम करने से रोक रहे हैं जिनके चलते उनके कई साथियों को आज निर्दोष होते हुए भी कोर्ट के अनावश्यक रूप से चक्कर काटने पड़ रहे है और इस सबके लिए खुद भाजपा ही ज़िम्मेदार है क्योंकि उसने ही पिछली लोकसभा में संप्रग सरकार के हर निर्णय पर उँगलियाँ उठानी शुरू की थीं जिससे अधिकारियों द्वारा निर्णय लेने की क्षमता पर बहुत बुरा असर पड़ा था और अधिकारी भी जानते हैं कि इस तरह का हो हल्ला फिर मचाया जा सकता है इसलिए वे चुप होकर बैठे हैं जिससे आज मोदी सरकार भी अपने बहु प्रचारित कामों को धरातल पर नहीं उतार पा रही है और खुद अरुण जेटली तक को इन निर्णयों को कानूनी लफड़ों से बचाये जाने की बातें कहनी पड़ रही हैं जिसे यही पता चलता है कि भाजपा की विपक्ष के रूप में भूमिका कहीं न कहीं गलत अवश्य थी.       
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