मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 15 मई 2015

मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई सीमा

                                                       पूरी दुनिया के बाज़ारों का दबाव किस तरह से किसी भी सरकार पर पड़ सकता है इसका ताज़ा उदाहरण देश में मोदी सरकार द्वारा मल्टी ब्रांड रिटेल में एफडीआई की सीमा को ५१ % किये जाने से पता चल जाता है. आज के समय में जिस तरह से देश की अर्थ व्यवस्था को पूरी दुनिया के लिए खोलने और अपने चुनावी वायदों को पूरा करने के दबाव के चलते सरकार लगभग सारी वही नीतियां लागू करने में लगी हुई है जिसका वह संसद से सड़क तक विरोध किया करती थी अब उसके पसपने चहरे को बचाने के लिए कोई रास्ता नहीं सूझ रहा है. खुदरा बाज़ार में इस तरह से एफडीआई को अनुमति देने के बाद सरकार जिस तरह से कटघरे में खडी नज़र आ रही है उसके बाद खुद वित्त मंत्री अरुण जेटली और वाणिज्य मंत्री निर्मल सीतारमन की बोलती बंद हो गयी है और वे इसे मात्र डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रमोशन (DIPP) का एक नोटिफिकेशन बताकर बचने की कोशिशें करते नज़र आ रहे हैं. असल में विपक्ष में रहते हुए जिस तरह से भाजपा ने नीतिगत मुद्दों पर जमकर राजनीति की थी आज वह उसी का दुष्परिणाम भुगत रही है तथा उसके प्रभावशाली मंत्री भी कुछ कहने की स्थिति में नहीं है और वे बच्चों की तरह बहाने बनाने में ही लगे हुए हैं.
                               कारोबारियों द्वारा इस तरह की किसी भी अधिसूचना का विरोध किया जा सकता है संभवतः अपनी रणजीति को बीच में लाते हुए ही मोदी सरकार ने इस बारे में अपने स्तर से कोई निर्णय लेने के स्थान पर इसे एक डिपार्टमेंट के माध्यम से पिछले रास्ते से लागू करवाने की एक कोशिश की है क्योंकि यदि सरकार को लगता कि कोई ख़ास विरोध नहीं हो रहा है तो यह पॉलिसी बन जाती और अब जब विरोध होना शुरू हो चुका है तो इस मुद्दे से जुड़े हुए सरकार के दो मंत्री भी अपनी पार्टी का रुख बताने में लगे हुए हैं कि वे ५१% की सीमा का आज भी विरोध करते हैं और यह केवल एक विभाग का नोटिफिकेशन है सरकार इसका समर्थन नहीं करती है. इस पूरे मामले में सबसे हास्यास्पद बात यह है कि मज़बूत पीएम मोदी की सरकार में भी कोई डिपार्टमेंट ऐसा है जो पार्टी और सरकार की मंशा के खिलाफ इतना बड़ा निर्णय लेने की हिम्मत रखता है तो यह अवश्य ही चिंता की बात है. क्या इस सरकार में कोई एक डिपार्टमेंट इतना निरंकुश भी है जो सरकार के मंत्रियों और सरकार चला रही भाजपा के खिलाफ जाकर इस तरह के नोटिफिकेशन जारी कर सकता है ?
                             असल में इस पूरे मामले में जिस तरह से सरकार और भाजपा का दोहरा चरित्र सामने आ रहा है वह अभी तक छिपा हुआ था क्योंकि चुनावों में वोट लेने और देशहित के विभिन्न मुद्दों पर पिछली सरकार का विरोध करने की नीति के चलते ही आज उसे बार बार अपने स्थापित रुख से पलटना पड़ रहा है जो कि उसके अस्थायी समर्थकों पर अवश्य ही प्रभाव डालने वाला है. इस पूरे प्रकरण में सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि सरकार आज भी यह स्वीकार करने से अपने को बचाना चाहती है कि संप्रग सरकार की नीतियां अच्छी थीं क्योंकि उससे भाजपा की छवि अनावश्यक प्रतिगामी राजनीति करने के दल के रूप में भी सामने आ सकती है. अब भी समय है कि सरकार को इस तरह के दोहरे रवैये से बचना चाहिए जिससे देशहित में त्वरित निर्णय लिये जाने की कोशिशें सफल हो सकें और इस तरह के मुद्दों पर किसी के द्वारा भी अनावश्यक राजनीति न की जा सके. यदि भाजपा और मोदी सरकार को लगता है कि इस तरह की एफडीआई गलत है तो उसे अपने डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी ऐंड प्रमोशन (DIPP) को स्पष्ट निर्देश जारी करते हुए यह नोटिफिकेशन वापस लेने के लिए कहना चाहिए और सरकार की मंशा के खिलाफ जिसने भी यह आदेश जारी किया है उसके खिलाफ कार्यवाही भी करनी चाहिए.
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