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शनिवार, 16 मई 2015

मर्यादाएं और राजनैतिक मतभेद

                                                       सोशल मीडिया के आने के बाद से जहाँ आम और ख़ास लोगों को अभिव्यक्ति की आपार स्वतंत्रता मिल गयी है वहीं दूसरी तरफ कुछ लोगों द्वारा जिस तरह से अपने राजनीतिक प्रतिद्वंदियों के लिए टिप्पणियां करते समय हर मर्यादा का खुला उल्लंघन भी किया जा रहा है उसे कसीभी तरह से सही नहीं कहा जा सकता है. आज सबसे चिंता की बात यह है कि इस मानसिकता को सोशल मीडिया पर रोकने में सभी लोग पूरी तरह से अभी तक असफल ही साबित हुए हैं क्योंकि जिस तरह से सभी राजनैतिक दल अपने निचले स्तर के नेताओं को इस तरह की बातों के लिए खुली छूट देते रहते हैं उसे किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है. एक मामले में हिमाचल में मुख्य संसदीय सचिव (शिक्षा) और सीएम वीरभद्र सिंह के करीबी विधायक नीरज भारती ने विपक्षी भाजपा के नेताओं पर टिप्पणियां करते समय फेसबुक पर लम्बे समय से मर्यादाओं की सारी सीमायें पार कर रखी हैं उससे यही साबित होता है कि कहीं न कहीं खुद सीएम की तरफ से भी उनकी इस बात के लिए अनदेखी की जा रही है जो कि सभ्य और लोकतान्त्रिक मूल्यों में किसी भी तरह से बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है क्योंकि किसी का भी राजनैतिक प्रतिद्वंदी होने का यह मतलब नहीं हो सकता है कि उसे कुछ भी कहने का हक़ किसी को मिल जाता है.
                                   किसी भी व्यक्ति से वैचारिक, राजनैतिक, क्षेत्रीय, व्यक्तिगत, सामाजिक मतभेद किसी के भी हो सकते हैं पर देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर क्या किसी को भी कुछ भी कहने की छूट मिली हुई है ? सरकार चला रहे नेता सदैव ही विपक्षियों के निशाने पर रहा करते हैं और कई बार चुटीले अंदाज़ में राजनेता तीखी टिप्पणियां भी करने से नहीं चूकते हैं पर उसमें हास्य व्यंग का समावेश हुआ करता है और प्रतिद्वंदी भी उसी अंदाज़ में कुछ हल्का फुल्का कहने में नहीं चूका करते हैं. पर पिछले कुछ वर्षों में यह स्थिति पूरी तरह से बदलती हुई नज़र आ रही है और नयी पीढ़ी के नेता जिस तरह से दूसरों पर बेहद निजी हमले करने में मर्यादाओं की सारी सीमाएँ तोड़ने पर आमादा दिखाई देने लगे हैं उससे कुछ भी हासिल नहीं हो सकता है. सबसे दुर्भाग्यपूर्ण बात यह भी है कि ऐसे विवादित लोगों को सरकारों में महत्वपूर्ण पद भी दिए जाने लगे हैं जिससे भी नयी पीढ़ी के नेताओं को यह लगने लगा है कि वे भी कहीं न कहीं से इस तरह के छोटे मार्ग आर चलकर अपनी राजनीति को आसानी से आगे बढ़ा सकते हैं.
                                अब समय आ गया है कि सभी राजनैतिक दलों के वरिष्ठ नेताओं को अपने निचले स्तर के नेताओं तक यह सन्देश भेजना ही चाहिए जिसमें उन्हें यह स्पष्ट किया जाए कि राजनैतिक प्रतिद्वंदिता में व्यक्तिगत हमलों की कोई जगह नहीं हो सकती है और मर्यादाओं को लांघने वालों को कुछ समय तक पार्टी और सरकार में कोई स्थान नहीं दिया जायेगा तथा उन्हें महत्वपूर्ण संसदीय समितियों में भी कोई स्थान नहीं दिया जायेगा. इस मामले पर एक दूसरे की तरफ ताकने के स्थान पर किसी के दल को ही इस गंदगी को साफ़ करने के लिए आगे आना पड़ेगा जिससे दूसरे दलों पर भी यह दबाव बनाया जा सके कि उनको भी इस तरह की गतिविधियों में निरंतर लगे रहने वाले लोगों को रोकने की दिशा में काम करने के लिए मजबूर या प्रेरित किया जा सके. यह शुरुवात किसी न किसी को तो करनी है और यह भी स्पष्ट है कि अभी हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने भी एक मामले में याची को इस बात के निर्देश दिए थे कि कोई भी व्यक्ति अपनी याचिका में नेताओं के खिलाफ आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग नहीं कर सकता है क्योंकि नेता और संसद भारतीय लोकतान्त्रिक प्रणाली में जनता द्वारा चुने गए और सर्वोपरि हैं. इस मामले में खुद कांग्रेस को उच्च स्तर से यह सन्देश देना चाहिए कि किसी भी कैडर का कोई भी नेता इस तरह के बयान जारी नहीं कर सकता है जो निजी और मर्यादाओं के उल्लंघन की सीमा तक जाते हों.       
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