मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 13 मई 2015

चीनी पूर्वाग्रह और मोदी का दौरा

                                                               दलाई लामा के भारत आने और १९६२ तथा १९६५ की बड़ी लड़ाईयों के बाद से ही भारत चीन सम्बन्ध आज तक उस स्थिति में नहीं पहुँच पाये हैं जहाँ उन्हें आज के परिदृश्य में होना चाहिए था जिसके लिए संभवतः चीन का पूर्वाग्रह और उसका केवल अपनी विस्तारवादी नीतियों के बारे में सोचने से समझा जा सकता है. निश्चित तौर पर चीन में एक पार्टी का राज होने के चलते वहां पर किसी भी तरह के नीतिगत निर्णयों को करने में कोई दिक्कत नहीं आती है संभवतः इसलिए अपने बाज़ारों को भारत के बाद विश्व के लिए खोलने वाले चीन ने आज उत्पादन के क्षेत्र में हमसे बहुत अधिक दूरी तय कर ली है और आज पूरे विश्व में वह अपने यहाँ बने हुए सस्ते माल को खपाने में सफल हो पाया है. भारत में जहाँ राजनैतिक कारणों से अधिकांश बार नीतियों पर गंभीर चर्चाएं ही नहीं हो पाती वहीं नेता और राजनैतिक दल केवल अपने लाभ के बारे में ही सोचते रहते हैं जिससे भी अर्थव्यवस्था पर अनावश्यक रूप से दबाव पड़ता रहता है और देश की प्रगति उस स्तर तक नहीं पहुँच पाती है जहाँ उसे आज होना चाहिए था.
                      पीएम मोदी की चीन यात्रा के साथ ही एक बार फिर से वही आशंकाएं सामने आने लगी हैं जिनके चलते आज तक भारत चीन सम्बन्ध सामान्य नहीं हो पाये हैं. मोदी के चीन दौर से पहले वहां के सरकारी नियंत्रण वाले अख़बारों में जिस तरह से उन पर सन्देह जताया जा रहा है वह भी चीन की स्थापित नीति का एक हिस्सा भर ही है क्योंकि महत्वपूर्ण दौरों से पहले चीन अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख समेत अन्य विवादित मुद्दों पर लगातार कुछ न कुछ करने लगता है पिछले वर्ष चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे के समय दमचुक और चुमार सेक्टर में चीनी सेना ने लगातार अपने टेंट लगाये रखे थे जिससे मोदी को भी मीडिया में असहज स्थिति का सामना करना पड़ा था. चीन के थिंक टैंक ने इस बार मोदी की नियति पर ही संदेह जाता दिया है जिस पर विदेश मंत्रालय की तरफ से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया सामने नहीं आई है जबकि सीधे पीएम पर इस तरह के आरोप लगाने को गंभीरता से लिया जाना चाहिए. अखबार मोदी द्वारा देश में अपनी छवि चमकाने के लिए किये जाने वाले उपायों पर भी प्रश्न लगाता दिखाई देता है जो कि सीधे सीधे ही भारतीय पीएम की गरिमा को ठेस पहुँचाने वाला है.
                       चीन कभी भी विश्वसनीय देश नहीं रहा है और इस बात के लिए मोदी को बेहद सतर्क रहने की आवश्यकता भी है भले ही आज चीन को भारत का बड़ा बाज़ार दिखाई दे रहा है पर चीनी उद्योगों के स्पष्ट दबाव को आज भारतीय उद्योग जगत जिस तेज़ी के साथ महसूस कर रहा है संभवतः वह अभी सरकार को नहीं दिखाई दे रहा है और आने वाले समय में जब व्यापारिक परिस्थितयों के चलते भारत और चीन आमने सामने होंगें तो चीन किसी भी हद को पार का सकता है. उसके दुस्साहस का अंदाज़ा तो इस बात से ही लगाया जा सकता है कि उसके राष्ट्रपति के महत्वपूर्ण भारत दौरे के समय भी सेना द्वारा भारत की सीमाओं का लगातार अतिक्रमण किया जाता रहा तथा उस पर मोदी सरकार की तरफ से कोई बयान तक नहीं आया था संभवतः इसी बात ने चीनी सरकारी मीडिया को सीधे पीएम मोदी पर भी हमले करने के अवसर दे दिए हैं और वे यह परखने में लगे हुए हैं कि आने वाले समय में मोदी पर हमला करने पर भारत सरकार का चीन के प्रति क्या रुख रहने वाला है ? चीन को भारत के साथ अपने व्यापार को बढ़ाना तो है पर साथ ही वह कमज़ोर मुद्दों पर भारत को दबाव में भी रखना चाहता है. विपक्ष में रहते हुए चीन के साथ किसी भी मुद्दे पर चिल्लाने वाले भाजपा प्रवक्ता अब इस तरह की परिस्थितियों में फंसने पर किस तरह से चेहरा बचाने लायक उत्तर खोजते दिखाई देते हैं अब यह टीवी पर एक सामान्य बात हो चुकी है.       
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