मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 22 मई 2015

आयकर दायरे का विस्तार

                                                       भारत में आयकर देना या न देना सदैव से ही बहुत विवादित मुद्दा रहा है और आज भी जिस तरह की आयकर सीमायें देश में चल रही हैं उन्हें किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता है आज किसी भी बड़े परिवर्तन से पहले उनको तर्क संगत बनाये बिना किसी भी स्तर पर आयकर विभाग को सही कर मिलने की संभावनाएं बहुत ही कम हैं. बेहतर अर्थशास्त्री होने के बाद भी मनमोहन सिंह देश के पीएम होने से पहले भी वित्तीय क्षेत्र के विभिन्न स्तरों पर काम कर चुके थे पर उन्हें भी राजनैतिक कारणों से इस बात की पूरी छूट कभी भी नहीं मिली कि वे आयकर नियमों में आज के समय के अनुसार व्यापक परिवर्तन कर सकें. अपने चुनावी समय में भाजपा द्वारा भी इस बात को बहुत दृढ़ता के साथ उठाया जाता था और आज के वित्त मंत्री जेटली समेत कुछ अति उत्साही लोग तो यहाँ तक कह देते थे कि आयकर में छूट की सीमा ५ लाख तक होनी चाहिए पर सत्ता में आने के बाद ज़मीनी सच्चाइयों से सामना होने के बाद मोदी सरकार भी इस मसले पर कोई बड़ा कदम नहीं उठा पायी क्योंकि आयकर देश के विकास में कर संग्रह से अधिक राजनैतिक मामला अधिक है और संभवतः इसके लिए सभी राजनैतिक दल ही ज़िम्मेदार ठहराए जा सकते हैं.
                                      अभी कुछ दिनों पहले ही सेंट्रल बोर्ड ऑफ डायरेक्ट टैक्सेज (सीबीडीटी) की चेयरपर्सन अनीता कपूर ने देश के विभिन्न आयकर कार्यालयों को नोटिस भेज इस वित्त वर्ष के लिए तीन करोड़ नए करदाता जुटाने का लक्ष्य दिया है जिसे बाद से इस बात पर कवायद शुरू हो चुकी है कि आखिर इस लक्ष्य को किस तरह से प्राप्त किया जा सकता है क्योंकि आज भी देश में पता नहीं क्यों आम लोग आयकर देने के नाम से ही इतना डर जाते हैं कि वे इस मुद्दे पर कोई बात ही नहीं करना चाहते तथा आज के स्लैब के अनुसार जिन्हें आयकर चुकाना चाहिए वे भी किसी न किसी जुगाड़ के माध्यम से इससे बचने की कोशिश ही किया करते हैं. जिस तरह से प्रति माह लगभग २५ लाख लोगों को आयकर के ढांचे में लाने की यह बात सामने आई है वह कितनी व्यवहारिक साबित होती है यह तो आने वाला समय ही बता पायेगा पर यह तो स्पष्ट ही है कि देश में आम लोग आयकर देना ही नहीं चाहते हैं जिससे भी इस मामले में सरकार को कुछ सही करने के अवसर नहीं मिल पाते हैं. आज की परिस्थितियों के अनुसार हर नागरिक के लिए यह अनिवार्य किया जाना चाहिए कि वह अपना आयकर का विवरण खुले तौर पर विभाग के लिए उपलब्ध रखे जिससे सही कर संग्रह को बढ़ावा दिया जा सके.
                                        इस तरह के निर्णय लम्बी अवधि में ही फल देने वाले साबित होते हैं क्योंकि प्रारम्भ में इसके सामने आने वाली अड़चनों के चलते बहुत कुछ किया जाना संभव नहीं होता है फिर भी जिस तरह से सरकार ने एक कोशिश शुरू करने की तरफ कदम बढ़ाये हैं वे पूरी तरह से सही कहे जा सकते हैं. इस सबके साथ ही आज मंहगाई की दर और लोगों की आमदनी को देखते हुए भी इस बात पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता है कि टैक्स स्लैब भी सही स्तर पर होने चाहिए जिससे आम लोगों को टैक्स बचाने के बहुत सारे प्रयास न करने पड़ें. जिस तरह से सरकार धीरे धीरे टैक्स देने वालों की संख्या को बढ़ाना चाहती हैं उसी तरह से उसे टैक्स के स्लैब को भी एक नीति के तहत व्यवहारिक स्तर तक लाने की एक दीर्घावधि योजना पर विचार करते हुए उसे जनता के सामने लाना चाहिए जिससे जो लोग आज टैक्स देने से बचना चाहते हैं वे अब इस स्लैब में आसानी से आ सकें. पहली बार टैक्स देने वालों के भय को दूर करने के लिए उनके साथ परामर्श करने के लिए भी कुछ केंद्र बनाये जाने चाहिए जिससे लोगों के मन में बैठा हुआ आयकर का भूत भी भगाया जा सके. देश के विकास के लिए हर नागरिक से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने हर तरह के टैक्स का भुगतान समय पर और सही मात्रा में करेगा आम लोग यही चाहते हैं पर कुछ नीतियों की जटिलता भी कई बार उनको इस तरफ बढ़ने से रोक दिया करती है.       
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