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शनिवार, 9 मई 2015

१९८४ सिख विरोधी दंगा और राजनीति

                                                        इंदिरा गांधी की हत्या के बाद आज़ादी के बाद देश में हुए सबसे भीषण दंगों में मारे गए सिखों के परिवारों के लिए सही सहायता अभी भी एक बड़ा मुद्दा बनी हुई है क्योंकि समय समय पर विभिन्न दलों द्वारा जिस तरह से केवल राजनैतिक लाभ उठाने के लिए किये गए आधे अधूरे प्रयासों से आज तक उन पीड़ितों को सही न्याय और सहायता नहीं मिल पायी है. सिख दुनिया में सबसे संघर्षशील रह कर हर परिस्थिति में काम कर सकने में सक्षम कौम है और इस विपरीत परिस्थिति से भी उन्होंने अपने को उबारने का पूरा मज़बूत प्रयास किया है और आज वे उस काले अध्याय को पीछे छोड़ देश की प्रगति में अपना योगदान देने में पूरे मनोयोग से लगे हुए हैं. पर इस सब के बीच उन्हें आज भी सरकार की तरफ से उस सब की अपेक्षा तो है ही जो देश के आम नागरिक के रूप में किसी को भी हो सकती है क्या उनका इस तरह से सोचना गलत है या फिर देश के नेता यह सोचते हैं कि वे केवल चुनाव के समय इस बात का लाभ उठाने का प्रयास कर सकते हैं और अपनी राजनैतिक रोटियां भी सेंक सकते हैं.
                                                            कांग्रेस के लिए यह पूरा सिख विरोधी दंगा एक ऐसा अध्याय है जिससे वह चाह कर भी पीछा नहीं छुड़ा सकती है क्योंकि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद ही यह सब हुआ था और जब तक नव नियुक्त पीएम राजीव गांधी की समझ में कुछ आता तब तक घृणा फ़ैलाने वाले अपना जाल फैला चुके थे जिससे इस पूरी घटना की ज़िम्मेदारी चाहे अनचाहे कांग्रेस पर ही आती है. इस कारण से भी कांग्रेस के पास कहने को कुछ भी नहीं होता है और अकाली दल के साथ भाजपा भी इस मामले पर अपनी राजनैतिक रोटियां सेंकने से बाज़ नहीं आती है. केंद्र में मोदी सरकार के आने के बाद इस वर्ष दिल्ली चुनावों से पहले जिस तरह से गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने तेज़ी दिखाते हुए १६ पीड़ित परिवारों को पांच पांच लाख रूपये के चेक देते हुए इस बात की घोषणा की थी कि दिल्ली में प्रभावित सिख परिवारों को यह सहायता दी जाएगी तब लगा था कि मोदी सरकार अपने स्तर से इस पूरे मामले में कुछ ठोस करने की तरफ बढ़ना चाहती है पर चुनाव में भाजपा के प्रदर्शन के बाद से इस सहायता को कहाँ तक पहुँचाया गया है यह आज भाजपा की राजनैतिक महत्वाकांक्षा को ही दिखाता है क्योंकि उन १६ परिवारों के अलावा किसी और को आज तक यह सहायता नहीं मिली है.
                                                    यह सही है कि राजनैतिक कारणों से कांग्रेस के पास इस मुद्दे पर करने और कहने को बहुत कुछ नहीं था फिर भी उसके नेतृत्व द्वारा जिस अजीब तरह से अपने उन नेताओं का बचाव किया गया जिन पर इन दंगों को भड़काने का सीधा आरोप था उससे उसकी विश्वसनीयता सिख विरोधी दंगों में और संदिग्ध होती चली गयी. अब भाजपा ने भी जिस तरह से इन पीड़ित परिवारों के लिए अच्छी शुरुवात कर फिर उस पूरी प्रक्रिया को अभी तक आगे नहीं बढ़ाया है वह अवश्य ही चिंताजनक है. कांग्रेस के किसी भी प्रयास को सिख समुदाय दिल्ली में संदिग्ध ही मानता आया है पर जिस तरह से अकालियों की राजनैतिक मित्र भाजपा सरकार ने भी उसी की तरह कुछ पाने के प्रयास में दिल्ली में चेक बाँटे थे उससे भी सिख समाज में अच्छा संदेश नहीं जा सकता है. इस प्रक्रिया को अविलम्ब पूरा कर केंद्र द्वारा घोषित इस सहायता राशि को पीड़ितों तक पहुँचाया जाना चाहिए और इसमें किसी भी तरह की राजनीति से पूरी तरह से बचा भी जाना चाहिए. सिख स्वाभिमानी कौम है उसे किसी भी सरकार की इस तरह की सहायता से कोई विशेष उम्मीद नहीं है फिर भी राजनेता यदि अपनी राजनीति को साधने के लिए इस तरह से उनकी भावनाओं से खेलकर उनका दुरूपयोग करना बंद कर दें तो यह देश के लिए ही अच्छा होगा.    
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