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सोमवार, 11 मई 2015

दलित और सामाजिक भेदभाव

                                                         भले ही हम भारतीय अपने को कितना ही आधुनिक और प्रगतिशील बताने से नहीं चूकते हों पर आज भी समाज में बहुत सारे ऐसे पूर्वाग्रह और कुरीतियां मौजूद हैं जिनके चलते सदैव देश की छवि ख़राब ही हुआ करती है. मध्य प्रदेश के रतलाम जिले के नेगरुन ग्राम में उज्जैन के ग्राम बरछा से आई एक दलित परिवार की बरात में वहां के दबंगों ने ऐसा माहौल पैदा कर दिया कि दूल्हे को हेलमेट पहनकर घुड़चढ़ी करनी पड़ी जबकि इस सबकी आशंका के चलते ही लडकी के परिवार ने स्थानीय प्रशासन से बरात निकलने के समय विवाद होने की आशंका की स्थिति पर शिकायत भी कर रखी थी जिसको देखने के लिए पुलिस व प्रशासन कई दिनों से सुलह समझौता करवाने में लगे हुए थे फिर भी इस पूरे मामले उन दबंगों की ही चली और बरात के निकलते ही उन्होंने पथराव भी किया जिस कारण उप तहसीलदार, पुलिस कर्मियों समेत बाराती भी घायल हुए पर दूल्हे के लिए पहले से ही हेलमेट की व्यवस्था किये जाने के कारण वह पूरी तरह से सुरक्षित भी रहा. आखिर वे कौन से तत्व हैं जो आज के समय में भी दलितों पर इस तरह की पाबंदियां लगाने का दुस्साहस कर जाते हैं और कोई उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाता है ?
                                     आम तौर पर यह देखा जाता है कि देश भर में किसी भी स्थान पर मोहल्ले में परिवारों में कितना भी मतभेद क्यों न हो पर बेटी की शादी में कोई भी व्यक्ति किसी भी तरह का व्यवधान उत्पन्न नहीं करता है क्योंकि यह माना जाता है यह एक सामाजिक कार्य है. पर इस मामले में जिस तरह का मामला प्रथम दृष्टया लग रहा है उससे यही लगता है कि कहीं न कहीं इनके बीज देश की उस जातिगत व्यवस्था की कुरीतियों से जुड़े हुए होंगें जिसमें आज भी गांवों में ऊंची जातियों के लोग बराबरी की बातें तो किया करते हैं पर समय आने पर उस पर अमल करने से पूरी तरह किनारा कर लिया करते हैं और समाज में हज़ारों वर्षों से चली आ रही उस भेदभाव की बात को ही अपनाते रहते हैं जिसके कारण देश का बहुत नुकसान हुआ है. आखिर वे कौन से सामाजिक कारण हैं जिनके चलते एक दलित के घर सामान्य तरह से बारात नहीं आ सकती है और वे हिन्दू धर्म में होते हुए भी उन सामान्य सी रस्मों को उस तरह से नहीं निभा सकते हैं जैसी कथित उच्च जातियों में अपनायी जाती हैं ? आज भी समय आखिर इस तरह से बर्ताव कर हिन्दू समाज किस तरह का सन्देश इन दलितों को देना चाहता है जिसमें सभी लोग असमान ही माने जाएँ ?
                           एक सामाजिक रस्म को निभाने में यदि कोई समाज ही एकमत नहीं है तो वह अपनी प्रगति की बातें कैसे कर सकता है क्योंकि जिन दलितों को जिन भी कारणों से इस तरह के सामाजिक कार्यों को उच्च वर्गों की तरह करने से रोका जाता है तो हज़ारों वर्षों से इन उच्च जातियों की हर बात को मानने वाले इन दलितों के पास क्या विकल्प बचते हैं फिर भी यदि देखा जाये तो इन दलितों ने विपरीत परिस्थितियों में अपने मार्ग को सबसे कम ही छोड़ा है जबकि कथित उच्च जातियों ने अपने लाभ के लिए धर्मपरिवर्तन करने तक में कोई संकोच नहीं किया है और इतिहास भी इसी बात की पुष्टि किया करता है. इस तरह का मामला केवल मध्य प्रदेश में ही सामने आया हो ऐसा भी नहीं है पुलिस ने इस घटना के लिए ज़िम्मेदार १२ लोगों के खिलाफ कार्यवाही शुरू कर उन्हें हिरासत में ले लिया है पर क्या केवल पुलिस के स्तर से इस समस्या का समाधान निकाला जा सकता है क्योंकि यह प्रशासनिक से अधिक सामाजिक समस्या अधिक है और इसके लिए हिन्दू समाज को बैठकर अपने सभी वर्गों के लिए हर तरह कि रस्में निभाने की खुली छूट देने के बारे में सोचना चाहिए तथा किसी भी तरह की घटिया राजनीति से भी पूरी तरह बचना चाहिए क्योंकि उससे समाज में वैषम्य ही बढ़ना है.               
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