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बुधवार, 17 जून 2015

मैगी विवाद और उद्योग

                                       देश में आमतौर पर खाद्य पदार्थों को लेकर जनता से सरकार तक में जागरूकता की बहुत कमी पायी जाती है जिसके चलते कई बार ऐसे उत्पाद भी बाजार में धड़ल्ले से बिकते हुए नज़र आते हैं जो स्पष्ट रूप से स्वास्थ्य पर प्रतिकूल असर डालते हैं. अब जब नेस्ले की मैगी अपने आप में ही विवाद का बड़ा कारण बन चुकी है तो केंद्र और राज्य सरकारों के पास इस मसले पर सोचने और खाद्य निरीक्षकों को और भी ज़िम्मदेार किये जाने का समय आ चुका है. वैसे तो देश में पहले से ही खाद्य पदार्थों में उपयोग किये जाने वाले विभिन्न घटकों को लेकर एक मानक निर्धारित किया जा चुका है पर इस तरह से किसी खाद्य पदार्थ को लेकर कभी भी गहन जांच करने के मामले कम ही सामने आते हैं. निश्चित तौर पर मैगी अपने आप में हर घर तक पहुंचा हुआ ब्रांड है और इसमें जिस स्तर पर खतरनाक रसायन पाये गए हैं वे आने वाले दिनों में लापरवाही के कारण होने वाले किसी बड़े गंभीर संकट की तरफ ही इशारा किया करते हैं क्योंकि जब इसका बड़े पैमाने पर उपयोग किया जा रहा है तो उसी स्तर पर इसके दुष्प्रभाव भी दिखाई देने वाले हैं.
                              इस तरह के मामलों से निपटने के लिए अब केंद्र और राज्य सरकारों में उचित समन्वय की आवश्यकता भी है क्योंकि जब तक इस तरह के गंभीर मामलों में राज्य केंद्र की लड़ाई को किनारे नहीं किया जायेगा तब तक इस क्षेत्र को पूरी तरह से सुरक्षित नहीं किया जा सकता है क्योंकि देश में केंद्र और राज्यों में अलग अलग दलों की सरकारें होने पर वे गंभीर मामलों में भी राजनीति करने से नहीं चूका करती हैं जिसका सीधा असर आम जनता पर ही पड़ा करता है. अब इस दिशा में एक कठोर केंद्रीय कानून की आवश्यकता है जिसका राज्यों द्वारा पूरी तरह से अनुपालन किया जाना आवश्यक किया जाना चाहिए क्योंकि जब राज्यों के स्तर पर यह काम किया जाता है तो विभिन्न दलों की अलग अलग सोच होने के कारण गड़बड़ी को पकड़ने की गंभीर कोशिश भी नहीं की जाती है. बेशक देश में हर तरह की बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अपना काम करने की पूरी छूट है पर क्या वे इस तरह की मनमानी करने के लिए स्वतंत्र रूप से छोड़ी जा सकती हैं जबकि उनके द्वारा की जा रही लापरवाही सबके सामने आ चुकी है ? सरकार को खाद्य क्षेत्र में लगी हुई सभी देशी विदेशी कम्पनियों के लिए मानकों को और भी कडा कर नियमित जांच के बारे में भी सोचना चाहिए.
                             इस तरह के किसी भी बड़े चलते हुए ब्रांड के बंद होने से इससे जुड़े हुए लोगों पर भी उसका दुष्प्रभाव पड़ने से नहीं रोका जा सकता है और यही सब मैगी मामले में भी होता दिखाई दे रहा है. इसके उत्पादन से लगाकर वितरण और बिक्री तक जो भी लोग इससे अपनी रोज़ी रोटी कमा रहे थे उन पर भी संकट मड़राने लगा है जबकि देखा जाये तो सीधे तौर पर उनकी कोई भी गलती नहीं है. आज बड़े औद्योगिक समूहों के बारे में तो सरकारें भी सोचती हैं पर कारखानों में काम करने वाले कामगारों से लगाकर मज़दूरी कर अपना जीवन चला रहे लोगों के लिए इस तरह से ज़िंदगी कितनी कठिन हो जाती है इस पर कोई भी सोचना नहीं चाहता है. अभी मैगी कारखाने और उससे जुड़े हुए समूहों में अस्थायी लोगों को हटाये जाने की अपुष्ट ख़बरें सामने आनी शुरू हो चुकी हैं क्योंकि विवाद लम्बे समय तक चलते रहने से कम्पनी भी इन लोगों को कहाँ पर रखेगी यह किसी को नहीं पता है ? बड़ी कम्पनी फिलहाल तो अपने मैगी से जुड़े लोगों को अन्य उत्पादों में लगा सकती है पर इसकी सप्लाई चेन से जुड़े हुए लोगों के पास आज अभी से काम खत्म हो चुका है तो इन लोगों के बारे में भी चिंतित होने की बहुत आवश्यकता भी है.        
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