मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 24 जून 2015

लखवी-पाक-चीन और भारत

                                        मुंबई हमले को लेकर भारत और पाकिस्तान के बीच आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला अब दोनों देशों के बीच से निकालकर संयुक्त राष्ट्र तक पहुँच गया है क्योंकि भारत की तरफ से बहुत सारे सबूतों को उपलब्ध कराये जाने के बाद भी पाक ने इस मामले की गंभीर पैरवी नहीं की उसके चलते ही वहां की कोर्ट ने उसे सबूतों के अभाव में रिहा करने का आदेश दिया था. भारत समेत अमेरिका, जर्मनी, ब्रिटेन, फ़्रांस और रूस भी लखवी की रिहाई पर अपना खुला विरोध पाक के सामने जता चुके हैं फिर भी उसके खिलाफ मौजूद साक्ष्यों को मानने से पाक हमेशा की तरह ही इंकार करता रहता है और यूएन में सदैव ही भारत के खिलाफ काम करने वाले चीन ने इस मामले में जिस तरह से भारत के प्रस्ताव पर रोक लगाने का काम किया है उससे यही साबित होता है कि भारत में बदली हुई सरकार और खुद पीएम मोदी के चीन से चाहे जितने भी अच्छे और मधुर सम्बन्ध क्यों न हों पर भारत के खिलाफ किसी भी मामले में चीन सदैव पाक के साथ ही खड़े होने की अपनी नीति से हटने वाला भी नहीं है जो कि बदली परिस्थिति में भारत और व्यक्तिगत तौर पर मोदी के लिए एक बड़ी समस्या के रूप में सामने आया है.
                                   पाक के खिलाफ चीन ने कभी भी भारत के किसी प्रस्ताव का समर्थन आज तक नहीं किया है तो देश में जो लोग यह आशा लगाये बैठे थे कि अब मोदी के व्यक्तिगत रिश्ते होने के बाद संभवतः अब चीन इस तरह के मामलों में भारत के खिलाफ कुछ करने से बचना चाहेगा यह घटना उनकी आँखें खोलने का काम ही करने वाली हैं पर संभवतः स्मार्ट सिटी और दुनिया भर के अन्य मामलों में चीन की मदद आँख मूँद कर लेने को लालायित पीएम मोदी के पास इतना समय नहीं है कि वे चीन को उसके ही दांव से रोकने की इच्छा शक्ति का प्रदर्शन कर सकें. वैश्विक स्तर पर अपने को विकास का पुरोधा बनाने  के लिए जिस तरह से पीएम के स्तर से ही इस तरह के मामलों की अनदेखी की जा रही है वह भी देश के लिए अच्छी नहीं है क्योंकि आने वाले समय में जब हमारे महत्वपूर्ण कार्यक्रमों में चीन की भागीदारी और भी बढ़ जाएगी तो वह अपने व्यापारिक हितों को बचाये रखने के लिए कुछ भी करने तक जा सकता है. बेशक मोदी सरकार ने वैश्विक स्तर पर अपनी सक्रियता से बहुत कुछ पाया है पर महत्वपूर्ण मामलों में खुद पीएम का ऐसा रुख लोगों को हैरान कर देता है.
                                 भारत की तरफ से म्यांमार कार्यवाही पर जिस तरह से गंभीर राजनैतिक और रणनीतिक चूक की गयी यह उसका भी प्रतिफल हो सकता है क्योंकि इस घटना के बाद से चीन और पाक बहुत चिढ़े हुए नज़र आ रहे हैं. भारत को इस तरह के मामले को यूएन में ले जाने से पहले स्थायी सदस्य देशों की राय भी लेनी चाहिए थी जिससे चीन के इस संभावित कदम का वहीं पर जवाब दिया जा सकता पर भारत सरकार का आंकलन यहाँ पर गड़बड़ा गया है और अब कानूनी अड़चनों के कारण भारत इस मामले को दोबारा यूएन में उठाने लायक भी नहीं रह गया है. यदि कोई स्थायी सदस्य जिसके नागरिक भी २६/११ के हमले में मारे गए हों अपने स्तर से फिर से इस मामले की पैरवी करने की तरफ कोशिश करे तभी लखवी का मामला दोबारा से प्रतिबन्ध समिति के सामने विचार के लिए जा सकता है वर्ना भारत के स्तर अब यह मामला बंद ही हो चुका है. क्या अब भारत सरकार अमेरिका, रूस, जर्मनी, फ़्रांस और रूस के सहयोग से इस मामले को पूरी तैयारी के साथ फिर से प्रतिबन्ध समिति में लाने के लिए ठोस प्रयास कर पायेगा यह तो आने वाले समय में ही पता चल पायेगा पर अभी चीन से अपनी पाक से दोस्ती का पूरा हक़ तो अदा ही कर दिया है.          
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