मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 25 जून 2015

मोदी और भाजपा के बजुर्ग दिग्गज

                               केंद्र में केवल मोदी के नाम पर स्पष्ट बहुमत हसिल करने वाली भाजपा में आज वरिष्ठ नेताओं की जिस तरह से लगातार अनदेखी की जा रही है वह किसी भी मामले में सरकार के लिए हितकारी साबित नहीं होने वाली है क्योंकि अपने राजनैतिक जीवन के अंतिम पड़ाव पर पहुंचे हुए इन नेताओं के पास शारीरिक ऊर्जा भले ही उतनी न हो पर उनके राजनैतिक अनुभवों के लाभ से सरकार को बहुत काफी आसानी हो सकती है. मोदी के पूरे राजनैतिक जीवन को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि वे अपने विरोधियों पर कभी भी नरम नहीं रहा करते हैं और आज उनकी एक साल की सरकार से उनकी इस छवि को पुष्टि भी होती है यह सही है कि हर व्यक्ति के काम करने का ढंग अलग होता है पर हर व्यक्ति के चरित्र की अपनी ही विशेषतायें भी होती हैं पर आज अपने हर कदम को सही साबित करने में मोदी सरकार जिस तरह से पार्टी और देश कि भावनाओं को जानते हुए भी नहीं समझना चाहती है उसका किसी के पास कोई उत्तर नहीं है और यह अंत में देश के लिए ही नुकसानदायक साबित होने वाला है.
                          वाजपई सरकार में वित्त मंत्री रहे यशवंत सिन्हा ने जिस तरह से सरकार के आर्थिक क़दमों की खुली आलोचना की उससे यही लगता है कि उनके भाजपा की नीति रीति में दिन पूरे हो चुके हैं और वे भी अडवाणी, जोशी की श्रेणी में आकर वनवास भोगने के लिए अभिशप्त हो चुके हैं. पूर्व वित्त मंत्री की हैसियत से उनके आर्थिक मामलों पर विश्लेषण को केवल राजनैतिक विरोध कर कर अनदेखा नहीं किया जा सकता है. निश्चित तौर पर सिन्हा का यह आरोप बहुत ही गंभीर है जिसमें उन्होंने सरकार के आर्थिक परिदृश्य सुधारने के दावों पर खुला प्रश्न चिन्ह लगा दिया है. एक वर्ष में मोदी या कोई भी सरकार देश के आर्थिक परिदृश्य चीन की तरह को नहीं बदल सकती है क्योंकि यहाँ पर सशक्त लोकतंत्र और विशेषज्ञों की बातों का असर सरकारों पर भले ही न पड़ता हो पर जनता इसे बहुत अच्छे से समझती है और मज़बूत कही जाने वाली सरकारों को भी कई बार इस तरह के मुद्दों पर दोबारा विचार करने के लिए मजबूर भी होना पड़ता है. राजनैतिक विरोध अपनी जगह है पर जिनको किसी क्षेत्र विशेष में अनुभव हासिल है उनके अनुभवों का लाभ उठाने से आखिर मोदी सरकार खुद को अलग क्यों रखना चाहती है यह किसी की समझ से भी पर है.
                                 देश सबको साथ में लेकर चलने से मजबूत होता है सदन में तो विपक्ष संख्या बल में कमज़ोर ही है और भाजपा में आज मोदी का विरोध करने की स्थिति में कोई भी नहीं है यह अच्छा ही है कि वाजपाई अपनी बीमारी के चलते आज किसी तरह की गतिविधि में शामिल नहीं हो सकते हैं वर्ना मोदी को राजधर्म का पाठ पढ़ाने के चलते सबसे पहले उनको ही किनारा किया जाता और उनकी जो बेइज्जती हो सकती थी वह केवल सोची ही जा सकती है. हर व्यक्ति के काम करने का तरीका अलग ही होता है और आज भाजपा में मोदी और शाह की जोड़ी के आगे किसी की भी नहीं चल रही है और यह स्थितिं तब तक बनी रह सकती है जब तक मोदी एक जिताऊ चेहरे के रूप में भाजपा के लिए काम कर रहे हैं. उनके काम से संघ भी खुश नहीं है पर जब तक वे जीत रहे हैं  संघ भी चुप ही रहना चाहता है क्योंकि इस समय मोदी का विरोध विरोधी दलों को मज़बूती देने का काम ही करने वाला है इसे संघ अच्छी तरह से समझता भी है. यशवंत सिन्हा द्वारा सरकार के आर्थिक क़दमों को जिस तरह से आड़े हाथों लिया गया है उससे भी मोदी विरोधियों को सरकार पर हमलावर होने के अवसर ही मिलने वाले हैं पर क्या मोदी न चिंताओं पर विचार करने के लिए मानसिक रूप से तैयार हैं या फिर वे अपनी मनमानी ही करते रहने वाले हैं ? 
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