मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 23 जून 2015

रेलवे और आईआरसीटीसी

                                                              देश में तेज़ी से बढ़ते यात्रियों की संख्या और उन्हें घर बैठे टिकट बनवाने की सुविधा के लिए २७ सितम्बर १९९९ को शुरू की गयी आईआरसीटीसी ने अपनी उपयोगिता को साबित करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. अपनी स्थापना के बाद से ही यह जिस तरह से एशिया के सबसे तेज़ी से आगे बढ़ने वाले ई कॉमर्स पोर्टल में शामिल रहा है वह भी देश के लिए गर्व की बात है पर रेलवे के आधीन काम करने के बाद भी इसके और रेलवे के बीच तालमेल में कई बार बड़ी खामियां दिखाई दे जाती हैं जिनसे निपटने और यात्रियों की परेशानियों को दूर करने के लिए कोई कारगर व्यवस्था अभी तक नहीं बनायीं जा सकी है. हाल में राजस्थान के गुर्जर आंदोलन के समय कुछ गड़बड़ियों के चलते लगभग एक लाख लोगों को एसएमएस के माध्यम से यह सन्देश भेजे गए कि आंदोलन के चलते उनकी ट्रेन रद्द कर दी गयी है पर बाद में लगभग तीस हज़ार लोगों को पता चला कि उनकी ट्रेन तो रद्द ही नहीं हुई है. इस तरह के यात्रियों ने जब अपने टिकट निरस्त करने के लिए आईआरसीटीसी साइट पर कोशिश की तो उन्हें पता चला कि उनकी ट्रेन तो रद्द ही नहीं हुई थी और उन्हें टिकट निरस्त किये जाने के नियमों के तहत ही बची हुई धनराशि वापस की जाएगी.
                               सरसरी तौर पर देखा जाये तो यह कोई बड़ा मामला नहीं लगता है और जब खुद आईआरसीटीसी ने भी यह कह दिया है कि मानवीय चूक के चलते या सब हुआ है और उसमें किसी विशेष प्रयोजन से यह सब किये जाने के कोई सबूत भी नहीं मिल रहे हैं. इस स्थिति में रेलवे द्वारा धनराशि वापसी के मसले से पल्ला झाड़ लिए जाने के बाद आईआरसीटीसी ने आगे आते हुए लोगों को निरस्तीकरण के कारण होने वाले संभावित नुकसान की भरपाई करने की घोषणा की है. आज हर क्षेत्र में कप्यूटर के बढ़ते प्रयोग के बाद भी रेलवे ने अभी तक ऐसी कोई व्यवस्था बनाये जाने के बारे में सोचा ही नहीं जहाँ पर इस तरह की समस्या सामने आ सकती है अब इटारसी में रुट रिले सिस्टम जल जाने के बाद फिर से रेलवे को अपने आईआरसीटीसी टिकट धारियों को एसएमएस भेजने की आवश्यकता पड़ रही है जबकि खुद रेलवे इस तरह एक मामले में अपने को ज़िम्मेदार नहीं बना रही है तो आईआरसीटीसी से टिकट बनवाने वाले लोगों के लिए कोई समस्या होने पर आखिर उससे कैसे निपटा जाने वाला है यह किसी को नहीं पता है.
                             आईआरसीटीसी रेलवे के अंतर्गत काम करने वाली एक ई कॉमर्स पोर्टल से अधिक कुछ भी नहीं है और सरकारी मंत्रालय और उसके पोर्टल के बीच इस तरह के विवाद उत्पन्न होने पर आम यात्रियों की समस्या को किस तरह से निपटाया जाना चाहिए यह अभी स्पष्ट नहीं है. रेलवे के अधिकारी स्पष्ट रूप से यह कहते हैं कि उनकी टिकट विंडो से लिये गए टिकट की ज़िम्मेदारी ही उनकी है और आईआरसीटीसी से लिए गए किसी भी टिकट में धनराशि वापसी या अन्य विवाद होने पर उसस्की ज़िम्मेदारी रेलवे पर नहीं आती है. इन अधिकारियों के लिए यह कहना बहुत आसान है पर वे यह भूल जाते हैं कि रेलवे की ज़िम्मेदारी इस मामले में कहीं से भी कम नहीं होती है क्योंकि ये दोनों एक दूसरे के पूरक हैं और आज रेलवे के टिकट काउंटर पर यदि भीड़ कम है तो उसका श्रेय केवल आईआरसीटीसी को ही जाता है. बेहतर हो कि इस तरह के मामलों में रेलवे आईआरसीटीसी के साथ मिलकर समस्या को सुलझाने की योजना पर काम करने के बारे में सोचे क्योंकि जब तक समस्या से पल्ला झाड़ने की कोशिशें की जाती रहेंगीं तब तक यात्रियों के लिए नयी तरह की समस्याएं ही सामने आती रहने वाली हैं. आने वाले समय में रेलवे और आईआरसीटीसी के बेहतर तालमेल से जहाँ खुद रेलवे को लाभ मिलने वाला है वहीं यात्रियों के लिए भी सुखद यात्रा की व्यवस्था भी आसानी से बनायीं जा सकती है.      
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