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रविवार, 28 जून 2015

नीति आयोग और नयी व्यवस्था

                                                           देश में आज़ादी के बाद से ही केंद्र और राज्यों के बीच संसाधनों के बंटवारे को लेकर जिस तरह से विवाद बने ही रहते हैं उनसे निपटने के लिए आज तक कोई कारगर व्यवस्था नहीं बनायीं जा सकी है. आज़ादी के बाद जब पूरे देश में आर्थिक संसाधनों की बेहद कमी थी तो केंद्र सरकार ने योजना आयोग का गठन किया और केंद्रीय स्तर पर राज्यों को धन आवंटित करने की योजनाएं बनाना शुरू किया था. जब तक अधिकांश राज्यों में कांग्रेस की सरकारें रहीं तब तक मज़बूत केंद्रीय नेतृत्व के सामने किसी भी सीएम ने कभी भी कोई शिकायत नहीं की पर जब राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकारें बननी शुरू हुई तभी से उन्होंने केंद्र पर गैर कांग्रेस शासित राज्यों के साथ भेदभाव के आरोप लगाने शुरू कर दिए थे. योजना आयोग की वार्षिक बैठक के बाद जिस तरह से केंद्र में सरकार चला रहे दल से इतर राजनैतिक दल के सीएम जब भी बाहर निकलते तो सदैव ही योजना आयोग पर कम धनराशि आवंटन का आरोप लगाते हुए ही निकलते थे और जब मोदी सरकार द्वारा संघीय प्रणाली को मज़बूत करने के उद्देश्य से नीति आयोग बनाया गया है तब भी स्थिति बदलती नहीं दिखाई दे रही है क्योंकि राज्यों को आज भी बिना किसी ज़िम्मेदारी के उसे खर्च करने की अनुमति के साथ और अधिक धन खर्च करने के लिए चाहिए.
                          नीति आयोग के उप-समूह की बैठक के बाद जिस तरह से कल यह विचार सामने आया कि आने वाले समय में केंद्रीय योजनाओं की संख्या को घटाया जाये उससे बेशक राज्यों को अपनी सुविधा और अाश्यकता के अनुसार काम करने की छूट मिल जाएगी पर इसके चलते सबसे बड़ा नुकसान यह भी संभावित है कि चुनावी वर्ष में राज्य के सीएम किसी एक योजना में आये हुए धन का दुरूपयोग अपने राजनैतिक लाभ साधने के लिए भी कर सकते हैं. अभी तक केंद्रीय योजनाओं में राज्यों का हिस्सा कम होने के चलते उनके लिए उसे किसी अन्य योजना में खर्च करना कठिन होता है पर नयी व्यवस्था में किसी दल विशेष की सरकार द्वारा लिए गए निर्णय आने वाली सरकार और जनता के लिए समस्या भी बन सकते हैं ? इन योजनाओं के लिए धनराशि आवंटित किये जाने के नियमों को और भी कठोर बनाया जाना चाहिए क्योंकि बिना किसी बड़े उत्तरदायित्व के किसी प्रदेश की जनता को सीएम के भरोसे कैसे छोड़ा जा सकता है अभी तक केंद्र की सरकार के साथ तालमेल बैठाने की अनिवार्यता के चलते योजनागत आवंटन में बदलाव उतना आसान नहीं था जो संभवतः आने वाले समय में केंद्र के लिए बड़ी समस्या भी बन सकता है.
                         जब पीएम खुद संघीय व्यवस्था को मज़बूत करने के बारे में चिंतित हैं और यह भी कहते हैं कि राज्यों के साथ भेदभाव किया जाता रहा है तो उन्हें इस संघीय व्यवस्था को और भी अधिक मज़बूत किये जाने के बारे में सोचना ही होगा. क्या नीति आयोग के लिए ऐसा संभव नहीं है कि उसकी योजनाएं राज्यों के बजाय मंडल या जनपद के आधार पर बनायीं जाएँ ? इस तरह की किसी व्यवस्था से केंद्र और संबंधित राज्य के पास देश के हर जनपद के बारे में पूरी जानकारी तो होगी ही साथ ही विभिन्न योजनाओं में उसकी कितनी सहभागिता की आवश्यकता है यह भी पता चल जायेगा. पर यह ऐसा काम होगा जिस पर राज्य संभवतः आसानी से राज़ी ही नहीं होंगें क्योंकि इसके माध्यम से उनको राजनैतिक कारणों से विभिन्न फंड्स को अपने मनपसंद जिले में खर्च करने की आज मिली हुई खुली छूट समाप्त हो जाएगी ? आज केंद्र जब बदलाव की राह पर है तो उसे योजनाओं को बिल्कुल निचले स्तर तक पहुँचाने की इस व्यवस्था के बारे में भी सोचना चाहिए इससे जहाँ देश के हर जिले को अपनी आवश्यकता के अनुसार फंड्स मिल सकेंगे वहीं आने वाले समय में कोई भी जिला विकास की इस प्रक्रिया से अछूता भी नहीं रह पायेगा. क्या मज़बूत पीएम राज्यों को इस बात के लिए आसानी से राजी कर इस तरह के काम कर पाने में सफल होंगें यह तो भविष्य ही बताएगा पर इससे कम किसी भी योजना के फण्ड को सीधे राज्यों के हवाले करने से ही धरातल पर समग्र परिवर्तन नहीं किया जा सकता है.       
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