मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 27 जून 2015

आईएस- इस्लाम के नाम पर आतंक

                                                                         मुसलमानों के सबसे पवित्र महीने रमजान के शुरू होने से पहले जिस तरह से मुस्लिम धर्म गुरुओं और मौलानाओं की तरफ से विश्व भर में कथित जिहाद में लगे हुए समूहों से हिंसा से बचने की अपील की थी उसका आईएस जैसे संगठनों पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा है. जहाँ तक इस्लाम के अनुयायियों द्वारा जिहाद किये जाने की परिकल्पना की गयी थी आज उसका सबसे बुरा असर मुसलमानों पर ही पड़ता दिखाई दे रहा है क्योंकि आज पूरी दुनिया में केवल कुछ एक संघर्ष ऐसे कहे जा सकते हैं जहाँ आतंकियों का दूसरे धर्म के लोगों के साथ संघर्ष चल रहा है वर्ना आज के इस जिहाद का सबसे बुरा असर मुसलमानों की पूरी दुनिया की स्थिति पर ही पड़ रहा है. कल आईएस द्वारा किये और स्वीकारे गए हमलों की बात की जाये तो ट्यूनीशिया में उसने कुछ विदेशियों को मारने में सफलता हासिल की है पर कुवैत और सीरिया के कोबानी में तो उसने सिर्फ मुसलमानों को ही मारा है तो यह आखिर किस तरह से इस्लाम की विचारधारा को मज़बूत करने का काम करने वाला है यह संभवतः आईएस की समझ से बाहर है या फिर वह पूरी दुनिया को इस्लाम और अन्य के संघर्ष में घसीटना चाहता है.
                             यह सही है कि आईएस की गतिविधि आज चरम की भी हद है और वह केवल आतंक और घृणा के दम पर ही आगे बढ़ना चाह रहा है अरु जिस तरह से वह दुनिया भर में मुस्लिम युवाओं को अपनी तरफ आकर्षित करने में लगा हुआ है उससे आने वाले समय में मुसलमानों के लिए एक नयी तरह की दिक्कत भी और सामने आने वाली है. ९/११ के बाद से ही जिस तरह से अमेरिका और कुछ अन्य देशों में मुसलमानों के लिए अवसर तेज़ी से घटने शुरू हुए थे आज भी उनमें तेज़ी ही देखी जा रही है और इस देशों की आशंका का स्तर इस स्थिति तक पहुँच गया है कि भारत जैसे देशों से अमेरिका जाने वाले महत्वपूर्ण मुस्लिम लोगों को भी कड़ी सुरक्षा जांचों से गुजरना पड़ता है. सोचने का विषय यह है कि आईएस कितनी चालाकी से अल-क़ायदा के उस काम को आगे बढ़ा रहा है जिसमें पूरी दुनिया में मुसलमान अलग थलग हो जाएँ और युवा मुसलमानों के लिए अच्छी शिक्षा और प्रगति के अवसर ही समाप्त हो जाएँ ? इस स्थिति में इस्लाम के बारे में आम लोगों में जो गलत धारणा बन रही है उसका भी कोई अन्य विकल्प आज तक इस्लामी देश नहीं खोज पाये हैं जो कि पूरे विश्व के लिए ही चिंताजनक है.
                                    इस तरह की घटनाओं को रोकने और इस्लाम की सही परिभाषा को दुनिया के सामने लाने के लिए अब प्रमुख इस्लामी देशों और प्रतिष्ठित मौलानाओं को आगे आकर कुछ ठोस कदम उठाने होंगें क्योंकि आज जिस तरह से इस्लाम के नाम पर आतंकी संगठन बर्बरता को आगे बढ़ा रहे हैं उसका आज के सभ्य विश्व में कोई स्थान नहीं होना चाहिए. निश्चित तौर पर अरब देशों के शासकों ने पश्चिमी देशों के साथ मिलकर बहुत कुछ ऐसा भी क्या है जिससे आज इस्लामी विश्व में बहुत अधिक असंतोष है और धर्म के साथ राजनीति करने के खतरे के चलते आज इस्लामी देशों की राजनीति में आतंकियों का बहुत प्रभाव होने लगा है जिससे अब जाकर सऊदी अरब और ईरान को भी चिंता होनी शुरू हुई है. संभव है कि आईएस जैसे संगठन को कुचलने के लिए अब कुछ अरब देश एक साथ मिलकर काम करने के बारे में सोचना शुरू कर दें. शिया सुन्नी मतभेद का लाभ उठाकर आज नमाज़ पढ़ते हुए लोगों को गोलियों से भूनकर कुछ आतंकी सुन्नी संगठन इस्लाम के किस चेहरे को आगे बढ़ाने का काम कर रहे हैं जो खुद मुसलमानों को ही अधिक नुकसान पहुंचा रहा है ? अब समय है कि इस्लाम के सही स्वरुप को बचाने के लिए खुद इस्लाम के अंदर से ही आवाज़ उठनी चाहिए कहीं ऐसा न हो कि तमाशा देखने के चक्कर में आईएस आगे अधिकांश अरब देशों को अपनी चपेट में लेने के अपने मंसूबे में सफल हो जाये.           
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