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बुधवार, 3 जून 2015

"प्रीमियम" से "सुविधा" ट्रेन तक

                                    देश के महत्वपूर्ण और अधिक यात्री यातायात वाले मार्गों पर प्रायोगिक प्रीमियम ट्रेन चलाने के निर्णय की सफलता के बाद जिस तरह से पिछले वर्ष से रेल मंत्रालय ने एकदम से इसे अपनी कमाई बढ़ाने का साधन मानना शुरू कर दिया था उससे ही यह लगने लगा था कि अब आने वाले दिनों में रेलवे को अपनी इस गलती का एहसास हो ही जायेगा. एक वर्ष से कम समय में ही जिस तरह से बिना सोचे हर ट्रेन को प्रीमियम श्रेणी में डालकर उससे यात्रियों का दोहन शुरू किया गया था उसके चलते इन ट्रेनों से उस स्तर पर लाभ मिलना बंद हो गया जिसकी उम्मीद रेलवे ने लगा रखी थी. पूरी तरह से असफल हुए इस प्रयोग के बाद रेलवे बोर्ड को इन ट्रेनों की सुध आई और अब उसकी तरफ से प्रीमियम को विभिन्न स्तरों के किरायों के साथ सुविधा ट्रेन के रूप में फिर से प्रस्तुत किया जा रहा है और इनके सञ्चालन का ज़िम्मा भी मंडल स्तर पर छोड़ दिया गया है जिसकी आरक्षण अवधि १० दिन से ३० दिनों की रखी गयी है जिससे आम लोगों को इन विशेष ट्रेनों का सही लाभ भी मिल सकेगा और जनता पर पड़ने वाला आर्थिक बोझ भी कम किया जा सकेगा.
                                         आवश्यकता के अनुसार इन ट्रेनों को केवल उन मार्गों पर ही चलाने की अनुमति होगी जहाँ पर पहले चलने वाली प्रीमियम ट्रेनों की यात्री क्षमता ८०% से अधिक रही है जिससे आम यात्रियों पर विशेष सुविधा के नाम पर अतिरिक्त बोझ डालने से भी रेलवे के अधिकारियों को रोका जा सके. इस बने हुए टिकट में अभी भी किसी तरह के संशोधन की गुंजाईश नहीं होगी जबकि समय के अनुसार आज इसकी मांग है क्योंकि कई बार यात्रियों को अपनी यात्रा के दिन को आगे या पीछे करने पर मजबूर होना पड़ता है और उसके पास अपने कन्फर्म टिकट को छोड़ने पर कोई अन्य विकल्प शेष ही नहीं बचता है इसलिए कुछ शर्तों के साथ संशोधनों को लागू किया जाना चाहिए था जिसमें इस बार भी नीतिगत कमी रह ही गयी है. अब यह अच्छा किया गया है कि इन टिकटों को रेलवे के आरक्षण केन्द्रों से भी लिया जा सकता है जबकि अभी तक टिकट केवल वेबसाइट से ही खरीदे जा सकते थे साथ ही इन टिकटों के निरस्त किये जाने की स्थिति में कुल ५०% धनराशि वापस भी की जाएगी जिससे यात्रियों की कुछ आर्थिक भरपाई भी की जा सके. इस तरह से टिकट वापसी के मामले को भी सामान्य श्रेणी की तरह किया जाना चाहिए था क्योंकि जब प्रतीक्षारत यात्रियों को टिकट दिए जा रहे हैं तो सीट के भरे रहने पर यात्रियों से इस तरह की अवैध वसूली करने को सही कैसे ठहराया जा सकता है ?
                                              यह सुविधा ट्रेनें अब तीन तरह की होंगी जिनमें राजधानी, दुरंतो और सामान्य मेल / एक्सप्रेस गाड़ियों के किरायों में तत्काल शुल्क लगाकर इनके किराये का निर्धारण किया जायेगा साथ ही पहली २०% सीटें सामान्य किराये पर ही बुक की जायेंगीं उसके बाद इनके किराये में बढ़ोत्तरी हर २०% सीटों के पूरा होने पर होती रहेगी इससे जहाँ लोगों को यह सुविधा होगी कि टिकट की कीमतें धीरे धीरे ही बढ़ेंगीं वहीं अत्यधिक किराये के डर से अभी तक इनमें आरक्षण न कराने वाले लोगों को भी इस श्रेणी में लाने के प्रयास सफल साबित हो सकते हैं. रेलवे को अपनी आर्थिक स्थिति सुधारने की पूरी छूट मिलती ही रहती है पर अभी तक इस दिशा में उस स्तर पर काम नहीं किया गया है जैसा होना चाहिए क्योंकि रेलवे बोर्ड के अधिकारी इन छोटी छोटी बातों पर ध्यान ही नहीं दिया करते थे पर पिछले दशक से जिस तरह से रेलवे के नेटवर्क को सुधारने के साथ ही उसकी क्षमता के सही दोहन पर ध्यान दिया जाने लगा है तब से यात्री सुविधाओं में भी बढ़ोत्तरी देखी जा रही है. सरकार के पास इस मंत्रालय के लिए बहुत कुछ होता है पर यह अभी तक सोये हुए उस हाथी की तरह ही है जिसे पता ही नहीं है कि वह कितने काम कर सकता है.      
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