मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 30 जुलाई 2015

एलपीजी सब्सिडी- सरकार और माननीय

                                      देश में सरकार चलाने वाले लोग किस तरह से काम किया करते हैं इसकी बानगी के बार फिर से एक आरटीआई के माध्यम से सामने आई है जिसमें सरकार की तरफ से स्पष्ट रूप से यह कहा गया है कि उसे नहीं पता कि कितने सांसदों ने पीएम के आह्वाहन पर अपनी सब्सिडी छोड़ दी है. जिस बात के आह्वाहन के लिए खुद पीएम टीवी पर अपील करते हुए नज़र आते हैं क्या सरकार के पास इस बात का सभी समय नहीं है कि वह इतनी जानकारी जुटा सके कि कौन से सांसद पीएम की अपील को मानते हुए इस काम को कर चुके हैं ? डिजिटल इंडिया की बातें करने वाली सरकार की तरफ से इस मामले पर जितना हास्यास्पद बयान दिया गया है वह पीएम के सपने और देश की वास्तविकता के बारे में ही बताता है क्योंकि सरकार कह रही है कि इस तरह की जानकारी पोर्टल पर उपलब्ध है और कोई भी व्यक्ति उसे खुद ही देख सकता है. क्या सरकार इस अभियान को केवल पीएम के आह्वाहन तक ही सीमित रखना चाहती है या फिर उसकी मंशा केवल आम लोगों से ही सब्सिडी छुड़वाने तक ही सीमित है ?
                                    अच्छा होता कि इस मामले में एक बार सरकार खुद ही पहल करते हुए सभी सांसदों की सब्सिडी बंद ही करवा देती क्योंकि उनको जितने बड़े पैमाने पर वेतन और भत्ते मिला करते हैं उनमें सब कुछ पाया जा सकता है तथा साल में घरेलू गैस की आज की कीमत को देखते हुए मुश्किल से तीन हज़ार रुपयों का बोझ सीधे ड़ालना कहीं से भी गलत नहीं कहा जा सकता था. इस मामले में नीतिगत संशोधन किया जाना आवश्यक है क्योंकि अपील करने का असर उस स्तर पर नहीं हो पा रहा है जितनी देश में क्षमता है तो इससे निपटने के लिए अब कड़े रुख की अभी आवश्यकता भी सामने आने वाली है. पूरे देश के सांसदों, राज्यों की विधान सभाओं के सदस्यों, जिलापंचायत अध्यक्ष, नगर निगम/पालिका के अध्यक्ष आदि के साथ ही सभी राजपत्रित अधिकारियों के साथ आयकर देने वाले लोगों को कानूनी तौर पर ही इस सुविधा से वंचित कर दिया जाना चाहिए जिससे सरकार के पास अपील करने का कोई कारण भी शेष न बचे और पीएम इस ऊर्जा का उपयोग दूसरे कामों में कर सकें.
                               क्या आज सरकार इस बात को नहीं जानती है कि सांसदों की सब्सिडी खत्म होने से कोई अंतर नहीं पड़ता है क्योंकि देश की किसी भी गैस एजेंसी में इतना दम नहीं है कि वह किसी सांसद या विधायक की तो बात छोड़िये उनके सहयोगियों तक के फ़ोन पर सब्सिडी वाला सिलेंडर देने से इंकार भी कर सकें ? इस स्थिति में वैसे भी माननीयों के लिए कुछ भी कर पाना सरकार के लिए एक टेढ़ी समस्या ही बनी रहने वाली है और इस स्थिति को बदलने के लिए कोई भी व्यक्ति सक्षम नहीं दिखाई देता है. देश के नेताओं को आचरण में सुधार के साथ जनता के सामने अपने व्यवहार से लोगों को सीख देने की कोशिश करनी चाहिए पर दुर्भाग्य से ऐसा होता नहीं दिखाई देता है और केवल बयान देने को ही माननीय अपना अंतिम लक्ष्य मानते रहते हैं. आबादी के हिसाब से सबसे बड़े राज्य यूपी के लोगों ने सबसे अधिक संख्या में सब्सिडी छोड़कर यह दर्शा दिया है कि उनकी तरफ से किसी भी सही काम का पूरा समर्थन भी किया जाता है बशर्ते वह देश हित में हो. अच्छा हो कि इस अभियान से जुड़ने वाले लोगों की गिनती के स्थान पर राज्य वॉर कनेक्शन संख्या के आधार पर प्रतिशत निकालकर राज्यों के आंकड़े जारी किये जाएँ जिससे पता चल सकें कि वास्तव में कौन सा राज्य इसमें सबसे आगे है.      
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें