मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 1 अगस्त 2015

आतंक का धर्म

                                    देश में लगातार जिस तरह से आतंक को लेकर राजनीतिक दलों में मतभेद रहा करते हैं उनके बीच ही लोकसभा में शुक्रवार को एक बार फिर से आतंक को धार्मिक आधार पर बाँटने की बातों पर गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने करारा प्रहार किया पर उसके साथ ही उन्होंने देश हित की बातें करते समय बहुत कुछ ऐसा भी कहा जिससे दुनिया में यही सन्देश जाता है की आज भी हमारे देश में आतंक से लड़ने के नाम पर राजनेताओं में गंभीर मतभेद मौजूद हैं. देश के व्यापक स्वरूप को देखते हुए जिस तरह से पूरी दुनिया में भारत की सहिष्णुता एक मिसाल के तौर पर देखी जाती है उसके बीच ही लगभग सभी दलों के नेताओं के अनर्गल बयानों से कई बार देश और सरकार को असहज स्थिति का सामना अंतरराष्ट्रीय मंचों पर करना पड़ता है. आम भारतीय जनमानस आज भी आतंक के प्रति चिंन्तित ही दिखाई देता है क्योंकि घृणा और धार्मिक पूर्वाग्रहों के साथ जी रहे देशों में धार्मिक आधार पर फैलने वाले आतंक को भारत में कभी भी सही नहीं माना जाता है फिर भी कुछ तत्वों द्वारा आतंक की मनचाही छवि बनाने की कोशिशें सदैव ही की जाती रहती हैं.
                                  आज के परिप्रेक्ष्य में पूरे बातों से सबक लेने की आवश्यकता अधिक है क्योंकि नेता सदैव ही अपने अनुसार सही कदम उठाते हैं पर उनके परिणाम कई बार देश के लिए बहुत दूरगामी ही साबित होते हैं जिसके चलते पूर्व में किये गए निर्णयों को लेकर आज पूर्ववर्ती सरकारों की आलोचना भी की जाती है. देश की सुरक्षा के नाम पर किसी भी तरह की राजनीति की कोई गुंजाईश नहीं होनी चाहिए पर देश के दोनों बड़े राजनैतिक दल कांग्रेस और भाजपा के साथ क्षेत्रीय दल भी अपने राजनैतिक स्वार्थों और हितों को देखते हुए ऐसे बयान देने से नहीं चूकते हैं जिनका सीधा असर देश पर ही पड़ता है. नीतिगत दृढ़ता को अब देश की मज़बूती बनना ही होगा और देश के ज़िम्मेदार लोगों को आतंक को आतंक कहने की हिम्मत भी दिखानी होगी क्योंकि आतंक के चेहरे को इस्लामी या भगवा बताने से देश के सामने आने वाली समस्या से छुटकारा नहीं पाया जा सकता है. आतंक किसी भी स्तर पर हो उसको मुंहतोड़ जवाब देने की आवश्यकता है क्योंकि जब तक देश के नेता आतंक को भी हरे और भगवा चश्मे से देखने का काम करते रहेंगें तब तक देश की सुरक्षा कमज़ोर ही रहने वाली है.
                                     राज्य सरकारों समेत केंद्र पर भी भी समय समय पर इस बात के आरोप लगते रहते हैं कि वह समूह विशेष या धर्म विशेष के आतंक में शामिल लोगों के प्रति नरम रुख अपनाती हैं जबकि सभी जानते हैं कि केवल आरोप लगाने और उन्हें कोर्ट में साबित करने में जमीन आसमान का अंतर होता है जिस पर नेता विचार ही नहीं करना चाहते हैं जिससे आतंक समर्थकों को आम जनता को यह समझने में मदद ही मिलती है कि उनके साथ देश में समानता का व्यवहार नहीं किया जा रहा है. पिछली गलतियों से सबक लेते हुए अब देश को आगे की स्थायी और मज़बूत नीति की तरफ बढ़ने के बारे में सोचना ही होगा क्योंकि देश है तो राजनीति है और धर्म है वर्ना धर्म की गलत व्याख्या और गलत हाथों में जाने से उसका स्वरुप कितना वीभत्स हो सकता है यह पूरी दुनिया देख ही रही है. आतंक के नाम पर हिरासत में लिए गए हर व्यक्ति को भी अपनी बात कहने का अधिकार है तथा अब देश को इस बारे में सोचना हो होगा कि हमारी कानूनी प्रक्रिया में वो गुणात्मक सुधार भी किये जाएँ जिससे दोषियों को समय रहते सज़ाएं दी जा सकें और निर्दोषों को सम्मान सहित जीने के नए अवसर भी प्रदान किये जा सकें क्योंकि समाज और देश केवल सहयोग के आधार पर आगे बढ़ सकते हैं उनके विकास में धार्मिक चश्मे लगाये हुए नेता सदैव ही रोड़े अटकाने का काम ही करने वाले हैं.     
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