मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 8 अगस्त 2015

वायु सेना संयुक्त अभ्यास और विवाद

                                                         म्यांमार के साथ हुए आतंक विरोधी अभियान में भारतीय सेना और सरकार के दावों को खुद म्यांमार द्वारा झुठलाने के बाद जिस तरह से अनावश्यक विवाद सामने आये थे लगता है कि भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय और सेना ने उनसे कोई सबक नहीं सीखा है क्योंकि हाल ही में ब्रिटेन में संपन्न हुए दो हफ़्तों के संयुक्त अभ्यास के बाद जिस तरह से भारतीय वायु सेना के ग्रुप कैप्टेन द्वारा ब्रिटेन पर अभ्यास में विजय पाने की बात कही उसने एक बार फिर से उसी तरह के विवाद को हवा दे दी है. क्या सरकार या रक्षा मंत्रालय के स्तर पर हुई कमी मानी जाये या सम्बंधित अधिकारी का बड़बोलापन क्योंकि ऐसे अभ्यासों में जीत हार की कोई बात नहीं होती और विभिन्न तरह के लड़ाकू विमानों से लैस सहयोगी देश अपने द्विपक्षीय अभ्यासों के अंतर्गत इस तरह से मिलते ही रहते हैं जिससे उन्हें सहयोगी देश के अलग तरह के विमानों के साथ उड़ान भरने और उनकी क्षमताओं के बारे में अधिक जानकारी हो जाती है जो आज के आतंक भरे वैश्विक परिवेश में सभी के  लिए लाभकारी भी साबित होती है क्योंकि जिस तरह से इराक और सीरिया में शहरों पर कब्ज़े के चलते आईएस के पास रुसी तकनीक के सैन्य साजो सामान उपलब्ध हो रहे हैं तो दुनिया को भविष्य में उनसे निपटने के लिए हर प्रयास करने आवश्यक भी हैं.
                                  पश्चिमी देशों और नाटो के पास रुसी तकनीक के किसी भी सैन्य उपकरण के साथ साझा कार्यक्रम चलाने का कोई अनुभव कभी भी नहीं रहा है क्योंकि शीत युद्ध के समय से ही भारत जैसे कुछ ही ऐसे देश रहे हैं जिनके पास रूस के साथ पश्चिमी देशों की तकनीक वाले बेड़े भी हैं और जिनका संयुक्त रूप से सञ्चालन करना भारतीय सेना के तीनों अंगों को बहुत अच्छे से आता है. ऐसे में अमेरिका, फ़्रांस, इसराइल और अन्य देश भी भारत के साथ संयुक्त अभ्यासों को लेकर एक सतत कार्यक्रम चलाने की कोशिश में लगे रहते हैं. इस तरह के अभियानों के बारे में केवल यही बताया जाता है कि किन देशों के साथ संयुक्त अभ्यास किन परिस्थितयों में और कहाँ पर किया जा रहा है पर जिस तरह से इस अभियान में जीत हार की बात करके मामले को गरम किया गया है यह भारत सरकार की किसी रणनीति का अंग हो सकता है या फिर यह केवल एक ग्रुप कैप्टेन द्वारा दिखाया गया बड़बोलापन ही है इस बारे में अब सरकार को ब्रिटेन को जवाब देना ही होगा क्योंकि उनको भी इस तरह की ख़बरों के सामने आने के बाद अपने देश के नागरिकों को जवाब देना है.
                                  अच्छा हो कि इस तरह के मामलों में गोपनीयता का स्तर पहले की तरह ही बनाये रखा जाये तथा किसी भी परिस्थिति में सेना के आधिकारिक बयान के अतिरिक्त अभ्यास में शामिल किसी भी सैनिक/अधिकारी को उस पर कुछ भी बोलने से पूरी तरह रोकने की व्यवस्था भी बनायीं जानी चाहिए. सरकार को यह समझना ही होगा कि द्विपक्षीय अभ्यासों की भी कोई गरिमा होती है और किसी भी परिस्थिति में उसको बनाये रखने की आवश्यकता भी होती है. भारतीय सेना अपने आप में सर्वश्रेष्ठ ऐसे ही नहीं कही जाती है पर संभवतः कई बार कुछ राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए भी सरकारें इस तरह की बयानबाज़ी करवाती रहती हैं जिनका राजनैतिक लाभ भी उठाया जा सके. मोदी सरकार के समय में सेना की गोपनीयता से जुड़े हुए मसले में जल्दी में ही यह दूसरी बार हुआ है कि रणनीतिक रूप से कुछ भी बयान न देने की स्थिति में सेना की तरफ से किसी ने बयान जारी कर दिया है जिससे पहले म्यांमार के सामने और अब ब्रिटेन के सामने स्थितियां सँभालने की मजबूरी आ गयी है. आखिर क्या आवश्यकता है कि सैन्य अभ्यासों और कार्यवाहियों से जुड़े मसलों पर भी बयान दिए जाएँ क्योंकि कोई युद्ध काल नहीं चल रहा है और इस तरह से विश्वसनीयता पर संदेह पैदा करने से आने वाले समय में दुनिया के विभिन्न देश भारत के साथ क्या संयुक्त अभ्यास करने के लिए इच्छुक होंगें ?       
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