मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 11 सितंबर 2015

रेलवे - कोहरे के कहर से बचाव

                                                               आगामी सर्दियों और कोहरे भरे मौसम से रेलवे परिचालन पर पड़ने वाले विपरीत असर से निपटने के लिए मंत्रालय ने जिस तरह से इस बार पहले से तैयारियों शुरू की हैं उनको देखते हुए लगता है कि इस बार यात्रियों के लिए उस मौसम में सफर करना बहुत मुश्किल ही रहने वाला है. रेलवे के इतिहास में पहली बार यह निर्णय लिया गया है जिसमें राजधानी और शताब्दी के साथ सम्पर्क क्रांति और अन्य महत्वपूर्र्ण ट्रेनों को निरस्त करने की घोषणा कर दी गयी है. जिस तरह से अभी तक लगभग हर वर्ष कोहरे के कारण रेलवे के साथ यात्रियों को भी बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है उससे एकदमसे नहीं निपटा जा सकता है क्योंकि हर मौसम में रेलवे की रफ्तार को बनाये रखने के लिए जिस स्तर पर सरकार को धन की आवश्यकता है वह आसानी से उपलब्ध हो पाना लगभग असंभव ही है तो रेलवे अंग्रेज़ों के ज़माने के पटाखा तंत्र पर भरोसा करके अपने परिचालन को सामान्य और सुरक्षित रखने की कोशिशें करता रहता है जिससे सर्दियों में उसकी गति पूरी तरह मौसम पर ही टिक जाती है.
                              रेलवे के इस फैसले से निश्चित तौर पर रेल यात्रियों को बड़े पैमाने पर असुविधा होने वाली है जो कि पहले भी होती थी पर इस बार उन्हें अंतिम समय में ट्रेन के निरस्त होने की परेशानियों से नहीं जूझना पड़ेगा क्योंकि रेलवे ने अपने परिचालन में पहले से ही संशोधन कर दिया है. पर क्या इस तरह से महत्वपूर्ण ट्रेनों के परिचालन दिवसों को कम करने से उसके बाकी दिनों में सही तरह से चलने की कोई गारंटी दी जा सकती है ? शायद नहीं क्योंकि इस तरह की समस्या सामने आने पर रेलवे के पास कोई विकल्प ही नहीं होता है. छुट्टियों के मौसम में इस तरह से ट्रेनों के परिचालन में आने से क्या आम यात्रियों के लिए समस्याएं और भी अधिक नहीं हो जायेंगीं क्योंकि यात्रियों के अधिक दबाव के कारण समस्या में उलझी रेलवे उन्हें इस परेशानी से कैसे निकाल पायेगी यह किसी को भी नहीं पता है तो इतने पहले से की गयी यह कवायद कहीं न कहीं से रेलवे की आय पर भी असर डालने वाली ही साबित होगी. वर्तमान संसाधनों के ढांचे में रेलवे कोहरे से किस तरह से निपटे यह आज तक किसी की समझ में नहीं आया है जिसका खामियाज़ा हर वर्ष यात्रियों को भुगतना भी पड़ता है.
                                 इतने बड़े पैमाने पर छोटी दूरी की ट्रेनों को निरस्त करने से जहाँ लम्बी दूरी की ट्रेनों के लिए और भी अधिक समस्या बढ़ जाने वाली है वहीं यात्रियों को कोई राहत नहीं मिलेगी क्योंकि लेट चलने के कारण पहले से ही इन गाड़ियों में भीड़ अधिक होगी फिर दैनिक यात्रियों के बोझ से कैसे निपटा जायेगा यह भी कोई नहीं बता सकता है. अच्छा होता कि छोटी दूरी की गाड़ियों को थोड़ी और दूर तक भेजने की अस्थायी व्यवस्था की जाती जिससे दैनिक यात्रियों के लिए सीटों की समस्या भी नहीं होती और रेलवे को भी घाटे से बचाया जा सकता. लम्बी दूरी की गाड़ियों के फेरे कम करने से स्थितियों पर नियंत्रण पाने की कवायद भी अधिक कारगर नहीं हो सकती है क्योंकि जब तक ट्रेनों के अतिरिक्त रेक रेलवे के पास उपब्ध नहीं होंगें तब तक वह इस तरह की किसी भी समस्या से नहीं निपट सकता है. जिन गाड़ियों के फेरे कम किये जा रहे हैं उनको भी सप्ताह में केवल एक बार ही अपने समय को सुधारने का अवसर मिलने वाला है जबकि वे रोज़ ही चलने वाली हैं तो एक दिन उनके न चलने से कोई बड़ा अंतर नहीं पड़ने वाला है. इस बारे में रेलवे को सोचते हुए मंडल स्तर से चलने वाली ट्रेनों के लिए अतिरिक्त रेक की व्यवस्था करने के बारे में भी सोचना चाहिए जिससे किसी ट्रेन विशेष के अधिक लेट हो जाने पर उसके स्थान पर उस वैकल्पिक रेक को समय से गंतव्य की तरफ रवाना किया जा सके.           
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें