मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 12 सितंबर 2015

फिर वीवीआईपी कल्चर

                                       देश में वीवीआईपी लोगों के विभिन्न शहरों में होने वाले दौरों के दौरान आम लोगों को किस तरह से परेशानियां उठानी पड़ती हैं यह जानकर किसी को भी बहुत दुःख होता है और लगभग हर बार इस तरह की घटनाओं के होने पर सरकारी स्तर पर अजीबो गरीब सफाई भी दी जाती है जिसका कोई मतलब नहीं होता है. पीएम की चंडीगढ़ यात्रा के दौरान जिस तरह से उनके मार्ग से सम्बंधित स्थलों पर लोगों को हिलने तक नहीं दिया गया उससे आमलोगों में बहुत गुस्सा है क्योंकि किसी समय भाजपा मनमोहन सिंह के समय में किसी भी स्थान पर न्यूनतम सुरक्षा उपायों के बाद भी आमलोगों के मुद्दे को उठाया करती थी पर कल चंडीगढ़ में जो कुछ भी हुआ उसका विपरीत असर समझते हुए खुद पीएम मोदी ने इस मसले पर सफाई देना उचित समझा क्योंकि निचले स्तर से दी गयी कोई भी सफाई आम लोगों के गुस्से को शांत करने का काम नहीं कर सकती थी. यह सही है कि पीम पद पहुंचा हुआ कोई भी व्यक्ति इस तरह की समस्याओं से बचना ही चाहता है पर इस बहाने से एक बार फिर पुलिस और प्रशासन के काम करने के तरीकों पर सवाल उठने लगे हैं.
                            मोदी की चंडीगढ़ यात्रा के दौरान जिस तरह से पूरे शहर को सील कर दिया गया और कारगिल युद्ध में दुश्मनों से लोहा लेने वाले ब्रिगेडियर देवेन्द्र सिंह के बेटे के निधन के बाद उनको शमशान घाट तक सिर्फ इसलिए नहीं जाने दिया गया क्योंकि शमशान घाट में प्रशासन ने मोदी के कार्यक्रम की अस्थायी पार्किंग बना रखी थी. फरीदाबाद में सैनिकों के मनोबल और सम्मान की बात करने वाले पीएम की यह यात्रा एक सेनाधिकारी के लिए कितनी भारी पड़ी यह देखने वाला कोई भी नहीं है. स्थिति यहाँ तक ही नहीं रुकी क्योंकि संभवतः ऊपर से आदेश थे या चंडीगढ़ प्रशासन ने खुद ही तय कर लिया था कि किस तरह से मनमानी करनी है. एक पत्रकार अमित सिंह के पिता और हरियाणा सरकार के एक सेवानिवृत्त ७० वर्षीय अधिकारी को रात ११ बजे पुलिस जीरकपुर स्थित घर से यह कहकर उठा ले गयी कि सीनियर सिटिजंस की एक बैठक कोतवाली में बुलाई गयी है और उन्हें वहां जाकर पता चला कि कभी वे कांग्रेस का कार्यकर्ता थे सिर्फ इसलिए उन्हें प्रदर्शन से रोकने के लिए सरकार ने यह कदम उठाया था. एक सत्तर वर्षीय बुजुर्ग के प्रदर्शन से अगर देश के पीएम को खतरा लगता है तो यह देश के लिए चिंता की बात है.
                           हर बात में आपातकाल का रोना रोने वाली भाजपा और खुद मोदी क्या यह बता पाने में सक्षम हैं कि इस तरह से पुलिस ने कितने लोगों को थानों में बिठाकर रखा था और कितने लोगों के सामान्य मानवाधिकारों को पीएम की इस एक दिनी यात्रा के लिए बुरी तरह से कुचला गया था ? जिन लोगों के पास सोशल मीडिया का सहारा था उन्होंने अपनी बात कह दी पर वे सामान्य लोग जिनके पास अपनी कहानी सुनाने के लिए कोइ मंच नहीं है पूरे दिन किस यातना से गुजरे होंगे यह समझा जा सकता है एक ब्रिगेडियर के बेटे के अंतिम संस्कार को रोकना और एक पूर्व सरकारी अधिकारी को थाने में बिठाना सिर्फ इसलिए सामने आ पाया क्योंकि इन्होंने अपनी बात को दुनिया के सामने लाने की कोशिश की और समाज के इन दोनों वर्गो का ही पूरा रसूख होता है. सिर्फ प्रोटोकॉल के नाम पर मनमानी करते हुए यह सरकारी गुंडागर्दी सदैव के लिए बंद होनी चाहिए और खुद वीवीआईपी लोगों को उन इलाकों में जाने से पूरी तरह से बचना चाहिए जहाँ जाना आम लोगों के लिए इतना बुरा सपना बन जाता है. चूंकि भाजपा इस मुद्दे पर राजनीति किया करती थी तो चंडीगढ़ में कांग्रेसी भी कुछ वैसा ही कर सकते हैं पर केवल राजनीति के लिए ही विरोध करने के स्थान पर अब इस समस्या का स्थायी हल निकालने के प्रयास किये जाने की आवश्यकता भी है.  
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