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गुरुवार, 10 सितंबर 2015

केरल सुन्नी महालु की पेशकश

                                           आज जब देश में जगह जगह पर लाउडस्पीकर लगाने को लेकर छोटे संघर्षों से लगाकर सांप्रदायिक दंगे हो जाना आम बात हो चुकी है तो उस स्थिति में देश के पूर्ण साक्षर प्रदेश केरल के सुन्नी महालु फेडरेशन की तरफ से जुडी लगभग ८००० मस्जिदों से इन्हें केवल अज़ान और आवश्यक उद्घोषणाओं तक ही सीमित रखे जाने की अपील की गयी है अब चूंकि यह केरल की सुन्नी मुसलमानों से जुडी हुई सबसे बड़ी समिति है तो इसकी इस अपील का निश्चित तौर पर अच्छा प्रभाव ही सामने आने वाला है. जिस तरह से इस बात की शुरुवात खुद मस्जिदों से जुडी हुई समिति में सामने आई और अधिकांश लोग इससे सहमत भी दिखे तो यह देश के लिए एक नई मिसाल और परिवर्तन के रूप में सामने आ सकता है. कुछ लोगों द्वारा इस बात पर भी सहमति बनाने के प्रयास किये गए कि स्थान विशेष में कई मस्जिदें होने पर केवल एक मस्जिद से ही प्रार्थना की जाये जिससे आम जनता को परेशानी न हो यदि आने वाले समय में इस तरह की कोई सहमति बन पाती है तो यह देश के सहिष्णु स्वरुप के लिए बहुत अच्छा हो सकता है.
                        कोई काम जब किसी के दबाव में किया जाता है तो लोकतंत्र में राजनैतिक कारणों से उसका विरोध भी आसानी से शुरू हो जाता है आम तौर पर अभी तक यही देखा गया है कि स्थान विशेष की समस्या में जब विभिन्न दलों के नेता शामिल हो जाते हैं तो परिस्थितियां और भी वीभत्स हो जाती हैं क्योंकि धार्मिक आधार पर होने वाले ध्रुवीकरण से अलग अलग जगहों पर अलग अलग दलों को लाभ भी मिलते रहते हैं. यहाँ तो स्वेच्छा से शुरू की गयी बातों की है पर क्या सभ्य समाज में विशेषकर हिन्दू और मुसलमानों की तरफ से इस तरह की कोशिश की आवश्यकता नहीं है क्योंकि जब ये लाउडस्पीकर नहीं होते थे तो संभवतः प्रार्थनाओं में असर अधिक हुआ करता था पर आज धर्म में दिखावे का जिस हद तक समावेश हो गया है वह देश के लिए विषबेल जैसा साबित हुआ है जिसे जितना उखाड़ने की कोशिश की जाती है वह उतनी ही मज़बूत होती जाती है और दोनों धर्मों के अनुयायियों को एक दूसरे के सामने लाती रहती है. धर्म में प्रार्थना के स्थान पर जब से दिखावे ने स्थान बना लिया है तब से मनुष्य के लिए ध्वनि प्रदूषण के घातक स्तर तक पहुँच जाने वाले इन लाउडस्पीकरों पर नियंत्रण करने के लिए कोई निर्णय अपने आप नहीं लिया गया है.
                         इस प्रयास में केरल के इस समुदाय और इसके फेडरेशन की सफलता की कामना पूरे देश को करनी चाहिए जिससे यही मॉडल स्वेच्छा से देश के अन्य राज्यों में भी अपनाया जा सके. यह सभी जानते हैं कि लाउडस्पीकर धार्मिक गतिविधियों की जानकारी देने के लिए ही उपयोग में लाये जाने चाहिए पर आज जिन क्षेत्रों में तनाव रहा करता है वहां छोटे से धार्मिक स्थान और सीमित आबादी होने पर भी बड़ी संख्या में इनका दुरूपयोग किया जाता है और खेद की बात यह भी है कि समाज के ज़िम्मेदार लोग भी खुद को इस सब मामलों से दूर ही रखना चाहते हैं जिससे मामला उन लोगों के हाथों में आसानी से चला जाता है जो इस मुद्दे पर भी विद्वेष भड़काने की कोशिशों में लगे रहते हैं. देश को धार्मिक लोगों से अधिक ज़िम्मेदार नागरिकों की आवश्यकता होती है क्योंकि जब कोई नागरिक देश के लिए ज़िम्मेदारी निभाने की बात करेगा तो उसके लिए इस तरह के छोटे मामलों पर भी धर्म से पहले देश आएगा और वह देश के सद्भाव को बनाये रखने के लिए धर्म पर विवेक को प्राथमिकता देने की तरफ भी बढ़ पायेगा. इस तरह के मामले यदि धर्म की इस तरह की समितियों के माध्यम से हल किये जाने लगें तो यह आम नागरिकों के साथ देश के लिए भी बहुत अच्छा रहेगा.         
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