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शनिवार, 17 अक्तूबर 2015

स्पेशल ट्रेन और यात्री

                   मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही जिस तरह से रेलवे में कुछ नये तरह के प्रयोग किये जा रहे हैं उनका रेलवे की सेहत पर कैसा प्रभाव पड़ने वाला है यह तो समय ही बता पायेगा पर अभी तक इस नयी कवायद के चक्कर में रेलवे को कोई विशेष लाभ तो नहीं हो रहा पर यात्रियों को ही नुकसान अधिक उठाना पड़ रहा है. त्योहारों के मौसम में अभी तक आम लोगों को सुरक्षित घर पहुँचाने के लिए जिस तरह से रेलवे द्वारा स्पेशल ट्रेनों का सञ्चालन किया जाता रहा है पर इस बार केवल आमदनी को ही ध्यान में रखते हुए जिस तरह से इन सुविधा ट्रेनों के किराये में ही तत्काल शुल्क वसूला जा रहा है उसे किस हद तक व्यवहारिक कहा जा सकता है ? यह भी सही है कि रेलवे को अपनी आय और व्यय के अंतर को घटाने के लिए सभी उपाय अधिकार हैं पर अभी तक इस दिशा में जो कुछ भी रहा था उसे इतनी बड़ी हानि भी नहीं होती जिसे पूरा करने लिए मंत्रालय और रेलवे बोर्ड को इस हद तक पैसा कमाने के बारे में सोचना पड़ा है ?
                           यह सही है कि शुरुवाती दौर की इन स्पेशल ट्रेनों में वापसी के समय कुछ बर्थ खाली रह जाती हैं जिनसे होने वाले काल्पनिक नुकसान को ध्यान में रखते हुए ही रेलवे ने आने जाने दोनों तरफ से यात्रियों के लिए तत्काल शुल्क अनिवार्य रूप से लगाये जाने की बाध्यता कर दी है जिससे इन ट्रैनों के भरोसे सपरिवार छुट्टियों पर घर की यात्रा करने पर हर व्यक्ति का खर्च लगभग डेढ़ गुना हुआ जा रहा है. क्या इस तरह की सोच को धरातल पर उतारने से पहले सरकार और रेलवे बोर्ड ने उन लोगों के बारे में विचार किया जो साल में एक दो बार ही त्योहारों पर घर जा पाते हैं ? रेलवे के पास आय बढ़ाने के बहुत सरे अन्य उपाय भी हैं पर इस तरह से बिना किसी पूर्व सूचना के लोगों से अधिक किराया वसूला जाना कैसे सही ठहराया जा सकता है इसी तरह से पिछले वर्ष भी रेलवे ने स्पेशल ट्रेनों को प्रीमियम में बदल कर लोगों की घर जाने की मज़बूरी का बहुत फायदा उठाने की कोशिश की थी जिसका विरोध किये जाने पर सरकार को यह जन विरोधी कदम वापस लेना पड़ा था।
                      क्या रेलवे बोर्ड इस तरह की सुविधा शुरू किये जाने के बाद स्पेशल ट्रेनों की आय व्यय का कोई अलग प्रपत्र जारी करेगा जिससे इस बात का अंदाज़ा लगाया जा सके कि आखिर इस जन विरोधी कदम से रेलवे को वास्तव में कितनी आय हुई ? आज इस स्पेशल सुविधा के मंहगे होने के कारण ही इन ट्रेनों को उतने यात्री नहीं मिल पा रहे हैं जितने पिछले वर्षों में हुआ करते थे इस जानकारी के सामने आने के बाद भी जिस तरह से रेलवे बोर्ड अभी भी आँखें बंद कर बैठा हुआ है उससे यही लगता है कि अब मंत्रालय को जन सुविधाओं के स्थान पर केवल अपनी आय ही दिखाई देने लगी है. संभवतः रेलवे बोर्ड यह भूल गया है कि देश में रेलवे केवल आमदनी के लिए ही नहीं चलायी जा रही है यह अपने आप में देश के नागरिकों को आपस में जोड़ने का बहुत बड़ा काम भी करती है और इसके घाटे को जनता से प्राप्त कर से ही पूरा किया जाता है. यह समय की मांग है कि किराये तर्क संगत होने चाहिए पर क्या इन्हें इस तरह से सुधारा जाना अंतिम विकल्प ही है जिस पर बोर्ड ने विचार कर लागू करना शुरू कर दिया है ?  


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