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शुक्रवार, 16 अक्तूबर 2015

गो तस्करी और राजनीति

                                राजनैतिक और सामाजिक कारणों से ही सही पर जिस तरह से पिछले कुछ दिनों में सुनियाजित तरीके से भीड़ को अराजकता फ़ैलाने के लिए उकसाने का काम कुछ संगठनों द्वारा शुरू किया गया है उसकी जितनी भी निंदा की जाये कम ही है क्योंकि गोमांस और प्रतिबंधित पशुओं की तस्करी और बिक्री को लेकर जिस तरह से देश में इन लोगों का पूरा नेटवर्क बिछा हुआ है निपटने में लगभग सभी राज्यों की सरकारें और पुलिस पूरी तरह से अक्षम ही साबित हो रही हैं. दादरी कांड के बाद जिस तरह से भाजपा और हिंदूवादी संगठन एक बार फिर  सद्भाव बिगाड़ने के लिए निशाने पर आ चुके हैं वहीं आज भी इस तरह की घटनाएँ रुकने का नाम ही नहीं ले रही हैं. पंजाब से तस्करी के द्वारा यूपी लाये जा रहे तस्करों के समूह को जिस तरह से हिमाचल प्रदेश में स्थानीय लोगों ने घेरकर एक व्यक्ति को मार डाला वह आज की हमारी मानसिक स्थिति को ही प्रदर्शित करता है.
                          इस मामले में भाजपा ने अपनी राजनीति शुरू कर दी है क्योंकि जिस तरह भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता चंद्र मोहन ठाकुर ने वीरभद्र सरकार पर पशु तस्करों की हिमायत करने का आरोप लगाया उससे ही मामला स्पष्ट हो जाता है क्योंकि उनका यह मानना है कि यह पशु तस्करी पंजाब से यूपी तक की जाती है. यदि पंजाब से इस तरह से प्रतिबंधित पशुओं को यूपी तक भेजने की व्यवस्था की जा रही है तो उसमें बादल सरकार का क्या कोई दोष नहीं है ? केवल राजनैतिक लाभ के लिए ही इस तरह की बयानबाज़ी किसी भी तरह से समाज में सद्भाव और कानून की मदद करने में सहायक नहीं हो सकती है फिर भी वीरभद्र सरकार को पशु तस्करों के साथ खड़ा करना हिमाचल  भाजपा की एक सुनियोजित चाल ही हो सकती है इसलिए इस तरह के मामलों में सरकारों को गंभीरता परिचय देना चाहिए और साथ ही दोषियों के साथ सख्ती भी की जानी चाहिए.
                 स्थानीय लोगों ने जिस तरह से यह स्वीकार किया कि पूछताछ में इन लोगों ने ट्रक के सहारनपुर पहुँचने पर प्रति व्यक्ति ३००० रूपये मिलने की बात बताई थी उससे भी यह स्पष्ट होता है कि ये केवल पैसों के लिए काम करने वाले मजदूर ही थे जिनमें नोमान भी शामिल था जो इस तरह की अराजकता भी भेंट चढ़ गया। इस मामले को अब हिन्दू मुस्लिम की नज़रों से देखने के स्थान पर आर्थिक और भ्रष्टाचार के उजाले में देखने की आवश्यकता है क्योंकि अंतर्राज्यीय पशु तस्करी जैसा संगठित काम दिहाड़ी मज़दूरों की क्षमता से बाहर ही होता है और इस तरह के मामलों में वे केवल एक मोहरा मात्र ही होते हैं. इस मामले में पशु तस्करी रोकने के लिए अब राज्य सरकारों में सही सामंजस्य होने की आवश्यकता पर विचार करने की ज़रूरत भी है क्योंकि इन निचले स्तर के लोगों की हत्या से यह खेल रुकने वाला भी नहीं है. केंद्र और राज्य सरकारों को इस मामले में अधिक सख्ती करने और चेकपोस्टों पर अधिक सख्ती करने के बारे में सोचना चाहिए जिससे इस धंधे को वास्तव में रोका जा सके तथा निर्दोषों की इस तरह की जाने वाली हत्याओं को भी बंद किया जा सके.   
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