मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 24 अक्तूबर 2015

बयान, नेता, मीडिया और समाज

                                              लम्बे समय तक विपक्ष की राजनीति करने वाले दलों के लिए सत्ता में आने के बाद भी अपनी उसी विपक्षी दल जैसी मानसिकता से बाहर निकलने में बहुत लम्बा समय लगा करता है इसकी पुष्टि लगभग डेढ़ साल पुरानी मोदी सरकार और उसके नेता लगातार करते ही रहते हैं. आज मीडिया का युग है और इस क्षेत्र में इतनी प्रतिस्पर्धा है कि हर चैनेल अपने प्रतिद्वंदी से ख़बरों के मामले में किसी भी सूरत में आगे ही रहना चाहता है तो इस परिस्थिति में सरकार में बैठे हुए लोग ही उनके लिए महत्वपूर्ण खबरों का जुगाड़ करते रहते हैं. पहले किसी भी नेता के बयान को अख़बारों में छपने और निंदा आदि करने में कई दिन का समय लगा करता था पर अब सब कुछ लाइव ही होता है और किसी न किसी चैनेल में कोई न कोई चर्चा होती ही रहती है तो विवादित बयानों पर अविलम्ब चर्चा भी शुरू कर दी जाती है जिससे बयान देने वाले नेता के लिए खुद को बचाना मुश्किल भी हो जाता है.
                       संघ उसकी राजनैतिक इकाई भाजपा और अन्य संगठनों को यह समझना ही होगा कि अब वे विपक्ष में नहीं बल्कि सरकार चला रहे दल हैं और उनके द्वारा की जाने वाली किसी भी हरकत या विवादित बयान मोदी सरकार के लिए ही परेशानी का कारण बनता है और जिसे निशाने पर लेने की कोशिश की जाती है वह भी उनके बयान और सरकार पर आसानी से हावी हो जाता है. अभी तक विपक्षी दलों की अधिक बयानबाज़ी उनके लिए समस्या बना करती थी पर अब जब सत्ता का परिवर्तन हो चुका है तो उस स्थिति में भी भाजपा के नेता और अब मंत्री पद संभाल रहे लोग भी अनावश्यक बयान देने से बाज़ नहीं आ रहे हैं. वास्तविकता में पार्टी के अंदर स्थिति कुछ अलग ही लगती है क्योंकि मोदी और उनकी सरकार को अपनी छवि की चिंता अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी करनी है जबकि भाजपा के निचले स्तर के नेताओं को यह अच्छे से पता है कि किस तरह के बयान उनके पक्ष में लामबंदी का काम किया करते हैं.
                       एक बार इस तरह की हरकतों पर खुद पीएम संघ और भाजपा नेताओं के लिए पिछले वर्ष अपनी तरफ से कडा सन्देश दे चुके हैं पर शायद उनके कड़े सन्देश में छिपे हुए निहितार्थ उनके सन्देश पर भारी पड़ गए हैं तभी आम भाजपा नेताओं के साथ वे लोग भी कुछ भी बोलने लगे हैं जो केवल मोदी की कृपा से ही मंत्रिमंडल में बने हुए हैं. मोदी की जैसी छवि है उसमें इस तरह से उनकी बात की अनदेखी करने का साहस किसी में नहीं होना चाहिए पर खुद उनका संगठन ही उन्हें इस मामले में बौना साबित करने में लगा हुआ है जिससे यह सन्देश भी जाता है कि संभवतः मोदी की पकड़ अब उतनी नहीं रही जैसी मानी जा रही है. गृह मंत्री राजनाथ सिंह का यह बयान भाजपा और सरकार की मोदी की कठोर प्रशासक वाली छवि को बचाने के लिए ही दिया गया है जिससे उसका अनुपालन न करने पर शाह और मोदी के पास कुछ कहने और करने के लिए शेष बचा रहे. फिलहाल मोदी को यह समझना ही होगा कि ऐसे बयान उनके लिए कुछ वोटों का ध्रुवीकरण भले ही कर दें पर वे लम्बे समय तक उनकी राजनैतिक पारी पर धब्बे ज़रूर लगाते रहने वाले हैं.    
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