मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 25 अक्तूबर 2015

पर्यावरण और विकास

                                                      दुनिया भर में प्रचुर प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर किसी भी क्षेत्र के लिए अपने को बचाये रख पाने का संकट सदैव ही बना रहता है क्योंकि आज विकास की जिस परिभाषा के लिए पूरी दुनिया की मानव शक्ति लगी हुई है वह कहीं से भी इस पर्यावरण के अनुकूल नहीं लगती है. इसी क्रम में जिस तरह से असोम में नुमालीगढ़ रिफायनरी द्वारा हाथियों के प्राकृतिक रास्ते को रोककर वहां गोल्फ कोर्स के लिए दीवार बना दी गयी है वह सैकड़ों वर्षों से हाथियों के आवागमन के मार्ग पर आ गयी है जिस कारण हाथियों का अपने मार्ग से भटकना और ग्रामीणों के साथ संघर्ष करने जैसी समस्याओं में वृद्धि हुई है. वैसे भी देखा जाये तो हाथी सदैव ही अपने पुराने मार्ग का अनुसरण करते हुए ही जंगली क्षेत्रों में आते जाते रहते हैं जिससे उस मार्ग पर किसी भी तरह का व्यवधान उनके लिए आपदा से कम नहीं होता है.
              इस मामले में यह विवाद पहले से ही ग्रीन ट्रिब्यूनल के पास विचारधीन है फिर भी उस पर कोई निर्णय आने से पहले ही एनआरएल द्वारा जिस तरह से प्रतिबंधित क्षेत्र में वनों को काटा गया और अब हाथियों के रास्ते को गोल्फ कोर्स के लिए रोका जा रहा है उससे किसी भी तरह से विकास के आयाम हासिल नहीं किये जा सकते हैं. इस तरह के मामलों का तेज़ी के साथ निपटारा करने के बारे में भी सोचा जाना चाहिए जिससे किसी भी संगठन या संस्था द्वारा अपने लाभ के लिए कानून का उल्लंघन न किया जाये। देश में विकास होना चाहिए इस बात से किसी को भी इंकार नहीं हो सकता है पर क्या विकास के लिए देश में पहले से ही संकटों का सामने कर रहे वन जीवों की कीमत पर यह सब चाहिए अब इस बात पर भी विचार करने की आवश्यकता है. विकास और प्रगति से जुड़े हुए उद्योगों को भी यह सोचना चाहिए कि जैविक विविधता बने रहने से उनके लिए भी किसी क्षेत्र विशेष में रहना आसान ही रहने वाला है.
           जब यह मामला पहले से ही विचाराधीन है तो उसके तहत इसे लंबित ही रहना चाहिए पर एनआरएल द्वारा जिस तरह से मनमानी करते हुए दीवार बनाकर हाथियों के लिए संकट उत्पन्न किया है उस पर कड़ी कार्यवाही भी होनी चाहिए जिससे आने वाले समय में कोई भी औद्योगिक समूह चाहे वह किसी भी क्षेत्र का हो इस तरह से मनमानी न कर पाये। जब तक मुद्दे पर फैसला नहीं आता है तब तक एनआरएल को इस तरह के काम करने से रोकने की भी आवश्यकता है. यह काम सरकार आसानी के साथ कर सकती है और नियमों की जानबूझकर अनदेखी करने वाले उद्योगों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही भी कर सकती है. अब इस परिस्थिति में सभी को अपने आसपास के पर्यावरण का भी ध्यान रखना ही होगा क्योंकि जब तक सरकार इस तरह के मसलों पर सख्त नहीं होगी केवल ट्रिब्यूनल के भरोसे पर्यावरण की रक्षा नहीं की जा सकेगी।
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