मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 26 अक्तूबर 2015

मंहगाई वास्तविकता और सरकार

                                           देश के मध्यम वर्ग के लिए मंहगाई हमेशा से ही एक बड़ी चुनौती रही है जिससे निपटने में सरकारें कोशिश तो करती रहती हैं पर कई बार उनके सारे प्रयास रखे ही रह जाते हैं और मंहगाई अपना असली स्वरुप दिखाने से बाज़ नहीं आती है. भारतीय परिप्रेक्ष्य में जहाँ मंहगी वस्तुएं बहुत बार देश की राजनीति पर बड़े प्रभाव डालने में सक्षम होती है वहीं नीति निर्धारित करने वाले लोगों की समझ में नहीं आता है कि वे आखिर किस तरह से आगे बढ़कर बात को सँभालने का काम करें ? आज जब पूरा विश्व हर हिसाब से आपस में जुड़ चुका है तो यह कहना भी सही नहीं है कि सरकारें मंहगाई बढाती हैं क्योंकि इसका सीधा सम्बन्ध सरकार और उसके भविष्य से जुड़ा होता है. नीतिगत स्तर पर लिए गए कुछ निर्णयों के अपेक्षित परिणाम सामने न आने पर भी नेताओं के लिए इन मुद्दों पर दिक़्क़तें बढ़ जाती हैं.
                    एसोचैम की एक रिपोर्ट के अनुसार आज देश के मध्य वर्ग के लिए मंहगाई बहुत बड़ी समस्या बनी हुई है जबकि पिछले वर्ष से थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित आंकड़े संतोषजनक बने हुए हैं. आमलोगों के लिए खाद्य, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाओं पर अपनी राय रखते हुए एसोचैम ने स्पष्ट रूप से कहा है कि बेशक इन सब पर मंहगाई का उतना असर न पड़ा हो पर आज ये सुविधाएँ मध्य वर्ग की पहुँच से बाहर ही हैं. उदाहरण के तौर पर दिल्ली जैसे शहर की बात की गयी है जो भारत की राजधानी है वहां भी किसी तरह की महामारी के सामने आने पर पूरा तंत्र बेबस ही नज़र आता है और आम लोगों के पास निजी क्षेत्र में जाकर मंहगा इलाज करवाने के अतिरिक्त कोई अन्य उपाय भी शेष नहीं बचता है. सरकार के प्रयास अवश्य होते हों पर उनके परिणाम कभी भी सामने नहीं आते हैं जो कि आम लोगों को और भी अधिक परेशान ही करते हैं।
                                  इसलिए इस तरह की समस्या से निपटने के लिए एक राष्ट्रीय नीति बनाकर इस पर संसद में गंभीर चिंतन किये जाने की आवश्यकता भी है क्योंकि आज के राजनैतिक परिवेश में जिस तरह से कभी भी कोई भी दल किसी भी गठबंधन का हिस्सा हो सकता है और सरकार चलाने की स्थिति में हो सकता है तो सभी को अर्थ व्यवस्था के आधारभूत तत्वों के बारे में जानकारी होनी ही चाहिए जिससे सरकार में रहते हुए वे सही नीतियों पर चल सकें तथा विपक्ष में होने पर वे सरकार की गलतियों पर भी ध्यान दे सकें। दुर्भाग्य से बहुत महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसद में कभी भी राष्ट्रीय नीति बनाये जाने पर चर्चा भी नहीं होती है और कई बार अनुभव की कमी या कुछ गलत निर्णयों के चलते देश और सरकार को गंभीर क्षति भी हो जाती है. कोई भी सरकार कभी भी अलोकप्रिय कदम नहीं उठाना चाहती है पर जब भी सही नीति बनाने की बात होती है तो उसमें कुछ दृढ़ता की आवश्यकता सदैव ही होती है.
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