मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 29 अक्तूबर 2015

भारत से दूर होता नेपाल

                                                   नेपाल द्वारा नए संविधान को अपनाने के बाद जिस तरह से भारत की तरफ से उसके मामलों में अपरोक्ष रूप से समस्याएं बढ़ाने के आरोपों के बीच नेपाल में जन जीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ और मधेशियों की भारत नेपाल सीमा पर आर्थिक नाकेबंदी से नेपाल में हर आवश्यक वस्तु की कमी होने लगी उसके बाद वहां आम लोगों के दबाव या भारत को सबक सिखाने के लिए ही नेपाल ने चीन के साथ अपने संबंधों को नए आयाम देना शुरू कर दिया है जो कि आने वाले समय में भारत के लिए नयी तरह की सुरक्षा चिंताएं भी लेकर आने वाला है. भारत एक तरफ चीन को घेरने के लिए लुक ईस्ट पॉलिसी पर काम करने में लगा हुआ है वहीं दूसरी तरफ आज़ादी के समय से ही भारत के साथ खड़ा नेपाल आज मजबूरी में चीन की तरफ जाता हुआ दिख रहा है जिससे हिन्द महासागर में जो कुछ भी भारत को हासिल होने वाला था अब उसकी भरपाई नेपाल में किसी भी स्तर पर नहीं हो पाएगी.
                                             यह सही है कि मोदी सरकार विश्व के तमाम देशों के साथ पहले से स्थापित  संबंधों को आज की परिस्थिति के अनुरूप बनाने की कोशिशों में लगी हुई है पर साथ ही उसकी तरफ से नेपाल मामले में गंभीर खामियां भी दिखाई दे रही हैं क्योंकि नेपाल भले ही एक स्वतंत्र और सम्प्रभु राष्ट्र है पर दोनों देशों में हर तरह के सांस्कृतिक सम्बन्ध सदियों से चले आ रहे हैं और आज की परिस्थिति में जब नेपाल में वामपंथियों के साथ साम्यवादियों का प्रभाव बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है तो उससे भारत की दक्षिण पंथी सरकार किस तरह से बर्दाश्त करने वाली है यह तो समय ही बता पायेगा पर इस तरह की घटनाओं से भारत की नेपाल से दूरी बढ़नी शुरू हो चुकी है. नेपाल ने चार दशकों से भारत के साथ चले आ रहे तेल आपूर्ति समझौते के साथ ही चीन से भी इसी तरह का समझौता का भारत का एकाधिकार समाप्त कर दिया है जिससे एक तरफ भारत को आर्थिक नुकसान पहुंचेगा ही पर साथ में नेपाल और भारत के संबंधों पर भी इसका बुरा असर पड़ना शुरू हो जाएगा.
                           वर्तमान में पीएम मोदी और विदेश मंत्री स्वराज पर इस बात का बहुत अधिक दबाव बनने भी वाला है पर संभवतः आज मोदी अपने कार्यक्रमों के बाच ही बिहार चुनावों में व्यस्त होने के चलते इन मुद्दों पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं और नेपाल से जुड़ा हुआ यह मामला अत्यंत गंभीर रुख लेता जा रहा है. क्या मोदी को यह लगता है कि जब उनके पास समय होगा तब वे नेपाल के साथ संबंधों पर विचार कर लेंगें तो यह उनकी बहुत बड़ी भूल ही होगी क्योंकि भारत जहाँ पाक बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ किसी न किसी तरह की समस्या में उलझा हुआ है तो नेपाल में एक नया मोर्चा खुल जाने से आखिर उससे एकदम से कैसे निपटा जायेगा यह भी सोचने का विषय है. यह सही है कि भारत पिछले दो दशकों से अन्तर्राष्ट्रीय मसलों पर अपनी बेहतर राय के साथ सदैव ही उपस्थित रहा करता है पर देशहित के मामले में नेपाल के साथ बराबरी के आधार पर कोई स्थायी समझौता क्यों नहीं किया जाता है जिसका अनुपालन हर परिस्थिति में करने की बाध्यता दोनों ही देशों पर हो.  
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