मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 30 अक्तूबर 2015

भारत-अफ्रीका परंपरा और संबंध

                                                                           देश के निर्माण में अपना किसी भी स्तर पर योगदान करने वाले नेताओं को भले ही सरकार पूरी तरह से भूल गयी हो पर भाजपा की कथित मीडिया टीम के लिए भारत अफ्रीका समिट में नेहरू-इंदिरा का जिक्र कहीं से भी संघ, मोदी और भाजपा को रास नहीं आया होगा। आज़ादी के बाद पूरी दुनिया में भारत को हर तरह से स्वीकार्य बनाये जाने के लिए नेहरू द्वारा किये गए प्रयासों को अनदेखा करते हुए जिस तरह से भाजपा ने पिछले चुनावों में उंनके चरित्र हनन से लेकर लगभग हर हथकंडा अपनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी उसकी उस मानसिकता को भी अफ्रीका के नेताओं ने पूरी दुनिया के सामने बहुत अच्छी तरह से आइना दिखा दिया है क्योंकि भारत की अभी तक की छवि पूरी तरह से सहिष्णु और सद्भाव बढ़ाने वाले राष्ट्र की ही रही है पर कहीं न कहीं से भाजपा के मातृ संगठन संघ द्वारा आज़ादी के बाद नेहरू के नेतृत्व में देश ने जो कुछ भी हासिल किया था उसे नकारने का काम ही अधिक किया जाता रहा है और उनकी कुछ नाकामियों को इस तरह से प्रदर्शित किया जाता है जैसे उन्होंने देश के लिए कुछ भी नहीं किया हो ?
                      लोकतंत्र में राजनैतिक विरोध होना अवश्यमभावी है क्योंकि विपरीत विचारधाराओं में से ही लोगों को अपने लिए सरकार चुनने की आज़ादी के बारे में अपने अधिकार का उपयोग करना होता है और इसी क्रम में देश ने कई बार शांतिपूर्ण सत्ता हस्तांतरण भी देखे हैं जो शायद दुनिया के लिए एक अचम्भे से अधिक कुछ भी नहीं हैं क्योंकि पिछली सदी में स्वातंत्र हुए देशों में जिस तरह से समस्याएं बनी रहती हैं भारत ने उससे पूरी तरह मुक्ति ही पा रखी है. संघ का देश में एक अपना ही अलग एजेंडा रहा है और उसी के तहत वह भाजपा से अपने काम करवाने की कोशिशें करता रहता है पर जिस समिट के लिए मोदी सरकार ने पूरा ज़ोर सिर्फ इस बात पर ही लगा दिया था कि यह केवल मोदी और भाजपा का ही सम्मलेन रह जाये तो दक्षिण अफ्रीका और ज़िम्बाब्वे के नेताओं ने अपनी स्पष्टवादिता से उनकी इस मंशा पर पूरी तरह से पानी ही फेर दिया जब उन्होंने मंच से ही भारत के साथ अफ्रीका महाद्वीप के रिश्तों के ज़िक्र में नेहरू और इंदिरा गांधी का ज़िक्र पूरी शिद्दत के साथ किया।
                            दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति जैकब जुमा ने जिस तरह से पिछली सदी में अपने देश के साथ संबंधों को बढ़ाने और विकास की बात करने के लिए नेहरू के योगदान की चर्चा की उससे यही लगता है कि भले ही देश की राजनीति में आज प्रभावी भूमिका निभा रहे संघ और मोदी सरकार के लिए नेहरू और इंदिरा की उपेक्षा करना आसान हो पर दुनिया और ख़ास तौर पर अफ्रीका के लोग आज भी उनके योगदान को नहीं भूल पाये हैं. इसी क्रम में जिम्बाब्वे के राष्ट्रपति रोबर्ट मुगाबे ने और भी आगे जाते हुए लम्बे समय तक भारत में राज करने वाली कांग्रेस पार्टी को भी महान बताया उससे केवल यही सीखा जा सकता है कि भले ही आज कोई भी दल या नेता अप्रभावी हो चुका हो पर उसके कार्यकाल में लिए गए फैसलों से प्रभावित होने वाले लोगों के लिए वह सदैव ही महत्वपूर्ण ही रहा करता है. आज यदि अफ्रीका के नेता इतने दिनों बाद भी नेहरू इंदिरा को याद कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर उनके काम तो बहुत ही महत्वपूर्ण रहे होंगे पर आज संघ, भाजपा और मोदी अपने देश की उस विरासत से पीछा छुड़ाना चाह रहे हैं जो अब देश के इतिहास में दर्ज़ हो चुकी है.
            लोकतान्त्रिक तरीके से चुनी हुई किसी भी सरकार को देश चलाने की पूरी स्वतंत्रता संविधान में दी गयी है पर अपनी सोच से इतर किसी अन्य को अपनी विरासत विरासत का हिस्सा न मानने वाली इस संघ की परंपरा को आज मोदी सरकार आगे बढ़ाने में लगी हुई है जिससे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उसकी छोटी सोच ही प्रदर्शित होती है क्योंकि यदि विश्व के साथ लम्बे समय तक भारत के संबंधों की रखवाली करने वाले नेताओं को भी इतनी महत्वपूर्ण समिट में भुला दिया जाता है तो जिन्होंने उनके साथ काम किया या उनकी नीतियों के चलते बहुत लाभ उठाया है वे किसी भी तरह से उसे नहीं भूलने देते हैं और इस समिट में संभवतः अफ्रीका के इन शीर्ष नेताओं ने यही बात सार्वजनिक मंच से कहकर एक तरह से मोदी सरकार को सन्देश देने का काम ही किया है. दूसरे नेता इस तरह की बातों रुख अपनाते हैं यह उनकी बात है पर भारत की श्रेष्ठ परंपरा का निर्वहन करते हुए नए युग में प्रवेश करने के बारे में एक स्पष्ट सन्देश इन सीधे साधे अफ़्रीकी नेताओं स्वर तो दे ही दिया गया है.  
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