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शनिवार, 31 अक्तूबर 2015

मोदी सरकार और कानून

                                          नई दिल्ली स्थिति केरल सरकार के आधिकारिक भवन केरल हाउस में जिस तरह से हिन्दू सेना के किसी व्यक्ति के कहने पर दिल्ली पुलिस ने तलाशी छापेमारी कर अभियान किया उसके बाद से मोदी सरकार और उसकी कार्यशैली बहुत ही विवादों के घेरे में है. इस मामले में जिस तरह से केवल एक फ़ोन पर वह सारा काम भी दिल्ली पुलिस ने कर दिखाया जो स्पष्ट रूप से उसकी सीमाओं से बाहर था तो इसे दिल्ली पुलिस की कार्यशैली और उसकी निरंकुशता के बारे में ही पता चलता है. मोदी के राष्ट्रीय राजनीति के परिदृश्य में सामने आने के बाद से ही जिस तरह से संघ, उसकी राजनैतिक इकाई भाजपा और अन्य विभिन्न नामों वाले संगठन जिस तरह से मनमानी करने आमादा हुए जा रहे हैं उसके बाद दिल्ली पुलिस का इस तरह का बर्ताव माहौल को बताने के लिए काफी है. क्या देश की राजधानी में खुद पुलिस इस तरह से बिना सक्षम अधिकारी और अधिकारों के कुछ भी करने के लिए मोदी और राजनाथ सिंह द्वारा खुली छोड़ दी गयी है ?
                             खुद पीएम मोदी और उनके द्वारा नियुक्त किये गए भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने एक समय जिस तरह से गुजरात में इसी तरह की राजनीति के माध्यम से अपना प्रभाव बढ़ाया था आज वे उसे ही पूरे देश में दोहराना चाह रहे हैं भले ही उसके लिए उनके नेता और सरकारी मशीनरी का किसी भी हद तक कैसा भी दुरूपयोग क्यों न किया जाये। वैसे तो देश भर में पुलिस इसी अजीब तरह से काम करने के लिए कुख्यात है पर अन्य राज्यों की पुलिस के मुकाबले दिल्ली पुलिस की छवि थोड़ी अलग भी क्योंकि उसकी कार्यशैली से उसके राष्ट्रीय राजधानी की पुलिस होने के संकेत भी मिलते हैं. केरल हाउस मामले में जिस तरह से अब विवाद सीधे तौर पर केरल की अस्मिता और मोदी सरकार के बीच का दिखायी देने लगा है उसमें कुछ लोगों को बलि का बकरा बनाया ही जायेगा।
                    अभी तक मोदी सरकार के गुणगान करने वाली रेटिंग एजेंसी मूडीज़ ने भी जिस तरह से भारत में बढ़ रही असहिष्णुता पर स्पष्ट रूप से अपनी राय देते हुए कहा है कि यदि ऐसा ही होता रहा तो मोदी के बहुत सारे महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट्स शायद सपना बनकर ही रह जाने वाले हैं और इससे देश में विकास, निवेश और आर्थिक प्रगति सभी पर बुरा असर पड़ने की पूरी संभावनाएं भी हैं. अब इस स्थिति में यदि बिना किसी विवाद के मोदी सरकार आगे है तो उसे इन बेलगाम लोगों पर कुछ लगाम देनी ही होगी पर देश में अभी तक विभिन्न स्तरों पर सामजिक बंटवारे से जिस तरह भाजपा अपने राजनैतिक मंसूबों को हासिल करती रही है संभवतः यह मुद्दा उन सब पर भारी पड़ जाता है और राज्यसभा में अपना गणित बिहार और यूपी के माध्यम सुधारने की की कोशिश में लगे हुए मोदी भी इसकी खुले तौर अनदेखी करने से नहीं चूक रहे हैं क्योंकि विकास और गुजरात के नाम पर जो वोट मिलने थे मिल चुके हैं और अब किसी भी तरह से सरकार बनाये जाने की कोशिशें चल रही है.
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