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शनिवार, 5 दिसंबर 2015

जागरूक या बेईमान नागरिक ?

                                                                          देश में इस बात पर अक्सर ही लम्बी चौड़ी बहसें होती रहती हैं कि नेताओं ने अपने लाभ के लिए देश के साथ बहुत अन्याय किया है और वे किसी भी परिस्थिति में देश को सबसे आगे रखकर नहीं सोच पाते हैं. मोटे तौर पर यह देखा जाये तो काफी हद तक सही भी लगता है क्योंकि पिछले कुछ दशकों में नेताओं के नैतिक स्तर में जिस तरह की गिरावट देखने को मिलती है वैसा पहले कभी भी नहीं हुआ था और आज भी इसमें गिरावट का दौर जारी ही है जिससे निपटने के लिए सरकार, समाज और चुनाव आयोग के साथ भारतीय संविधान भी अपने को लाचार ही पा रहा है. इस समस्या से निपटने के लिए कुछ भी करने से पहले क्या हम नागरिकों को यह नहीं सोचना चाहिए कि ऐसा क्यों हो रहा है और क्या इसमें हमारा भी योगदान कहीं पर शामिल है ? इसका उत्तर बहुत ही आसानी से खोजा जा सकता है क्योंकि जब भी सरकार की किसी भी बात पर निर्णय देने की बात आती है तो हम बहुत मुखर हो जाते हैं पर मौका मिलने पर हम भी इन नेताओं से अधिक सुविधाभोगी होने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं और देश संविधान को ताक पर रखने की भरपूर कोशिशें भी किया करते हैं पर साथ ही यह भी चाहते हैं कि हमारे जन प्रतिनिधि पूरी तरह से संविधान के अनुपालक ही रहें ?
                                      वर्तमान में यूपी में जिला पंचायतों के बाद ग्राम प्रधानों के चुनाव भी कई चरणों में चल रहे हैं जिससे जनता को संविधान में मिले हुए अधिकारों के हिसाब से ग्रामीण क्षेत्रों की समस्याओं और उनके निपटारे के लिए अपनी स्थानीय सरकार चुनने का अवसर मिला करता है पर क्या हम नागरिक इस सरकार को चुनने में पूरी ईमानदारी निभा पाते हैं ? इस सवाल का उत्तर सदैव न में ही मिलने वाला है क्योंकि जिस तरह से इस चुनाव के समय अन्य कोई चुनाव न होने के कारण शहरों की तरफ पलायन कर चुके और नगरीय निकायों में भी वोटर लिस्ट में होने के बाद भी अधिकतर लोग अपने गांवों में जाकर चुनाव प्रक्रिया में भाग लेते हैं और दोनों जगह वोट बननाते तथा उसका दुरूपयोग भी करते हैं उससे यही पता चलता है कि सरकारें चाहे कितना कुछ भी कर लें पर जनता भी कहीं न कहीं से चोर रास्ते खोजने में तैयार बैठी रहती है. क्या इन चुनावों में लड़ने वाले प्रत्याशियों और शहरों में बस चुके नागरिकों को यह पता नहीं है कि दो जगहों पर वोट होना खुले आम भारतीय संविधान का उल्लंघन हैं और दोषी पाये जाने पर इसमें सजा दिए जाने का प्रावधान भी है जिस पर अमल कभी भी नहीं किया जाता है क्योंकि इस तरह की शिकायतें भी नहीं होती और उन पर ध्यान भी नहीं दिया जाता है.
                                      इस समस्या से निपटने के लिए सरकार को सबसे पहले कानून बनाकर वोटरलिस्ट को आधार से जोड़ने के बारे में सोचना चाहिए जिससे अवैध रूप से दो जगहों पर वोट करने वाले लोगों के नाम स्वतः ही वोटर लिस्ट से हटाये जा सकें और इस व्यवस्था के लागू होने के बाद पूरी तरह से पहली बार जो भी व्यक्ति जहाँ भी वोट करे उसे वहीं का वोटर माना जाये तथा अन्य जगहों पर उसका वोट मिलने उसे हटा भी दिया जाना चाहिए. जब तक इस तरह की व्यवस्था नहीं हो पाती है तब तक पूरे देश के हर चुनावों के लिए उपयोग में लायी जाने वाली सभी वॉटरलिस्ट्स को एकरूप कर दिया जाना चाहिए जिससे किसी भी दूसरे स्थान पर डाले गए वोट को पहचाना जा सके और एक जगह ही नाम होने की बाध्यता के चलते यह भी माना जाना चाहिए कि दूसरी जगह का नाम फ़र्ज़ी है और उसे बिना कोई अवसर दिए ही वोटर लिस्ट से हटाने की कार्यवाही की जानी चाहिए. इस एक वोटरलिस्ट के लिए पूरे देश में एक अभियान भी चलाया जा सकता है और यह सेवा लेने के लिए लोगों को अपने आधार संख्या को ऑनलाइन अपनी वोटरलिस्ट से जोड़ने की सुविधा भी दी जानी चाहिए. जब तक नागरिकों के स्तर पर इस तरह से व्याप्त अनिश्चितता को समाप्त नहीं किया जायेगा तब तक निष्पक्ष चुनावों की बातें खोखली ही साबित होती रहेंगी.
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