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रविवार, 10 जनवरी 2016

रेलवे और लापरवाही

                                              भारतीय रेल को लगातार सुधारने की कोशिशें जो एक समय देश के युवा रेल मंत्री माधव राव सिंधिया के समय शुरू हुई थीं विभिन्न राजनैतिक कारणों और समस्याओं पर सही ध्यान न देने के कारण वे उस तरह से फलीभूत नहीं हो पायीं जैसी उनसे अपेक्षा की गयी थी. इसके लिए देश की राजनैतिक परिस्थितियों को भी काफी हद तक ज़िम्मेदार माना जा सकता है क्योंकि जब भी रेल के सुधार की बातें शुरू हुई तो रेल कर्मचारियों से जुड़े हुए संगठनों ने ही सबसे अधिक विरोध करने की प्रवृत्ति सदैव ही बनाये रखी है जिससे वे आवश्यक सुधार भी कहीं रुक से गए जो समय के साथ भारतीय रेल के लिए जीवनदायी और आर्थिक रूप से बहुत प्रभावशाली भी हो सकते थे. लम्बे समय तक राज्यों के प्रभावी नेताओं को उनके सांसदों की संख्या के अनुपात में केंद्र में गठबंधन सरकार के मुखिया को यह महत्वपूर्ण मंत्रालय मजबूरी उन्हें में देना पड़ा जिसका सीधा असर यही हुआ कि उनमें से अधिकतर की सीमित सोच ने रेलवे के संसाधनों को पूरी तरह से खाली करने में कोई कसर नहीं छोड़ी. आज रेल मंत्री सुरेश प्रभु द्वारा पूरी ज़िम्मेदारी के साथ एक बार फिर से रेलवे के कायाकल्प की कोशिशें की जा रही हैं पर उनके बीच आज भी रेलवे कर्मचारियों में काम न करने की प्रवृत्ति के चलते यात्रियों को विभिन्न तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है.
                                           अभी हाल ही में चंडीगढ़ से लखनऊ चलने वाली १२२३२ सुपरफास्ट एक्सप्रेस में सफर करने का अवसर मिला तो उसके बी१ / बी२ कोचों में शौचालयों की दुर्दशा देखकर यही लगा कि इतनी महत्वपूर्ण ट्रेन के रखरखाव में भी किस तरह की लापरवाही की जाती है. चार में से तीन शौचालयों में अंदर और बाहर से बंद करने की व्यवस्था ही नहीं थी और एक में रस्सी बांधकर बंद किया गया था जिससे उनका उपयोग कर पाना असंभव ही था उसके साथ लगे बी २ कोच के शौचालयों में पानी ही नहीं था तो उनके उपयोग की सम्भावना भी ख़त्म ही हो गयी थी. ऐसी परिस्थिति में यदि कोई अकेली महिला सफर कर रही हो तो रेलवे उससे क्या अपेक्षा करता है कि वह कितने कोच आगे जाकर शौचालय का उपयोग करे ? निश्चित तौर पर यह रखरखाव से जुड़े मामलों में गंभीर लापरवाही का उदाहरण ही है और रेल मंत्री के लगातार किये जा रहे अच्छे प्रयासों के विपरीत ही है. इस मामले में वैसे तो चंडीगढ़ में वाश लाइन से जुड़े हुए स्टाफ की कमी ही दिखाई देती है पर उस स्टाफ को नियंत्रित करने के लिए जो भी व्यवस्था बनायीं गयी है क्या वह भी सही तरीके से काम कर रही है और इस पर किसी का कोई नियंत्रण नहीं है. रेलवे आज भी आम लोगों के आवागमन का महत्वपूर्ण साधन है पर इसमें निचले स्तर के स्टाफ द्वारा जिस तरह से लापरवाही की जाती है उसका ख़मियाजा पूरे कोच के सभी यात्रियों को भुगतना पड़ता है.
                          जब महत्वपूर्ण मार्गों पर चलने वाली सुपरफास्ट ट्रेन का यह हाल है तो सवारी गाड़ियों की हालत का अंदाज़ा आसानी से लगाया ही जा सकता है. इस तरह के मामले में जिस तरह से सभी अपनी ज़िम्मेदारी दूसरों पर डालने के लिए ही तैयार दिखाई देते हैं उससे भी परिस्थिति और बिगड़ती जाती है क्योंकि टीटीई के पास शिकायत पुस्तिका के अतिरिक्त संभवतः और ऐसा अधिकार नहीं होता है जिसका उपयोग कर वह ट्रेन के सामान्य रखरखाव से जुड़े मसले पर उस स्टाफ के खिलाफ शिकायत भी कर सके. ऐसे में जब यात्रियों द्वारा इस तरह की समस्या की तरफ उनका ध्यान दिलाया जाता है तो वे भी लाचार से ही दिखाई देते हैं क्योंकि शौचालय की कुण्डियों और टैंक में पानी न होने जैसी शिकायतों को चलती हुई गाड़ी में किसी भी तरह से दूर नहीं किया जा सकता है. ऐसे किसी भी मामले के लिए निश्चित तौर पर रेलवे के पास कोई व्यवस्था होगी पर संभवतः उसका अनुपालन नहीं किया जा रहा है जिससे भी आमतौर पर यात्रियों को इस तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है. इनसे निपटने के लिए अब रेल मंत्रालय को कुछ नयी तरह से सोचने की भी आवश्यकता है क्योंकि बिना इसके स्टाफ पर दबाव नहीं बनाया जा सकता है. अभी तक जिस तरह से इन शिकायतों के लिए यात्री भी पहल नहीं करना चाहते हैं तो उस स्थिति में स्टाफ को और भी अधिक निरंकुश होने की छूट मिल जाती है.
                                जिस तरह से रेल मंत्री के ट्वीटर हैंडल से कई लोगों को सही समय पर उचित मदद मिलनी शुरू हो चुकी है उस परिस्थिति में अब इस व्यवस्था को और भी अधिक मज़बूत बनाये जाने की भी आवश्यकता है क्योंकि यदि रेलमंत्री के हैंडल पर इस तरह की शिकायतों की भरमार जो जाएगी तो आने वाले समय में उनके हैंडल से भी इसे सही तरह से नियंत्रित नहीं किया जा सकेगा. इसके लिए रेलवे को एक पहल करके विभिन्न मार्गों पर चलने वाली ट्रेनों के लिए एक मंडल स्तर पर एक ट्वीटर हैंडल की व्यवस्था करनी चाहिए जिस पर आवश्यकता पड़ने पर यात्री अपनी बात कह सकें और यह हैंडल उस मंडल से जारी होने वाले हर टिकट पर स्पष्ट रूप से अंकित भी होना चाहिए जिससे किसी को भी इसे खोजने की आवश्यकता न पडे. इस हैंडल को २४ घंटे मंडल मुख्यालय के किसी कर्मचारी द्वारा लगातार देखा जाये जिससे किसी भी समस्या के बारे में रेलवे को जानकारी मिल सके और यात्रियों की यात्रा को भी सुखद बनाया जा सके. पूरे भारत के लिए एक शिकायती फ़ोन नंबर होने के स्थान पर मंडल स्तर पर टोलफ्री नंबर भी होना चाहिए जो हर टिकट पर छपा हो जिससे सोशल मीडिया का उपयोग न करने वाले लोग भी अपनी बात सही जगह तक पहुँच सकें. इसके साथ ही लापरवाह कर्मचारियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने के बारे में भी सोचना शुरू करने का अब समय आ गया है क्योंकि केवल यात्रा टिकट और कैसी भी यात्रा करने के लिए अभिशप्त रेलयात्रियों की यात्रा को सुखद बनाने के लिए अब इस तरह के परिवर्तन की आवश्यकता महसूस की जा रही है.                     
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