मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 26 मई 2016

यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते ??

                                      पुरुष प्रधान भारतीय समाज में आज जब दुनिया भर के विकास की बातें लगातार की जाती हैं तब भी उसके बीच से कहीं न कहीं से कुछ ऐसी बातें भी सामने आती रहती हैं जो आम भारतीय पुरुष की वास्तविक मानसिकता को प्रतिबिंबित ही करती रहती हैं. प्राचीन काल से ही महिलाओं के सम्बन्ध में हमारे देश में एक सूक्ति प्रचलित रही है कि "यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता" अर्थात जहाँ नारियों की पूजा (सम्मान) की जाती है वहां देवताओं (अच्छी विचारधाराओं) का निवास होता है फिर भी समाज के हर क्षेत्र में आगे बढ़ने वाली महिलाओं को हमारे प्रगतिशील समाज कहलाया जाना पसंद करने वाले लोग भी महिलाओं पर असम्भय, छिछली और बेहद आपत्तिजनक बातें करने से नहीं चूकते हैं. देश में एक बात और भी प्रचलित है कि यदि आपको अपने परिवार के इतिहास के बारे में पूरी जानकारी न हो तो आप एक चुनाव लड़कर देख सकते हैं जिसमें विरोधी आपके परिवार से जुडी हुई सारी बातों को खुद ही खोजकर आपको आश्चर्य चकित करने का कोई मौका नहीं छोड़ेंगें. महिलाओं का सम्मान केवल जबान हिलाने से आगे बढ़कर उनको वास्तविक रूप से सम्मान का हक़दार मानने से ही हो सकता है पर दुर्भाग्य से फिर से विश्व गुरु बनने का सपना पाले हम भारतीय अपनी दबी छिपी कुंठाओं को व्यक्त करने का कोई उचित अवसर न मिल पाने के कारण सदैव ही अपनी भड़ास को मौका मिलने पर इसी तरह से महिलाओं को निशाने पर लेकर निकालने का काम करते रहते हैं जिससे निश्चित तौर पर हमारी दोहरी और खोखली मानसिकता का परिचय मिलता है.
                        इस कड़ी में सबसे ताज़ा उदाहरण असम में हाल के चुनावों में विधायक निर्वाचित हुई मशहूर असमिया अभिनेत्री अंगूरलता डेका से देखा जा सकता है कि चुनाव जीतने के बाद किस तरह से सोशल मीडिया पर सभ्य कहलाने वाले लोगों की तरफ से भद्दे और अश्लील कमेंट्स किये गए जिनका किसी भी स्तर पर न तो समर्थन किया जा सकता है और जो कहीं से भी स्वीकार्य नहीं हैं फिर भी इन तथाकथित सभ्य लोगों ने जिस तरह से डेका से जुडी हुई तस्वीरों के साथ जुड़े हुए मर्यादा लांघने वाले हर कमेंट को आगे बढ़ाने का काम किया उससे यही स्पष्ट होता है कि मौका मिलने पर पुरुषों के मन में दबी हुई यह उत्कंठा कहीं न कहीं से ज़ोर मारने ही लगती है. डेका एक अभिनेत्री रही हैं तो क्या उन्होंने कोई गुनाह किया है और आज फिल्मों में वही सब दिखाया भी जाता है जिसे हीन भावनाओं से ग्रसित पुरुष समाज देखना भी चाहता है तो इसमें किसी अभिनेत्री को किस तरह से ओर दोष दिया जा सकता है ? फिल्मों में जब तक "एंटरटेनमेंट" के नाम पर असभ्यता को प्रदर्शित न किया जाये तब तक सम्भवतः उसे भी सम्पूर्ण नहीं माना जाता है. आखिर कोई स्त्री अपने शरीर को इस हद तक प्रदर्शित करने को क्यों मजबूर होती है जहाँ सीमायें टूटने लगें ? यह कौन सोचेगा पर भारतीय समाज में लड़कों में बचपन से जो संस्कार कूटकूट कर भरे जाते हैं वे उनके पूरे जीवन में समाज को इसी तरह की समस्याओं से लगातार दो-चार होने को मजबूर करने लगते हैं.
                      राजनीति का दलदल तो वैसे भी बहुत बदनाम है पर क्या किसी व्यक्ति के निजी जीवन को उसके सार्वजनिक जीवन के साथ इस तरह से जोड़ना उचित कहा जा सकता है ? क्या किसी के सिर्फ राजनीति में चले जाने से पूरे समाज को उस पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने का अधिकार मिल जाता है ? इस बात का उत्तर हमारे समाज के पास है ही नहीं क्योंकि यदि समाज में इतनी संवेदनशीलता होती तो वह नारी के बारे में सार्वजनिक रूप से इतनी अभद्रता कभी भी न कर पाता और ऐसा भी नहीं है कि समाज में यह सब पहली बार हुआ है क्योंकि अभी अधिक समय नहीं बीता है जब दिग्विजय सिंह और पीएम मोदी के साथ ही केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी पर भी इसी तरह के व्यक्तिगत हमले किये गए हैं जिनमें कहीं न कहीं निशाने पर केवल किसी महिला को ही लिया जाता रहा है. बेशक समाज को समाज में कार्य करने वाले किसी भी व्यक्ति के मूल्यांकन का अधिकार है पर क्या उस अधिकार की कोई सीमायें नहीं होनी चाहिए आलोचना करनी है तो इन नेताओं की नीतियों की खुलकर होनी चाहिए पर आलोचना में निजी जीवन पर प्रहार करना किस नैतिकता के दायरे में आता है यह कोई समझा भी नहीं सकता है. किसी भी सार्वजनिक हस्ती के कार्यों की अच्छाइयों और बुराइयों पर विमर्श होना कहीं से भी अनुचित नहीं है पर विमर्श के स्तर पर इतनी नीचता तक उतरना किसी भी समाज की वास्तविक स्थिति को ही दर्शाता है.
                      इस पूरे प्रकरण में हम सभी के अंदर के उन तत्वों के आत्मचिंतन का समय आ गया है क्योंकि समाज में ऊंचा स्थान पाये हुए किसी भी व्यक्ति ने यदि अंगूरलता मामले में उन अभद्र टिप्पणियों में किसी भी रूप में हिस्सा लिया है तो उसे अपनी मानसिकता पर विचार करना ही चाहिए क्योंकि किसी भी राष्ट्र का दर्पण उसके नागरिक होते हैं और यदि अंगूरलता के विधायक बनने से पहले तक उनकी ये तस्वीरें हमारे इसी समाज को स्वीकार्य थीं तो आज उनके राजनीति में आने के साथ ये सब इतनी आपत्तिजनक यह अभद्रता की हद तक जाने वाली कैसे बन सकती हैं ? देश के सामाजिक स्वरूप में यह सड़न सदैव से ही रही है और लम्बी चौड़ी बातें करने के लिए चाहे जिस भी सम्भ्यता और संस्कृति को उठाकर देख लिया जाये हर जगह इस तरह के लोग बड़ी संख्या में मिल जाने वाले हैं फिर हम किस तरह की बराबरी और सौजन्यता की बातें करते हैं जब हम अपने समाज के उस आधे हिस्से को ही उसका मान सम्मान दे पाने में पूरी तरह से असफल हो जाते हैं ? हम सभी के लिए यह समय है कि केवल अच्छी बातें करने और उनका समर्थन करने के स्थान पर उनमें निहित तत्वों का समावेश अपने अंदर करने की चेष्टा करें जिससे नारियों को वास्तव में वह सम्मान सके जिसकी वह सदैव हकदार है.       
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1 टिप्पणी:

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