मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

सोमवार, 12 दिसंबर 2016

सबसे पहले देश

                                                                 आज पूरे देश में विमुद्रीकरण के चलते जो स्थिति दिखाई दे रही है उसे सही तरह से सँभालने के लिए जो भी कदम उठाये जाने चाहिए उनके लिए सरकार कोशिश तो कर रही है पर जिस तरह से इस कदम की गंभीरता को समझे बिना ही आगे बढ़ने का काम किया गया है वह अब सरकार, रिज़र्व बैंक और जनता के लिए काम करने वाले बैंकों के लिए एक बहुत बड़ी समस्या लेकर आ गया है. देश को यह स्पष्ट चाहिए कि अब यह विमुद्रीकरण किसी भी परिस्थिति में बदला नहीं जा सकता है इसलिए देश की जनता और सरकार को यह समझना और समझाना ही होगा कि इससे किस तरह से कम समस्या के साथ निपटा जाये. सरकार यदि इस बात के लिए मन बनाये हुए थी तो सबसे आसान तरीका यही हो सकता था कि दो महीने पहले से ही बड़े नोटों की संख्या को कम करते हुए छोटे नोटों को चलन में लाने की कोशिश की जाती जिससे भुगतान और व्यापार में जो असंतुलन आज दिखाई दे रहा है उससे पूरी तरह से बचा जा सकता और आम लोगों की स्थिति पर इतना कुप्रभाव पड़ने से रोका भी जा सकता था पर इस पूरे मामले में जिस तरह की जल्दबाज़ी दिखाई गयी उससे भी परिस्थितियों को संभालना मुश्किल हो रहा है.
                                             जनता का जो हिस्सा डिजिटल बैंकिंग की तरफ बढ़ सकता है उसके लिए पहले से तैयारियों की आवश्यकता भी थी क्योंकि आज लोगों के पास खातों में पैसे तो हैं पर उनको खर्च करने लायक जगहें नहीं हैं. आज बड़े शहरों में भी लोगों की डेबिट कार्ड पर निर्भरता बहुत कम ही है तो उस स्थिति में किस तरह से पूरी स्थिति सामान्य रह सकती है ? क्या राज्य सरकारों की तरफ से इस बारे में नकदी को रोकने और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए कोई कदम केंद्र के साथ मिलकर उठाया गया था ? आज इस स्थिति को सँभालने के लिए जिस तरह के प्रयास किये जा रहे हैं क्या वे पूरी तरह से स्थिति में अपने को फिट पा रहे हैं ? बड़े रिटेल आउटलेट और पेट्रोल पम्प्स को इस बात के लिए पहले से ही तैयार किया जाना चाहिए था कि आवश्यकता पड़ने पर वे कैश का भुगतान भी कर सकें. यह व्यवस्था अपने आप में बहुत कारगर हो सकती है क्योंकि इन जगहों पर बड़ी मात्रा में रोज़ ही कैश इकठ्ठा होता है और यदि इनको इस तरह से जनता को धन देने के लिए तैयार किया जा सका तो बैंकों में कैश के लिए लगने वाली लाइन को हमेशा के लिए समाप्त किया जा सकता है. इससे जहाँ इन केंद्रों को बैंकों तक अधिक कैश पहुँचाने की समस्या से निजात मिल जायेगी वहीं आम जनता को भी आसानी हो जाएगी.
                                    अब इस समस्या से निपटने के लिए जो कुछ भी किया जाये वह एक क्षेत्र से समग्र रूप से होना चाहिए क्योंकि यदि पूरे देश में यह व्यवस्था करने की कोशिश की जाएगी तो इतने संसाधन जुटा पाना संभव नहीं होगा इसलिए अब केंद्र सरकार को राज्य सरकारों के साथ मिलकर हर पिछड़े इलाके में समस्या का समाधान करने की पहल करनी चाहिए क्योंकि शहरों में तो किसी तरह काम चल भी रहा है पर गांवों और दूर दराज़ के क्षेत्रों में लोगों की ज़िन्दगी बहुत कठिन हो गयी है. आधार पर आधारित पेमेंट को सबसे पहले गांवों में ही लागू करना चाहिए क्योंकि उनके पास बैंक की सेवाएं भी उपलब्ध नहीं है और शहरों में जो काम साक्षरता वाली या मलिन/ पिछड़ी बस्तियां हैं वहां पर जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए जिससे इन दोनों क्षेत्रों के लोगों के कष्टों को कम किया जा सके. गांवों में लोगों के लिए डेबिट कार्ड और पिन आदि संभालना भी कठिन होता है और उनके आस पास बैंकों की उपलब्धता भी नहीं है तो उस परिस्थिति में उनके लिए केवल आधार आधारित पेमेंट गेटवे स्थापित किये जाने चाहिए भले ही वे डेबिट कार्ड का उपयोग कर सकते हो और बिना किसी राजनीति के अब आधार को वोटर लिस्ट से भी जोड़ देना चाहिए जिससे आने वाले समय में एक राष्ट्रीय पहचान से आम लोग हर काम कर पाने में सफल हो सकें.  
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