मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 15 दिसंबर 2016

"बाइ अमेरिकन्स हायर अमेरिकन्स" की नीति

                                   अमेरिका के निर्वाचित राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प की तरफ से रोज़ ही जिस तरह के चौंकाने वाले बयान दिए जा रहे हैं आने वाले समय में वे अमेरिका के साथ सम्पूर्ण विश्व के लिए बड़े बदलाव और संकट लाने वाले भी साबित हो सकते हैं क्योंकि अभी तक जिस बयानों और नीतियों को ट्रम्प की चुनावी बातें समझ जा रहा था वह मूर्त रूप लेने की तरफ बढ़ता हुआ दिखाई दे रहा है. आज जिस वैश्विक गाँव की बात  की जाती है वह पूरी तरह से अमेरिका और पश्चिमी देशों की तरफ से किये गए प्रयासों का ही नतीजा है पर आज जब दुनिया के अधिकांश देश अपने यहाँ खुले व्यापार की नीतियों को बढ़ावा देने में लगे हुए हैं उस परिस्थिति में अमेरिका द्वारा अपने यहाँ आने वाले प्रशिक्षित प्रवासियों के लिए इस तरह से दरवाज़े बंद करने की प्रक्रिया को किसी भी स्तर पर कितना सही माना जा सकता है ? हर देश और उसके नेतृत्व को अपने देश के अनुसार नीतियों को बदलने और संशोधित करने का अधिकार मिला हुआ है पर जिस तरह से कुछ देशों में उग्र राष्ट्रवाद के नाम पर लोगों की भावनाओं को भड़का कर दूसरे देशों के लिए अवसर समाप्त किये जाते हैं वह किसी भी दशा में उस देश और सम्पूर्ण विश्व के लिए लाभदायक नहीं हो सकते हैं.
                                  आज इस बात को भारत जैसे देशों को समझना ही होगा क्योंकि अपने तेज़ विकास, बेहतर संसाधन और खुली नीतियों के चलते अभी तक अमेरिका पूरी दुनिया के प्रवासियों और विशेषज्ञों के लिए एक स्वप्न जैसा बना हुआ है तो ट्रम्प की नयी नीतियां पूरी दुनिया पर किस तरह का प्रभाव डालने वाली सिद्ध हो सकती हैं ? आज जब पूरे विश्व में सभी देशों की एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ती ही जा रही है तथा प्राकृतिक संसाधनों के उपयोग के साथ अन्य विकासपरक कामों में हर देश और कंपनी अपने यहाँ सबसे अच्छे लोगों को काम पर रखने के लिए इच्छुक होते हैं तो इस परिस्थिति में अब आखिर किस तरह से कुछ बड़े देश अपने यहाँ इस तरह की बंदिशें लगा सकते हैं ? इस तरह से काम करने पर और नए सिरे से नौकरियां देने पर लगने वाली पाबन्दी के चलते आने वाले समय में जहाँ भारत जैसे देशों के व्यावसायिक शिक्षा प्राप्त लोगों के लिए अवसर समाप्त होंगें वहीं देश में अच्छे अवसर न होने से उनकी प्रतिभाओं का सही उपयोग भी नहीं हो पायेगा. इस चिंता से निपटने के लिए अब भारत की निजी कंपनियों और सरकार को भी अपनी नीतियों में परिवर्तन करने और बेहतर मूलभूत संसाधन जुटाने के बारे में सोचना ही होगा जिसे उनकी नौकरियों और जीवन स्तर पर विपरीत प्रभाव न पड़े.
                                ऐसा नहीं है कि भारत के लिए यह करना बहुत मुश्किल होने वाला है पर यदि नीतियों में सही बदलाव कर शिक्षा को केवल जीविकोपार्जन से आगे बढ़कर देश और समाज के हित में व्यापक बनाने की तरफ काम शुरू किया जाये तो आने वाले समय में बहुत आसानी से ही हम अपने लक्ष्य को पा सकते हैं. पोखरण-२ के बाद जिस तरह से हमारे इसरो ने विदेशों और यहाँ तक रूस से भी तकनीक न मिलने की स्थिति में स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन बनाने में सफलता पायी थी आज अन्य क्षेत्रों में भी उस प्रक्रिया को दोहराया जा सकता है पर सारा देश इसरो की तरह पूरी निष्ठा के साथ काम करने के लिए तैयार हो यह भी इस सफलता के लिए बहुत आवश्यक होगा. हमें भी अपने संसाधनों को बेहतर तरीके से प्रबंधन के स्तर पर लाने की कोशिशें करनी होंगी जिससे देश के विकास पर बुरा प्रभाव न पड़े. चीन के साथ ट्रम्प के संबंधों को देखते हुए आने वाले समय में अमेरिका की रूस के साथ मित्रता बढ़ सकती है और चीन को घेरने का काम और भी आसानी से अमेरिका द्वारा किया जा सकता है. भारत को अपने हितों को ध्यान में रखते हुए ही आगे की परिस्थितियों के लिए अभी से वैकल्पिक उपायों पर विचार करना ही होगा तभी हम अपने विकास के पैमाने को ऊंचा बनाये रख पाने में सफल हो सकेंगें.  
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

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