ऐसा नहीं है कि देश में पहले कभी अधिकारियों द्वारा सरकार या पार्टी की नीतियों और मंशा के अनुरूप काम न किया जाता हो पर जिस तरह से अयोध्या विवाद में यूपी के डीजी होमगार्ड्स ने भाजपा से जुड़े मुसलमानों के एक मंच पर उनके साथ भव्य राम मंदिर निर्माण के लिए शपथ खायी उससे यही लगता है कि अब अधिकारियों में कार्यवाही का डर ही नहीं रह गया है. यह सही है कि हर व्यक्ति की निजी ज़िंदगी भी होती है और देश का संविधान उसे अपने धर्म, परंपरा और मूल्यों के अनुरूप जीवन जीने की पूरी स्वतंत्रता भी देता है पर जब कोई शासन या प्रशासन में जाता है उसे भारत के संविधान के प्रति शपथ लेनी होती है. फिर भी जिस तरह से पहले बरेली के डीएम ने कानून व्यवस्था में रोज़ ही सामने आने वाली नयी समस्या को लेकर प्रश्न उठाया वह भी सर्विस रूल के अनुसार गलत ही कहा जायेगा पर उनकी मंशा उन लोगों की तरफ इशारा करने की थी जो किसी भी परिस्थिति में अपनी ज़िद के कारण यूपी में लगातार प्रशासन के लिए सर दर्द बनते जा रहे हैं. डीजी होमगार्ड्स ने जिस तरह से एक कार्यक्रम में शपथ ली उससे स्थिति की गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है अयोध्या मामला सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन है और किसी भी विचाराधीन मामले पर टिप्पणियां करने या उनके पक्ष विपक्ष के किसी कार्यक्रम को आयोजित करने से कोर्ट की अवमानना होती है. वैसे तो देश के सभी राजनैतिक दल अपने चुनावी लाभ को देखकर विभिन्न मुद्दों पर कोर्ट के आदेशों कि धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं पर एक वरिष्ठतम पुलिस अधिकारी जिस पर कानून व्यवस्था को बनाये रखने की ज़िम्मेदारी हो ऐसे विचाराधीन मामले में किस तरह से ऐसा कर सकता है ? बरेली के डीएम के मामले में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या ने उनके पार्टी प्रवक्ता जैसी बात करने और अनुशासन में रहने की बात की थी पर डीजी के मामले में अभी तक चुप्पी संदेहों को जन्म देती है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
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