मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शुक्रवार, 5 जून 2020

चीन की चालें

                                                   एक तरफ जहाँ पूरी दुनिया कोरोना से जूझने में लगी हुई है वहीं चीन पूरी दुनिया में अपनी विस्तारवादी नीतियों को आगे बढ़ाने में लगा हुआ है. भारत के साथ लगती उसकी अरुणाचल प्रदेश से लद्दाख तक की सीमा को वह समय समय पर विवादित बनाने की कोशिशों में सदैव लगा ही रहता है पर १९६२ के बाद से ही भारत की सरकारों और जनता की निगाहों में चीन की स्थति ऐसे पडोसी की हो गयी है जो ज़रा सी नज़र चूकने पर बाहर दाना चुग रही मुर्गी को चुराने से भी बाज़ नहीं आता है. पंचशील के सिद्धांतों को जिस तरह से अनदेखा करते हुए चीन ने भारत की उन सीमाओं पर युद्ध लड़ा जहाँ किसी भी तरह के युद्ध के लिए पहुँचने के लिए भारत के पास उस समय न तो धन था और न ही संसाधन जिससे सीमावर्ती क्षेत्रों के बड़े भाग पर आज भी कब्ज़ा जमाकर विवाद बताकर चीन इसे मुद्दा बनाने की कोशिशों में लगा रहता है.
                            आज एक बार फिर से वही स्थिति दोहराई जा रही है और चीन भारत के सीमावर्ती क्षेत्रों तक अपनी पहुँच को मज़बूत करने वाले रास्तों और सुदूरवर्ती गांवों तक संपर्क मार्ग बनाने को लेकर सदैव ही आक्रामक रहा करता है. अब उसने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में भी विवाद शुरू किया हुआ है तो इस परिस्थिति से निपटने के लिए सरकार युद्ध के बजाय कूटनीतिक रास्तों से इसे हल करने का प्रयास करने में लगी हुई है. इस तरह की स्थिति में कोई भी सरकार युद्ध के बारे में नहीं सोचना चाहेगी वह भी तब जब चीन जैसा प्रतिद्वंदी सामने हो. अभी तक चीन केवल अरुणाचल, सिक्किम और लद्दाख में ही अपना विरोध दिखाता था पर जिस तरह से अब वह पूरी सीमा को ही चुनौती देने के मूड में दिखायी देने लगा है वह भारत के लिए चिंता का विषय ही है.
                              चीन से लगते अपने सीमावर्ती क्षेत्रों तक पहुँच को सुगम करने के लिए भारत की कोशिशें लम्बे अरसे से चल रही है और वर्तमान में मोदी सरकार ने इस पर और भी तेज़ी से काम करना शुरू किया है जिससे चीन को यह अच्छा नहीं लग रहा है. भारत के पास इतने सुदूरवर्ती क्षेत्र में कारगिल जैसी एक और लड़ाई लड़ने का विकल्प सीमित ही है क्योंकि कोरोना के चलते अर्थव्यवस्था को झटका लगा है उसे निपटना वैसे ही मुश्किल हो रहा है फिर भी भारत का अपने निर्माण कार्यों को जारी रखते हुए चीन के साथ कूटनीतिक स्तर पर बातचीत को बढ़ावा देने की दिशा में बढ़ना उचित है. चीन को कहीं न कहीं इस बात का अंदेशा भी है कि आज भारत में चीन विरोधी भावनाएं बढ़ रही हैं जिससे आज के माहौल में निपटना किसी भी सरकार के लिए मुश्किल हो सकता है. वैश्विक बाध्यताओं के चलते भारत सरकार चीन पर सीधे प्रतिबन्ध तो नहीं लगा सकती है पर अपनी जनता से दूसरे माध्यमों से चीनी सामान के बहिष्कार की बात तो कर ही सकती है जो कि किसी भी स्थिति में चीन के लिए सही नहीं होगा। कोरोना से उत्पन्न श्रमिक संकट से निपटने के लिए भारत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में सस्ते श्रमिकों की उपलब्धता को देखते हुए विनिर्माण क्षेत्र के लिए नई नीतियों पर काम कर चीन को सीधे तौर पर चुनौती तो दे ही सकता है.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है.... 

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