मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

रविवार, 16 जनवरी 2011

घाटी और सेना ?

                    एक ऐसी खबर जिसने सेना में बेचैनी बढ़ाने का काम किया उसकी फिलहाल अभी कोई आवश्यकता नहीं थी. राजनीति के चलते नेताओं को बहुत सारी बातें केवल अपने हितों को साधने के लिए ही कहनी पड़ती हैं पर जब बात कश्मीर और घाटी में सेना की संख्या में कटौती की हो तो इस तरह की बातों को सेना से विमर्श के बाद ही किया जाना चाहिए. केंद्र की तरफ से इस तरह की कोई भी बात किया जाना किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता है. यह सभी जानते हैं कि अगर आज कश्मीर में लोग चैन से रह रहे हैं तो उसके लिए सेना की अथक मेहनत ने ही काम किया है. अब जब किसी भी तरह से कोई राजनैतिक पहल करने की आवश्यकता है तो सेना को किसी भी तरह से शामिल किये जाने की कोई आवश्यकता नहीं है क्या ?
         यह सही है कि पूरे भारत के लोग कश्मीर में पूरी तरह से शांति चाहते हैं पर इस तरह से किसी के प्रयासों को शुरू करने से पहले सेना से हर पहलू पर बात करनी चाहिए क्योंकि अगर कभी आवश्यकता हुई तो इसी सेना और सैनिकों के भरोसे वहां पर कुछ किया जाना है. चुनी हुई सरकार को वहां पर राजनैतिक प्रक्रिया और विश्वास बहाली के सभी कदम उठाने की आवश्यकता है पर कहीं ऐसा न हो कि इस अवसर का लाभ आतंकी अपनी जड़ें घाटी में फिर से मज़बूत करने के लिए करने लगें ? बात अगर केवल घाटी के लोगों की ही होती तो सब कुछ किया जा सकता था पर जिस तरह से पाकिस्तान में बैठे आतंकियों के आक़ा लोग यहाँ पर किसी भी सूरत में शांति नहीं देखना चाहते हैं उसे देखते हुए तो यही लगता है कि अभी भी वे हताश नहीं हुए हैं ? अब यह घाटी के लोगों को ही तय करना है कि उन्हें शांति चाहिए या फिर हिंसा ?
       जिस तरह से कुछ कश्मीरी नेताओं ने यह भी खुलासा किया है कि मीर वायज और अन्य कश्मीरी नेताओं की हत्या के पीछे पाकिस्तान का हाथ था उससे तो यही लगता है कि पाक ने अब यह सोच लिया है कि दुनिया में जहाँ कहीं भी मुसलमान रहते हैं उन्हें संदेह के घेरे में खड़ा करवा ही देना है ? शायद इस तरह से ही वह अपने को इस्लामी दुनिया में जेहाद का पुरोधा ठहराना चाहता हो ? केंद्र चाहे जितनी भी सहूलियतें कश्मीर को दे दे पर सुरक्षा से जुड़ी किसी भी ढील को कहीं भी दिए जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि हमारे सैनिकों के सर्वोच्च बलिदान के बाद ही हमें यह दिन देखने को मिला है कि वहां पर हिंसा की तीव्रता बहुत कम हो गयी है और आम आदमी के जीवन स्तर में सुधार होना शुरू हो गया है फिर भी अभी आम कश्मीरी को पाकिस्तान के चंगुल से निकालने की आवश्यकता है जिससे आने वाले समय में पाक अपनी नापाक हरकतों से फिर झेलम के पानी को लाल करने की कोई कोशिश करने के बारे में सोच भी न सके.     


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