मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 3 मार्च 2011

अब शाहबाज़ भट्टी

                            पाक में जिस तरह से अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहज़ाद भट्टी की इस्लामाबाद में खुले आम घेरकर हत्या कर दी गयी उससे यही लगता है कि आने वाले समय में पाकिस्तान पूरी तरह से चरमपंथियों के कब्ज़े में जाना वाला है और वह जिन्ना का एक खुले समाज होने का सपना अब कभी भी पूरा नहीं कर पायेगा. जिन्ना जिस तरह से आधुनिकता के पैरोकार थे आज वह पाकिस्तान में कहीं भी नहीं दिखाई देती है. पाक आतंकियों को पालते-पालते अब जिस झमेले में फँस चुका है और शायद वह उससे निकलना भी नहीं चाहता है इसके लिए बहुत ही खतरनाक साबित होने वाला है ? असल में सत्ता अगर बेनज़ीर जैसे जनता से जुड़े नेता के पास होती तो शायद किसी तरह की बेहतरी की सम्भावना भी बन पाती पर भाग्य से सत्ता भोग रहे ज़रदारी के पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है और आने वाले समय में वे पाकिस्तान में अपने लिए कोई भविष्य देखते भी नहीं हैं ?  और सत्ता हाथ से जाते ही वे पाक छोड़ने में देर नहीं लगाने वाले हैं.
                           किसी की हत्या का मसाला उतना बड़ा नहीं है जितना बड़ा इस मानसिकता के पाकिस्तान में फैलने का क्योंकि पाकिस्तान से उठने वाली इस तरह की कोई भी चिंगारी पूरे इस्लामी जगत को प्रभावित करती है. यह सही है कि किसी को भी किसी भी धर्म के बारे में अनर्गल बातें नहीं करनी चाहिए भले ही वो किसी भी जगह हो. सामाजिक समरसता तभी बनी रह सकती है जब समाज में रहने वाले सभी लोग इसे बनाये रखना चाहें. पाकिस्तान जिस तरह से अराजकता की तरफ बढ़ रहा है और वहां पर अब ईशनिंदा कानून के तहत किसी को भी मार डालने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है उससे यही लगता है कि अब इस्लाम के अनुयायी भी पाक में धर्म के बारे में बात करने से डरने लगेंगें. इस्लाम को भाईचारे का पोषक माना जाता है पर जिस तरह से कुछ लोग केवल इस्लाम की आड़ में खड़े होकर इसे बदनाम करने का खेल खेलने में लगे हैं वह कहीं से भी इस्लाम के लिए अच्छा नहीं है. जब इस्लाम को इस तरह से बंदिशों में जकड़ने की ख़बरें आज पूरी दुनिया में जाती हैं तो इस्लाम के विरोधी इन सभी बातों को इस्लामिक विचारधारा का हिस्सा बताने से नहीं चूकते हैं.
           आज इस्लाम के सामने सबसे बड़ा संकट खुद उसके अनुयायियों ने ही खड़ा करना शुरू कर दिया है और आने वाले समय में यह प्रक्रिया आगे ही बढ़ने वाली है और इसे रोकने की कोई भी स्थिति कहीं से नहीं दिखाई देती है. जब कोई दूसरा इन बातों की तरफ ध्यान दिलाता है तो यह हस्तक्षेप में गिना जाता है इसलिए अब यह हर मुसलमान को यह समझना होगा कि इस्लाम की छवि को उनके बीच के ही कुछ लोग बदनाम करने में लगे हुए हैं और अगर आम मुसलमान अब चुप रहता है तो उसके खिलाफ़ बातें करने वालों को और अधिक मौके मिलने लगते हैं. कोई भी किसी में सुधार नहीं ला सकता है बल्कि सुधार स्वयं अन्दर से लाना होता है. कट्टरपंथियों की एक अलग ही दुनिया है और उन्हें अपने हितों के आगे इस्लाम से कुछ भी नहीं लेना देना नहीं है. अभी हाल में देवबंद भी इस तरह की वैचारिक मानसिक लड़ाई को देख चुका है. अपने मूल्यों को बचाए रखते हुए आसानी से आगे बढ़ा जा सकता है तभी पूरी कौम को फायदा होता. अब यह तय करना इस्लाम के अनुयायियों पर है कि वे इस तरह की घटनाओं को किस तरह से लेते हैं और आने वाले समय में इस्लाम की क्या छवि नयी पीढ़ी को देना चाहते हैं.          
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