केंद्र सरकार ने भ्रष्ट सरकारी कर्मचारियों और अधिकारियों के रिटायर होने के कारण उनके ख़िलाफ़ जांच में होने वाली कठिनाइयों को ध्यान में रखते हुए सभी विभागों को दिशा-निर्देश जारी किये हैं और उनसे रिटायर होने के बाद जाँच में आने वाली कठिनाइयों के बारे में पूछा है. यह एक ऐसा कदम है कि अगर इस बारे में कोई सही कदम उठा लिया गया तो आने वाले समय में सेवा के अंतिम वर्षों में भ्रष्टाचार को बढ़ावा देने वाले लोगों की शामत ही आ जाने वाली है. अभी तक किसी भी तरह से जुगाड़ करके ये भ्रष्टाचारी अपने रिटायर होने तक फाइल को दबवा देते हैं और रिटायर होने के बाद इन पर किस तरह से कार्यवाही की जाये इस बारे में कानून की ख़ामोशी ही जांच एजेंसियों के काम को और भी कठिन बना देती है. उस स्थिति में कोई भी सम्बंधित विभाग या जांच एजेंसी के पास जांच करने के अवसर बहुत कम हो जाते हैं. अब जिस तरह से जनता में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ गुस्सा है उसे देखते हुए पूरे तंत्र में सुधार करने की बहुत आवश्यकता है क्योंकि आम लोगों का इन पुराने नियमों और इनकी कुछ कमियों के ख़िलाफ़ रोष बढ़ता ही जा रहा है. जिसे कुछ ठोस और प्रभावी पर सरल प्रयासों के द्वारा सामने लाना ही होगा.
देश में एक भ्रष्टाचार को संगठित अपराध घोषित कर दिया जाना चाहिए और इसके अंतर्गत केवल सरकारी अधिकारी/ कर्मचारी ही नहीं वरन हर भारतीय नागरिक को शामिल किया जाना चाहिए. तंत्र की कमियों पर पर्दा डालने के स्थान पर सबसे पहले राजनैतिक तंत्र को ही अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए और अपने लिए ऐसा कानून बनाना चाहिए जिसमें उनके द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार की जांच भी त्वरित गति से समयबद्ध तरीके से हो सके ? जब तक देश के नेता इस काम की शुरुवात अपने से नहीं करेंगें तो भ्रष्टाचार कम नहीं होगा क्योंकि कारण चाहे कुछ भी हो भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों में भय सिर्फ़ इसलिए ही नहीं दिखाई देता है क्योंकि वे जानते हैं कि कहीं न कहीं से हिस्से की बंदरबांट करके अपनी खाल को बचाया जा सकता है. ऐसा करके वे न केवल अपने को सुरक्षित समझते हैं बल्कि किसी भी स्तर तक भ्रष्टाचार करने में नहीं चूकते हैं. क्या कोई ऐसी भी सरकार हो सकती है जिसको दूसरों के भ्रष्टाचार के बारे में तो सब पता चल जाये और अपने करीबी लोगों के बारे में कुछ भी न पता चले ? फिर भी ऐसे लोग महत्वपूर्ण पदों पर जमे बैठे रहते हैं और जनता की कमी को हड़पने में ही लगे रहते हैं इसके पीछे क्या मजबूरी हो सकती है ?
आज देश को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए विशेष अदालतों की आवश्यकता है और इनका सारा काम काज हर दिन नेट पर डाला जाना अनिवार्य होना चाहिए जिससे किसी भी केस में क्या हो रहा है यह आम लोग भी कभी भी जान सकें ?कई बार ऐसा होता है कि ख़बरी दुनिया से जुड़े कुछ लोग अपने किन्हीं छिपे स्वार्थों के कारण भी मानकों की अनदेखी कर जाते हैं जो कि कहीं से कानून विरुद्ध तो नहीं होते पर उनके बारे में खुलासा हो जाने पर वह स्वार्थ जग जाहिर हो सकते हैं. क्या कारण है कि कहीं से भी किसी भी तंत्र में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने की कोशिश या बेचैनी अन्दर से नहीं दिखती है क्यों हमेशा ही किसी पीड़ित को किसी संघर्ष के लिए भूमि तैयार करनी पड़ती है ? देश में जो गुस्सा है वह कहीं से भी इस स्थिति में क्यों नहीं पहुँच पाता है कि कोई भी उसके ख़िलाफ़ बोलने से डरने लगे ? शयद इस तरह के अभियानों में भी हमारे लोगों के निजी स्वार्थ आड़े आ जाते हैं और हर बात का श्रेय लेने के चक्कर में हम यह भूल जाते हैं कि ऐसा काम या अभियान देश के हित में होता है न कि व्यक्तिगत हित के लिए ? गाँधी जी से आन्दोलन की प्रेरणा लेने वाले भी यह भूल जाते हैं कि वे अपनी बात को अपने विरोध करने के तरीके से रखते थे और कहीं से भी यह नहीं चाहते थे कि उनका नाम हो जाये. अब देश को आगे बढाने के लिए कुछ शुरुवात तो करनी ही होगी...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
देश में एक भ्रष्टाचार को संगठित अपराध घोषित कर दिया जाना चाहिए और इसके अंतर्गत केवल सरकारी अधिकारी/ कर्मचारी ही नहीं वरन हर भारतीय नागरिक को शामिल किया जाना चाहिए. तंत्र की कमियों पर पर्दा डालने के स्थान पर सबसे पहले राजनैतिक तंत्र को ही अपने गिरेबान में झांक कर देखना चाहिए और अपने लिए ऐसा कानून बनाना चाहिए जिसमें उनके द्वारा किये जाने वाले भ्रष्टाचार की जांच भी त्वरित गति से समयबद्ध तरीके से हो सके ? जब तक देश के नेता इस काम की शुरुवात अपने से नहीं करेंगें तो भ्रष्टाचार कम नहीं होगा क्योंकि कारण चाहे कुछ भी हो भ्रष्टाचार करने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों में भय सिर्फ़ इसलिए ही नहीं दिखाई देता है क्योंकि वे जानते हैं कि कहीं न कहीं से हिस्से की बंदरबांट करके अपनी खाल को बचाया जा सकता है. ऐसा करके वे न केवल अपने को सुरक्षित समझते हैं बल्कि किसी भी स्तर तक भ्रष्टाचार करने में नहीं चूकते हैं. क्या कोई ऐसी भी सरकार हो सकती है जिसको दूसरों के भ्रष्टाचार के बारे में तो सब पता चल जाये और अपने करीबी लोगों के बारे में कुछ भी न पता चले ? फिर भी ऐसे लोग महत्वपूर्ण पदों पर जमे बैठे रहते हैं और जनता की कमी को हड़पने में ही लगे रहते हैं इसके पीछे क्या मजबूरी हो सकती है ?
आज देश को भ्रष्टाचार से निपटने के लिए विशेष अदालतों की आवश्यकता है और इनका सारा काम काज हर दिन नेट पर डाला जाना अनिवार्य होना चाहिए जिससे किसी भी केस में क्या हो रहा है यह आम लोग भी कभी भी जान सकें ?कई बार ऐसा होता है कि ख़बरी दुनिया से जुड़े कुछ लोग अपने किन्हीं छिपे स्वार्थों के कारण भी मानकों की अनदेखी कर जाते हैं जो कि कहीं से कानून विरुद्ध तो नहीं होते पर उनके बारे में खुलासा हो जाने पर वह स्वार्थ जग जाहिर हो सकते हैं. क्या कारण है कि कहीं से भी किसी भी तंत्र में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ लड़ने की कोशिश या बेचैनी अन्दर से नहीं दिखती है क्यों हमेशा ही किसी पीड़ित को किसी संघर्ष के लिए भूमि तैयार करनी पड़ती है ? देश में जो गुस्सा है वह कहीं से भी इस स्थिति में क्यों नहीं पहुँच पाता है कि कोई भी उसके ख़िलाफ़ बोलने से डरने लगे ? शयद इस तरह के अभियानों में भी हमारे लोगों के निजी स्वार्थ आड़े आ जाते हैं और हर बात का श्रेय लेने के चक्कर में हम यह भूल जाते हैं कि ऐसा काम या अभियान देश के हित में होता है न कि व्यक्तिगत हित के लिए ? गाँधी जी से आन्दोलन की प्रेरणा लेने वाले भी यह भूल जाते हैं कि वे अपनी बात को अपने विरोध करने के तरीके से रखते थे और कहीं से भी यह नहीं चाहते थे कि उनका नाम हो जाये. अब देश को आगे बढाने के लिए कुछ शुरुवात तो करनी ही होगी...
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें