मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

मंगलवार, 3 जुलाई 2012

नाम की राजनीति

         लगता है यूपी की राजनीति में हमेशा की तरह ही नामों को लेकर इस बार भी लड़ाई लड़ी जाने वाली है क्योंकि जिस तरह से अखिलेश सरकार ने कांशी राम उर्दू-अरबी- फ़ारसी विश्व विद्यालय का नाम बदलने के लिए सुझाव मांगे और उसके बाद ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती के नाम पर सहमति जताई वह एक बार फिर से उसे राजनीति का दोहराव लगता है जिसके कारण ही लखनऊ स्थिति चिकित्सा विश्विद्यालय का नाम कई बार सपा, बसपा सरकारों के सत्ता में आने के साथ बदला जाता रहा. यह सही है कि जब माया सरकार ने इस विश्विद्यालय का नाम कांशी राम के नाम पर रखा था तब उसे भी इस बात का सम्मान करते हुए किसी ख्याति प्राप्त मुस्लिम शख्स के नाम पर विचार करना चाहिए था उस समय भी कुछ अधिकारियों ने सरकार को दबी जुबान में यह सलाह देने की कोशिश की थी कि यदि किसी मुस्लिम नाम पर विचार किया जाये तो वह ज्यादा अच्छा रहेगा पर बसपा सरकार में सुझावों की क्या अहमियत थी यह सभी जानते हैं और इस विश्विद्यालय को कांशी राम का नाम मिल गया था.
         पता नहीं किस विचारधारा का समर्थन करते हुए या आज़म खान के दबाव में अखिलेश ने भी वह गलती की जो मुलायम भी किया करते थे और उन्होंने नाम बदलने की प्रक्रीया को हरी झंडी दे दी. इन दोनों दलों के बीच नामों को लेकर जिस तरह से वैचारिक युद्ध छिड़ा ही रहता है उस स्थिति में कभी भविष्य में बसपा के सत्ता में आने पर सबसे पहले ये नाम ही बदले जायेंगें जिसका असर मुस्लिम समाज पर भी पड़ेगा इसलिए ख्वाज़ा मोईनुद्दीन चिश्ती दरगाह के सज्जादानशीन दीवान सैयद जैनुल आबदीन ने ही इस तरह से सूफी संत के नाम पर किसी के नाम को बदलकर विश्विद्यालय का नाम रखने पर ही आपत्ति जताई है वह बिलकुल सही है उनका यह कहना भी सही है कि अगर यूपी सरकार वास्तव में ख्वाज़ा साहब के लिए कुछ करना चाहती है तो उसे किसी नए बने संस्थान का नाम ही उनके नाम पर रखना चाहिए क्योंकि वो जिस तरह के सच्चे सूफी संत थे तो उनके नाम का दुरूपयोग किसी भी तरह की किसी दल के किसी नेता की महत्वाकांक्षा की पूर्ति करने की राजनीति में नहीं करना चाहिए.
      जिस तरह से आज के समय में मुस्लिम समाज से इस तरह के घटिया राजनैतिक क़दमों का विरोध शुरू हो गया है वह देश के लिए बहुत अच्छा है क्योंकि अभी तक जो कुछ भी नेताओं द्वारा किया जाता है उसमें केवल उनकी ही राजनैतिक रोटियां सेंकने की मंशा ही अधिक दिखाई देती है. इस तरह का सकारात्मक चिंतन अब देश मुसलमानों में अगर बढ़ रहा है तो उससे इन नेताओं के लिए अपने लाभ के लिए उनके दुरूपयोग की संभावनाएं आने वाले समय में कम ही होने वाली हैं. देश के राजनैतिक दल अभी तक मुसलमानों का इस तरह के काम करके केवल इस्तेमाल ही करते आये हैं और अब अगर शिक्षा और सामाजिक परिवर्तन होने से आम मुसलमान इन बातों को कुछ हद तक समझने भी लगे तो यह देश के लिए तो शुभ संकेत ही है. अभी तक कुछ बनाये गए भय के कारण ही मुसलमानों को उनकी क्षमता के अनुसार न सोचने देने वाले कुछ उनके तथाकथित हितैषी भी इस बदलाव की आहट से चिंतित होंगें क्योंकि इससे उनकी राजनैतिक दुकान पर ही सबसे ज्यादा असर पड़ने की सम्भावना पैदा होने वाली है.  
   
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1 टिप्पणी:

  1. ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती अरबी फ़ारसी विश्वविद्द्यालय पर आपके विचारों से सहमत हूँ -श्रीधर अग्निहोत्री

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