मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 25 अप्रैल 2013

आरोपी- संदिग्ध या आतंकी

                                  देश में कानून किस तरह से काम करता है इसका ज्वलंत उदाहरण यूपी में संदिग्ध आतंकियों के ख़िलाफ़ सपा सरकार द्वारा मुक़दमें वापस लिये जाने से ही पता चलता है क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में संदिग्धों के रूप में हिरासत में लिए गए कई लोगों को अपने चुनावी घोषणा पत्र में किये गए वायदे के अनुसार सरकार ने छोड़ने के प्रस्ताव पर काम शुरू कर दिया गया है. संदिग्धों की गिरफ़्तारी हमेशा से ही एक संवेदन शील मुद्दा रही है क्योंकि कोई भी यह मानने को तैयार नहीं होता कि उसके किसी भी तरह से किसी आतंकी से कोई सम्बन्ध रहे हैं और कुछ अपुष्ट सूचनाओं के आधार पर ही सुरक्षा एजेंसियां अपने काम को आगे बढ़ाने का काम किया करती हैं और जब पूरे विश्व में बढ़ते इस्लामी आतंकवाद के कारण भारत में किसी भी आतंकी घटना के घटने पर सबसे पहले शक की सुई उन्हीं की तरफ घूमती है जिससे मुसलमानों में रोष बढ़ता है. अब सवाल यह है कि इस तरह की संदिग्ध गिरफ्तारियों के बारे में सरकार और पुलिस का क्या रुख होना चाहिए क्योंकि अभी तक कानून का जिस तरह से मज़ाक उड़ाया जाता है वह भी निंदनीय ही है.
                    सबसे पहले देश में आतंकी घटनाओं से जुड़ी किसी भी वारदात के लिए एक जैसे तंत्र पर काम करने की आवश्यकता पर ध्यान दिया जाना चाहिए क्योंकि कई बार ऐसा भी होता है कि संदिग्ध मानकर लोगों कि हिरासत में तो ले लिया जाता है पर उनके ख़िलाफ़ कोई सम्पूर्ण आरोप पत्र आदि समय से दाख़िल नहीं किया जाता है आख़िर क्या कारण है कि जिन्हें संदिग्ध मानकर पकड़ा जाता है तो उनके ख़िलाफ़ सबूत क्यों नहीं इकठ्ठा किये जाते हैं और यदि उनके ख़िलाफ़ सबूत है तो मुक़दमें को तेज़ी से आगे बढ़ाने का काम किया जाना चाहिए पर साथ ही सबूत न मिलने की दिशा में उन्हें छोड़ने में कोई राजनीति भी नहीं की जानी चाहिए क्योंकि इसके समाज पर बहुत दूरगामी दुष्परिणाम पड़ते हैं ? देश को आतंकी घटनाओं से सबक लेते हुए संदिग्धों के ख़िलाफ़ तेज़ी से मुक़दमों का निपटारा करने के बारे में एक नई नीति बनाने की आवश्यकता है जिससे देश के किसी कोने में किसी मुसलमान को कोई आतंकी संगठन यह कहकर बरगला न सके कि भारत में इस्लाम के साथ अन्याय हो रहा है और उन्हें व्यवस्था के ख़िलाफ़ जिहाद करने की ज़रुरत है ?
                    जिस तरह से यूपी सरकार ने यह क़दम उठाने के बारे में सोचा है उसमें एक पहलू यह भी जोड़ा जाना चाहिए कि इन छोड़े गए लोगों के लिए पुलिस और प्रशासन के साथ पूरा सहयोग किये जाने का वायदा भी लिया जाना चाहिए और साथ ही इन स्थानों पर सामाजिक और राजनैतिक लोगों को भी इनके समुचित पुनर्वास और सामजिक रूप से सम्मान पूर्वक जीने का हक़ भी दिया जाए. यह अपने आप में एक ऐसा उदाहरण भी हो सकता है जिसमें संदिग्धों को छोड़े जाने के लिए कोई सम्मानजनक रास्ता भी निकल कर सामने आ जाए. जिनके ख़िलाफ़ सबूत नहीं है उन्हें छोड़ा जाना किसी भी तरह से अनुचित नहीं है पर जिन्होंने पेशी के दौरान राष्ट्र विरोधी नारे लगाये उनके ख़िलाफ़ भी कानून के अनुसार उन्हें सजा देकर जेल भेज दिया जाना चाहिए क्योंकि उनके लिए कानून ने जो भी सजा निर्धारित कर रखी है उस पर अविलम्ब अमल किया जाना चाहिए जिससे कोई भी कहीं पर भी राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में शामिल न हो सके. साथ ही किसी भी तरह की घटिया राजनीति से बचने के लिए अब नेताओं को इस तरह के मुद्दों पर अनावश्यक बयानबाज़ी से बचना भी चाहिए साथ ही छोड़े गए किसी भी व्यक्ति के आने वाले समय में दोबारा इस तरह की गतिविधि में संलिप्त होने पर आजीवन कारावास से कम की सजा भी नहीं होनी चाहिए.          
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

3 टिप्‍पणियां: