यूपी में निर्वाचन आयोग ने अपनी तरफ़ से पहल कर मतदाताओं को जागरूक करने की एक अनूठी पहल की है जिससे राज्य में फर्जी वोटर्स की संख्या और उनके द्वारा मताधिकार का दुरूपयोग करने पर काफी हद तक अंकुश लगाये जा सकने की आशा जगी है. आयोग का यह मानना है कि आम वोटर को यह पता ही नहीं होता है कि वह यदि दो जगहों से वोटर है तो उसके ख़िलाफ़ जन प्रतिनिधित्व कानून १९५० की धारा ५१ के तहत कार्यवाही की जा सकती है जिसमें ज़ुर्माने के साथ साथ एक वर्ष तक की सज़ा का भी प्रावधान किया गया है और यह स्थानीय निर्वाचन अधिकारी सामान्यतया उपजिलाधिकारी के यहाँ से नियंत्रित किया जाता है. इस पूरी कवायद को चलाने और वोटर्स को जागरूक करने के लिए आयोग ने केन्द्रीय निर्वाचन आयोग से पूर्व अनुमति भी ले ली है जिसके बाद अब आयोग के लिए इस तरह के अभियान को संचालित करने का अधिकार भी आ गया है. आयोग केवल राज्य में फर्जी वोटर की संख्या पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से ही यह काम करने का इच्छुक है.
अभी तक आम तौर पर यह देखा जाता है कि कोई भी व्यक्ति जो अपने रोज़गार या किसी अन्य काम से अपने मूल निवास वाले स्थान से बाहर जाकर रहने लगता है तो उसका नाम नयी जगह से लिखे जाने के साथ पुरानी जगह से भी चलता रहता है जिसका दुरूपयोग उसकी जानकारी या अनभिज्ञता में लगातार ही किया जाता रहता है ऐसे में संविधान की उस मूल भावना का उल्लंघन होता है जिसमें वोटर्स से भी शुचिता और ईमानदारी की अपेक्षा की गई है ? आम तौर पर यह काम अनजाने में ही होता है क्योंकि आम लोगों को जन प्रतिनिधित्व कानून की इस धारा का कोई ज्ञान ही नहीं है जिससे वह इस तरह से अपने को दो जगहों से वोटर होने के मामले को कानून के अनुसार ग़लत जानता हो. अब जब राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा इस बारे में अभियान चलाया जाने वाला है जिसमें वोटर्स को यह सुविधा दी जा रही है कि वे अपने इन दोहरे वोट्स को स्वयं ही कटवा दें वरना उनके ख़िलाफ़ कानून के अनुसार कार्यवाही भी संभव है जो अभी तक किसी भी व्यक्ति के ख़िलाफ़ संभवतः नहीं की गई है.
इस मामले का सबसे अधिक दुरूपयोग जान बूझकर नेताओं द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है जो अपनी ग्रामीण पृष्ठभूमि के चलते दो जगहों से अधिक से अधिक वोट्स बढ़वाने की कोशिशों में लगे रहते हैं जिससे उनके प्रतिनिधियों को शहरों और गांवों दोनों जगहों पर उनके समर्थक वोट्स मिलते रहें और वे अपने हितों के चक्कर में लगातार संविधान की कसमें खाकर उसकी धज्जियाँ उड़ाते रहें ? देश में आज भी यह आम है कि नेताजी शहर में रहते हैं पर उनकी पत्नी या बहू जिला पंचायत की अध्यक्ष भी हैं या वे खुद नगर पंचायत के प्रधान बने बैठे हैं और उनके परिवार से कोई ग्राम सभा में प्रधान ? अब किसी भी व्यक्ति के लिए अपने वोट की फ़िक्र खुद ही करना अनिवार्य कर दिया गया है क्योंकि इसके बिना अब सुधार संभव नहीं दिख रहा है आम जनता को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए जिससे आने वाले समय में उसके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही संभव ही न हो सके. इस कानून में एक संशोधन अवश्य किया जाना चाहिए कि जो भी वोटर दो जगहों से वोट बनाकर उसका दुरूपयोग कर रहे हैं उनको अगले चक्र के सभी तरह के चुनावों में वोट डालने से वंचित भी किया जाना चाहिए जिससे कानून के अनुपालन में एक भय भी साथ में जुड़ जाए और आयोग की मंशा भी पूरी हो जाए.
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...
अभी तक आम तौर पर यह देखा जाता है कि कोई भी व्यक्ति जो अपने रोज़गार या किसी अन्य काम से अपने मूल निवास वाले स्थान से बाहर जाकर रहने लगता है तो उसका नाम नयी जगह से लिखे जाने के साथ पुरानी जगह से भी चलता रहता है जिसका दुरूपयोग उसकी जानकारी या अनभिज्ञता में लगातार ही किया जाता रहता है ऐसे में संविधान की उस मूल भावना का उल्लंघन होता है जिसमें वोटर्स से भी शुचिता और ईमानदारी की अपेक्षा की गई है ? आम तौर पर यह काम अनजाने में ही होता है क्योंकि आम लोगों को जन प्रतिनिधित्व कानून की इस धारा का कोई ज्ञान ही नहीं है जिससे वह इस तरह से अपने को दो जगहों से वोटर होने के मामले को कानून के अनुसार ग़लत जानता हो. अब जब राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा इस बारे में अभियान चलाया जाने वाला है जिसमें वोटर्स को यह सुविधा दी जा रही है कि वे अपने इन दोहरे वोट्स को स्वयं ही कटवा दें वरना उनके ख़िलाफ़ कानून के अनुसार कार्यवाही भी संभव है जो अभी तक किसी भी व्यक्ति के ख़िलाफ़ संभवतः नहीं की गई है.
इस मामले का सबसे अधिक दुरूपयोग जान बूझकर नेताओं द्वारा बड़े पैमाने पर किया जाता है जो अपनी ग्रामीण पृष्ठभूमि के चलते दो जगहों से अधिक से अधिक वोट्स बढ़वाने की कोशिशों में लगे रहते हैं जिससे उनके प्रतिनिधियों को शहरों और गांवों दोनों जगहों पर उनके समर्थक वोट्स मिलते रहें और वे अपने हितों के चक्कर में लगातार संविधान की कसमें खाकर उसकी धज्जियाँ उड़ाते रहें ? देश में आज भी यह आम है कि नेताजी शहर में रहते हैं पर उनकी पत्नी या बहू जिला पंचायत की अध्यक्ष भी हैं या वे खुद नगर पंचायत के प्रधान बने बैठे हैं और उनके परिवार से कोई ग्राम सभा में प्रधान ? अब किसी भी व्यक्ति के लिए अपने वोट की फ़िक्र खुद ही करना अनिवार्य कर दिया गया है क्योंकि इसके बिना अब सुधार संभव नहीं दिख रहा है आम जनता को इस अवसर का लाभ उठाना चाहिए जिससे आने वाले समय में उसके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही संभव ही न हो सके. इस कानून में एक संशोधन अवश्य किया जाना चाहिए कि जो भी वोटर दो जगहों से वोट बनाकर उसका दुरूपयोग कर रहे हैं उनको अगले चक्र के सभी तरह के चुनावों में वोट डालने से वंचित भी किया जाना चाहिए जिससे कानून के अनुपालन में एक भय भी साथ में जुड़ जाए और आयोग की मंशा भी पूरी हो जाए.
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