मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

सोशल मीडिया और चुनाव आयोग

                                 पांच राज्यों में चल रही चुनाव प्रक्रिया के बीच चुनाव आयोग ने यह स्पष्ट कर दिया है कि इंटरनेट और सोशल मीडिया पर भी किये जाने वाले प्रचार को प्रत्याशी के खर्चे में जोड़ा जायेगा और इसके साथ ही उसने यह निर्देश भी जारी कर दिए हैं कि इस बार प्रत्याशियों को अपनी ई-मेल और सोशल मीडिया के खातों का ब्यौरा भी आवेदन में भरना पड़ेगा जिससे आयोग को यह पता चल सके कि प्रत्याशी या पार्टी विशेष किस स्तर पर इंटरनेट का उपयोग कर रहे हैं. देश में कुछ लोगों को यह एक तरह से सोशल मीडिया पर आयोग का कड़ा नियंत्रण भी लग सकता है पर आज जिस स्तर पर राजनेता और दल इंटरनेट का उपयोग कम और दुरूपयोग अधिक करने लगे हैं तो उस स्थति में आयोग के पास कोई और चारा बचा भी नहीं था ? आयोग पर हर चुनाव को पूरी पारदर्शिता के साथ आगे बढ़ने की आवश्यकता का दबाव हमेशा से ही रहा है और पिछले दो दशकों में उसके प्रयासों से चुनावों को जितना सुधार जा सका है वह अपने आप में बड़ी उपलब्धि है.
                                 अबी तक जिस तरह से उच्च तकनीक का उपयोग कर पार्टियां चुनावी तैयारियों में लगी हुई थी क्योंकि उनको यह लगता था कि इस माध्यम पर अभी आयोग की नज़रें नहीं पड़ी हैं तो उन्हें यह समझना चाहिए कि आयोग का काम केवल चुनाव आचार संहिता का अनुपालन कराना और भय मुक्त चुनाव कराने तक ही सीमित होता है और चुनाव आयोग अपनी सीमाओं को बहुत अच्छी तरह से जानता है जिस कारण से ही उसने अभी तक इस मुद्दे पर कभी भी कुछ भी नहीं कहा था और चुनाव के समय उसके आदेशों को सभी दल मानने के लिए मजबूर हो जाते हैं इसलिए अब कोई यह भी नहीं कह सकता है कि आयोग सरकार या पार्टी के पक्ष में काम कर रहा है. देश में हर मामले में राजनीति करने की नेताओं की आदत के कारण ही आयोग केवल संवैधानिक कदम ही उठता है जब टीएन शेषन को चुनाव आयुक्त बनाया गया था तो भाजपा ने आरोप लगाया था यह राजीव गांधी के दबाव चंद्रशेखर सरकार द्वारा लिया गया क़दम था पर उन्हीं शेषन ने पूरे दश को नयी राह दिखा दी थी.
                                 देश को चुनाव सुधारों के लिए एक स्टार्टर की ज़रुरत थी जो शेषन ने बहुत अच्छे से पूरी की थी और उनके बाद जिस तरह से चुनाव आयोग का भय नेताओं और पार्टियों में फैला उससे यही लगता है कि कोई भी कदम यदि पूरी ईमानदारी से उठाया जाए तो संविधान की मंशा को पूरा करने में कोई कसर नहीं रह सकती है. सोशल मीडिया पर जिस तरह से अभद्र भाषा अ निरन्तर प्रयोग देश के नेताओं के लिए किया जाता है उस पर भी आयोग की नज़र जा सकती है क्योंकि आज जो वोट मांग रहे हैं आने वाले समय में वे किसी संवैधानिक पद को भी संभाल सकते हैं और लोकतंत्र में कोई भी कहीं भी पहुँच सकता है. देश के आम लोगों को भी अपनी ज़िम्मेदारियों को समझना चाहिए जिससे आने वाले समय में हम एक ज़िम्मेदार नागरिक की तरह बर्ताव करना सीख सकें और देश को आगे बढ़ने की भूमिका का निर्वहन भी ठीक से कर सकें. आयोग के प्रयासों में कोई कमी नहीं है और अब दलों, नेताओं और आम लोगों को अपनी ज़िम्मेदारियों को निभाने के लिए आगे स्वेच्छा से ही आना चाहिए जिससे भारत में चुनाव को और भी शुचिता के साथ कराने में सफलता मिल सके.    
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