मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

लोकपाल का अस्तित्व

                                                       देश में जिस तरह से लोकपाल विधेयक को लेकर पहले तनातनी मची और अन्ना हज़ारे के तीन साल के संघर्ष के बाद जिस तरह से सरकार ने लगभग सर्वसम्मति बनाकर ही इसे पारित कराने में सफलता पायी उससे यही लगता है कि सामाजिक दबाव बहुत हद तक नेताओं पर अंकुश लगाये रखने में सफल हो सकता है और देश में जिस तरह से आम लोगों ने देश की राजनीति को स्वच्छ रखने के लिए प्रयास करने शुरू कर दिए हैं वह देश के लोकतंत्र के लिए बहुत अच्छे संकेत हैं. सबसे पहले जब अन्ना द्वारा अनशन शुरू किया गया था तो उस समय भी केंद्र सरकार ने आम राय बनाने की कोशिशें शुरू की थीं पर पूरे प्रकरण में जिस तरह से योग गुरु बाबा रामदेव ने अपना हिस्सा मांगना और दिखाना शुरू कर दिया उससे परिस्थितियां एक बार को फिर से वहीं वापस लौट गयीं जहाँ से वे शुरू हुई थीं पर इसके साथ ही एक अच्छे काम के लिए शुरू किया गया आंदोलन राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं में सिमटने सा लगा था. अन्ना ने जिस तरह से इसके लिए अपना संघर्ष जारी रखा वह अपने आप में एक अभूतपूर्व कदम था और उसके कारण ही सरकार को यह विधेयक इस स्वरुप में लाने में सफलता मिली.
                                               जब अन्ना के प्रस्तावित लोकपाल और सरकार के बिल में काफी अंतर होने के बाद भी जिस तरह से दोनों से अपने क़दमों को पीछे खींचते हुए विधेयक को स्वीकार्य बनाने में सफलता प्राप्त की है वह आने वाले समय में देश की दिशा भी निर्धारित कर सकता है. जब सभी सरकारें और सामाजिक संगठन इस बात को ही रेखांकित करने से नहीं चूकते हैं कि वे जो कुछ भी कर रहे हैं देश और जनता की भलाई के लिए ही है तो इस तरह के महत्वपूर्ण मुद्दों पर देश की राय लेने में उन्हें क्यों परहेज़ होने लगता है ? किसी भी विधेयक के पूरा होने पर उसे लोकसभा और राज्य सभा की वेबसाइट्स पर जनता की राय मांगने के लिए खुला छोड़ना चाहिए और देश के सभी समाचार प्रसारित करने वाले टीवी और रेडियो चॅनेल्स से भी इनका प्रचार कर जनता की राय मांगी जानी चाहिए साथ ही मोबाइल से एसएमएस द्वारा भी एक निशुल्क नंबर पर राय दिए जाने की सुविधा भी होनी चाहिए जिससे जनता अपना मंतव्य भी नेताओं तक पहुंचा सके ? यह अभी तो दूर की कौड़ी ही लगती है क्योंकि जब तक नेता जनता की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए आगे नहीं आयेंगें तो विधेयकों और अन्य मसलों पर ऐसे ही गतिरोध दिखायी देते रहेंगे.
                                             लोकपाल भी एक संस्था ही होगी जो देश के सामान्य प्रशासन और नेताओं समेत हर क्षेत्र पर नज़र रखने के लिए बनायीं गयी है पर इसके द्वारा भ्रष्टाचार कम हो जायेगा या कोई नहीं कह सकता है क्योंकि आज आम जनता जिस तरह से भ्रष्टाचार के लिए नेताओं और सरकारों को ही दोषी ठहराती रहती है तो क्या वे ही इस मामले में वास्तविक रूप से ज़िम्मेदार हैं ? क्या हम एक समाज के रूप में अपने रोज़मर्रा के कामों को करवाने के लिए दस-बीस से लगाकर हज़ारों रूपये घूस में नहीं देते रहते हैं यदि पूरे देश के इस छोटे स्तर के भ्रष्टाचार को जोड़ दिया जाये तो यही एक दिन में हज़ारों करोड़ रूपये हो जायेगा ? इस तरह की दोहरी मानसिकता में जी रहे समाज को भ्रष्टाचार पर बोलने का कितना हक़ दिया जा सकता है यह कोई नहीं जनता पर जब तक लोकपाल के साथ ही अन्य भ्रष्टाचार निवारक कोशिशों से जुड़े विधेयक पारित नहीं होते हैं तब तक इस पर प्रभावी अंकुश नहीं लग पायेगा और देश के लिए यह पहले की तरह ही एक बड़ी समस्या ही बना रहेगा. अब गेंद जनता के पाले में है कि वह ही अपने बीच से निष्पक्ष लोगों के माध्यम से राजनेताओं को दूर रखकर ऐसी स्थानीय समितियां गठित करे जिनके माध्यम से निचले स्तर के भ्रष्टाचार को रोकने में भी कुछ सफलता मिल सके.      
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