मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

बुधवार, 15 जनवरी 2014

नौकरशाह और राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं

                                   पूर्व गृह सचिव आर के सिंह द्वारा शिंदे को लेकर दिए गए बयान के बाद इस तरह की राजनीति को सामने तो आना ही था क्योंकि आज देश में अधिकारियों में उनके राजनैतिक झुकाव के कारण जिस तरह से पद से हटते ही बयानबाज़ी करने की प्रवृत्ति बढ़ती ही जा रही है उससे और कुछ भले ही न हो पर एक बात स्पष्ट रूप से सबके सामने आ रही है कि अपने जीवन में नेताओं के साथ काम करते करते इन अधिकारियों में भी राजनैतिक महत्वाकांक्षाएं पनपने लगती है जो कि इस तरह की समस्या को सामने लाकर खड़ा कर देती हैं. आर के सिंह का यह आरोप कम गम्भीर नहीं है कि गृह मंत्री सुशील कुमार शिंदे ने आईपीएल मामले में एक अपराधी के खिलाफ जांच में बाधा पहुँचाने का प्रयास किया था ? आज जिस तरह से इस बात पर राजनैतिक नफे नुकसान का आंकलन किया जा रहा है उसके बाद क्या आर के सिंह के बयान का वह महत्व रह जाता है जो उनके उस समय विरोध करने पर होता और उस व्यक्ति के खिलाफ जांच भी सही ढंग से हो पाती.
                                   देश का संविधान सभी नागरिकों को देश के निर्माण में अपनी हिस्सेदारी निभाने का पूरा मौका देता है और इसी क्रम में कोई भी पूर्व नौकरशाह भी अपनी मर्ज़ी से किसी भी राजनैतिक दल के साथ जुड़ सकता है. आर के सिंह ने जिस तरह से भाजपा में जाने के बाद इस तरह की बातें की तो क्या उनके ख़िलाफ़ भी यह मामला नहीं बनना चाहिए कि उन्होंने आख़िर शिंदे का दबाव माना तो क्यों और अगर इस काम के लिए शिंदे दोषी हैं तो उनकी किसी भी नाजायज़ मांग को उन्होंने मानकर क्या उस अपराध में अपनी सहमति नहीं दे दी थी ? सरकार के काम काज में बहुत बार ऐसे मौके आते हैं जिनको नौकरशाह और राजनेता मिलकर सुलझाया करते हैं और उनमें बहुत सारी ऐसी बातें भी होती हैं जो कभी भी सबके सामने नहीं आती हैं और उनके सामने आने का जोखिम समझते हुए ही ये आधिकारी और नेता उन गोपनीय ही रखा करते हैं पर इधर कुछ दिनों से जो चलन समाज में दिखायी दे रहा है क्या उससे उस पूरे तंत्र पर ही संकट नहीं आ सकता है ?
                                   पूरे मामले को यदि गौर से देखा जाये तो इस तरह से बोलने वाले अधिकारी कहीं किसी स्तर पर सरकार के साथ किसी विवाद में रह चुके होते हैं और अपने समय की प्रतीक्षा में वे चुप रहा करते हैं तथा समय आने पर इस तरह के खुलासे करने की तरफ जाया करते हैं. शिंदे और सिंह के बीच का विवाद सभी को पता है और पूर्व सेनाध्यक्ष वीके सिंह भी जन्मतिथि विवाद के कारण सरकार को नापसंद किया करते थे वहीँ देश की सबसे तेज़ तर्रार, कर्मठ और ईमानदार आईपीएस किरण बेदी भी अपनी वरिष्ठता के आधार पर दिल्ली पुलिस के प्रमुख का पद पाना चाहती थीं पर सरकार ने उन्हें वह नहीं दिया जिसके कारण ही उन्होंने भी स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति का रास्ता चुना था और उसके बाद से ही वे सरकार के ख़िलाफ़ अधिक मुखर होकर काम करने में लगी हुई हैं ? आख़िर क्या कारण हैं कि केवल वही अधिकारी ही इस स्तर पर जाकर विवादों को हवा देने का काम करने में लगे हुए हैं जिनका किसी न किसी स्तर पर सरकार के साथ समय समय पर कोई टकराव हुआ हो ? देश में हर व्यक्ति को अपनी बात कहने का हक़ हैं यदि आर के सिंह तब इस शिंदे की इस बात का विरोध करते तो आज उनकी विश्वसनीयता पर कोई संदेह भी नहीं करता और न ही उन्हें इतने व्यक्तिगत हमले भी झेलने पड़ते. कोई भी राजनैतिक दल दूध का धुला नहीं है तो फिर अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए इस तरह के हमलों का क्या औचित्य बनता है ?       
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें