मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

गुरुवार, 30 जनवरी 2014

मीडिया की दिशा

                                 देश में आजकल मीडिया किस दिशा में जा रहा है इसका अंदाजा इस बात से ही लगाया जा सकता है कि दिल्ली के विज्ञान भवन में आयोजित एक समारोह में राष्ट्रीय वक्फ विकास निगम के उद्घाटन के अवसर पर देखने को मिली. ऐसे बड़े आयोजनों में आम तौर पर आमंत्रित लोगों से यह अपेक्षा की जाती है कि यदि उन्हें बोलने का अवसर दिया जायेगा तो वे शालीनता के साथ अपनी बात कहेंगें और समारोह की गरिमा बनाये रखेंगें पर कल जिस तरह से एक व्यक्ति ने अल्पसंख्यकों की उपेक्षा को लेकर समारोह में हंगामा किया उसके बाद मीडिया ने भी एक अच्छी पहल की ख़बरों को पीछे कर केवल हंगामें को ही आगे कर दिया ? आवश्यकता यह थी कि मीडिया जनता को यह बताने का भी प्रयास करता कि इस निगम के बनने और उसके सुचारु ढंग से काम करने से देश में वक्फ संपत्ति को किस तरह से आम मुसलमानों की भलाई में और बेहतर ढंग से इस्तेमाल करने में मदद मिल पायेगी क्योंकि आज जिस तरह से राजनैतिक वर्चस्व के चलते देश की अधिकांश वक्फ संपत्ति कुछ हाथों में सिमटी है उससे आम मुसलमान को कुछ नहीं मिल रहा है और वक्फ के नाम पर बड़े बड़े घोटाले किये जा रहे हैं.
                                निश्चित तौर पर पीएम के कार्यक्रम में इस तरह से अराजकता फ़ैलाने को किसी भी तरह से सही नहीं कहा जा सकता है क्योंकि वे वहाँ पर देश का प्रतिनिधित्व करते हैं भले ही कार्यक्रम का कितना भी राजनैतिक लाभ क्यों न उठाया जा रहा हो. इस तरह की मानसिकता के लोगों से मिलने में भी परहेज़ किया जाना चाहिए क्योंकि यदि इस तरह से एक व्यक्ति से मिल लिया गया तो हर व्यक्ति इस तरह से अराजकता के माध्यम से ही बड़े नेताओं से मिलें का छोटा रास्ता चुनने की कोशिश करने लगेगा जिससे बड़े समारोहों में अराजकता ही फ़ैल सकती है. लोकतंत्र और अभिव्यक्ति की आज़ादी का यह मतलब कतई नहीं होता है कि बिना समय का विचार किये कोई कुछ भी करने की तरफ बढ़ जाये क्योंकि आज़ादी अपनी बात को अराजक तरीके से कहने के लिए नहीं मिली है और यदि इस तरह की घटनाएं बढ़ती जाएंगीं तो आने वाले समय में बड़े कार्यक्रमों में इस तरह की अराजकता आम हो जायेगी ? अराजक होते किसी भी व्यक्ति को इस तरह से भाव देकर मीडिया भी केवल अराजकता का समर्थन ही करता नज़र आता है जिसकी कोई आवश्यकता आज के समय में नहीं है.
                                 मीडिया को अपनी ज़िम्मेदारी समझते हुए जिस तरह से इस तरह की घटनाओं को प्रमुखता नहीं देनी चाहिए उसमें वह पूरी तरह से असफल ही दिखायी देता है क्योंकि किसी अभी आयोजन को सही तरह से चलाने के लिए कुछ सामान्य प्रक्रिया होती है और यदि किसी बड़े कार्यक्रम में इस तरह से अराजकता के माध्यम से कोई कुछ कहना चाहता है तो उसकी पूरी तरह से अनदेखी भी की जानी चाहिए. इस हंगामे के कारण किसी भी जगह पर राष्ट्रीय वक्फ विकास निगम के बारे में जनता को सही तरह से कुछ भी जानने का अवसर नहीं मिला क्योंकि शायद मुख्य धारा के मीडिया के लिए आज एक सही प्रयास पर छोटा सा हंगामा अधिक मायने रखता है ? आखिर मीडिया इस तरह से बर्ताव कर अपने को क्या दिखाना चाहता है या फिर उसे केवल यह एक बड़ी चटपटी खबर लगती है कि उस कार्यक्रम में किसी ने हो हल्ला किया जिसमें पीएम और सोनिया समेत सरकार के दिग्गज लोग बैठे हुए थे ? आखिर मीडिया के इस तारा के रवैये के लिए लोकतंत्र के इस स्तम्भ के खिलाफ कौन बोलेगा क्योंकि सरकार बोली तो ये चिल्लायेंगे कि सरकार अभिव्यक्ति की आज़ादी पर अंकुश लगाना चाहती है.   
मेरी हर धड़कन भारत के लिए है...

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें